भूपेश बघेल की मजबूती के लिए असम में कांग्रेस की जीत जरूरी (बिजनेस स्टैंडर्ड)

आदिति फडणीस  

आगामी 2 मई को पांच राज्यों की सरकारों के भविष्य के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनीतिक तकदीर का निर्णय भी हो जाएगा। राज्य में बघेल को किसी मदद की जरूरत नहीं है। सन 2018 के विधानसभा चुनावों में पराजय के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) निष्क्रिय नजर आ रही है। उन चुनावों में भी पार्टी को 90 विधानसभा सीटों में महज 15 पर जीत मिली थी। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर पार्टी के कामकाज में शामिल कर लिया गया। आंध्र प्रदेश के नेता और कांग्रेस से भाजपा में आए डी पुरंदेश्वरी और बिहार के बांकीपुर से चार बार के विधायक नितिन नवीन को केंद्र सरकार ने प्रदेश में अपनी आंख और कान बनाया है और वह पता लगाने का प्रयास कर रही है कि आखिर पार्टी को कौन सी चीज परेशान कर रही है। लेकिन अभी यह काम चल ही रहा है।


आंतरिक तौर पर देखें तो बघेल के सामने कांग्रेस के भीतर कोई चुनौती नहीं है। वर्तमान में कांग्रेस की छत्तीसगढ़ इकाई आश्चर्यजनक रूप से एकजुट नजर आती है। पार्टी उतनी ही एकजुट है जितना कि कोई राजनीतिक दल हो सकता है। निश्चित तौर पर स्वास्थ्य और पंचायत राज मंत्री टीएस सिंहदेव यह मानते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री होना चाहिए था और वह बघेल को यह याद दिलाते रहते हैं कि कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों को अधूरा नहीं छोड़ा जा सकता। भले ही दोनों नेता इस बात से इनकार करें लेकिन वहां कुछ न कुछ समझ जरूर बनी है। मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के कारण पार्टी को सरकार गंवानी पड़ी या राजस्थान में जहां अशोक गहलोत ने विधायकों को फुर्ती से संभाला ताकि पार्टी नेता सचिन पायलट उन्हें अपने साथ न ले जा सकें। परंतु छत्तीसगढ़ ऐसी तमाम समस्याओं से बचा रहा।


बघेल इस शांति का फायदा उठाकर अपना कद बड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। याद किया जाए तो हाल के दिनों में वह कांग्रेस के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें किसी दूसरे प्रदेश में चुनाव प्रभारी बनाया गया। उन्हें असम का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। वह चुनाव में अपना सबकुछ झोंक रहे हैं। जब बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) की पार्टी को ज्यादा सीटें दी गईं तो इस बात से नाराज कांग्रेस नेता सुष्मिता देव को उन्होंने ही मनाया। इसके अलावा चुनाव प्रचार के लिए फंड जुटाने का काम भी उन्होंने ही किया। बल्कि इस महीने के आरंभ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वाम धड़े के चरमपंथियों के हमले के बाद असम का अपना दौर संक्षिप्त कर दिया और वह सुरक्षा बलों की कार्रवाई  के संयोजन के लिए दिल्ली लौट आए। लेकिन बघेल असम में चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद ही छत्तीसगढ़ लौटे। उन्होंने ऐसा तब किया जब 10 दिनों से यह खुफिया सूचना थी कि 2013 में झीरम घाटी (इस हमले में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं समेत 30 लोग मारे गए थे) जैसे बड़े हमलों से संबंधित रहा माडवी हिड़मा (प्रतिबंधित भाकपा माओवादी का एक शीर्ष नेता) छत्तीसगढ़ में सक्रिय है। शासन प्रशासन की बात करें तो हालांकि कोविड-19 महामारी ने राज्य की हालत बेहाल कर रखी है लेकिन बघेल ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अपनी सरकार की आर्थिक नीति के केंद्र में रखा है। किसानों से गोबर खरीदने की उनकी सरकार की योजना के बाद उसके नरम हिंदुत्व को अपनाने की बातें कही जाने लगीं। गौधन न्याय योजना या जीएनवाई गत वर्ष जुलाई में शुरू की गई थी। तब से सरकार 1.40 लाख गोपालकों से गोबर खरीदकर 64 करोड़ रुपये की राशि उन्हें वितरित कर चुकी है। इसके बाद इस गोबर को 3,500 सरकारी गोशालाओं में ले जाया गया और उससे उर्वरक तथा अन्य उत्पाद बनाए गए। परंतु ग्रामीण अर्थव्यवस्था से तात्पर्य इससे कहीं अधिक है। यदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सुधार रमन सिंह की उपलब्धि थे तो वहीं बघेल के लिए यह काम अनाज खरीद के वादे ने किया है। छत्तीसगढ़ ने 2020-21 के खरीफ वितरण सत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 92 लाख टन से अधिक धान खरीदा। छत्तीसगढ़ में कोई किसान एमएसपी की गारंटी नहीं मांग रहा है क्योंकि उन्हें पता है कि राज्य सरकार उनका अनाज खरीद ही लेगी।


बघेल के लिए असम चुनाव में जीत एक बड़ी चुनौती है। बघेल वही व्यक्ति हैं जिन्होंने राहुल गांधी को सलाह दी थी कि जोगी परिवार के सामने पार्टी को कड़ा रुख रखना चाहिए जबकि कहा यही जा रहा था कि अजित जोगी की पार्टी कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाएगी। बघेल उस मौके पर भी सही साबित हुए। बघेल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस के दिग्गज नेता चंदूलाल चंद्राकर के सहायक के रूप में की। उनका स्वतंत्र जनाधार कुछ खास नहीं था। अभी भी अगर वह अपने लिए बड़ी भूमिका की तलाश में हैं तो ऐसा केवल पार्टी आला कमान की वजह से हैं।


रमन सिंह के साथ उनके रिश्ते अत्यधिक खराब हैं। इसकी वजह है भाजपा की तत्कालीन सरकार द्वारा बघेल, उनकी पत्नी और उनकी मां के खिलाफ उनके गृह नगर और दुर्ग जिले के भिलाई शहर में 20 वर्ष पुराने भूखंड आवंटन मामले में मुकदमा दायर करना। सन 2017 में जब राज्य सरकार की आर्थिक अपराध शाखा ने मामला दर्ज किया था तब बघेल और उनका परिवार उसके कार्यालय में धरने पर बैठा। उन्होंने तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। दोनों नेता एक मंच पर साथ आने से भी बचते हैं। यदि कांग्रेस को असम चुनाव में जीत मिलती है तो भूपेश बघेल का राष्ट्रीय स्तर पर भविष्य निश्चित है। लेकिन अगर वह हारते हैं तो टीएस सिंहदेव यकीनन और मुखर हो जाएंगे। ऐसे में छत्तीसगढ़ में स्थिरता बरकरार रखने के लिए असम में कांग्रेस की जीत जरूरी है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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