‘जजों के रिक्त स्थान जल्दी भरे जाएं’‘...ताकि करोड़ों लंबित केस जल्दी निपटें’ (पंजाब केसरी)

‘नैशनल ज्यूडीशियल डाटा ग्रिड’ (एन.जे.डी.जी.) के अनुसार देश की मातहत (हाईकोर्ट से नीचे के स्तर की) अदालतों में 3.81 करोड़ और हाईकोर्टों में 57 लाख केसों के अलावा 1 मार्च तक सुप्रीमकोर्ट में 66,000 से अधिक केस लंबित थे जबकि देश में कम से कम एक लाख से अधिक मामले ऐसे हैं जो 30 से अधिक वर्षों से लटकते आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्टों व निचली अदालतों में जजों की भारी कमी के चलते वहां लंबित मुकद्दमों के लग रहे अम्बार तथा हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति बारे केंद्र सरकार के रुख पर टिप्पणी करते हुए 25 मार्च को सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश माननीय एस.ए. बोबडे ने कहा कि :

‘‘6 महीने पहले कोलेजियम ने जो सिफारिशें की थीं उन पर अभी तक केंद्र सरकार द्वारा कोई निर्णय न लेना चिंताजनक है जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ नामों की सिफारिश किए हुए तो एक वर्ष हो गया है।’’ इसी सिलसिले में 15 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत पर आधारित खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीमकोर्टके कोलेजियम द्वारा डेढ़ वर्ष पूर्व की गई 10 नामों की सिफारिशों पर 3 महीनों के भीतर अमल करने की हिदायत दी। इसके साथ ही माननीय न्यायाधीशों ने अटार्नी जनरल के. वेणुगोपाल से पूछा, ‘‘आखिर कोलेजियम की सिफारिशों पर अमल करने में सरकार कितना समय लगाएगी? इसके लिए कोई तर्कसंगत समय सीमा बताई जाए।’’ 

जवाब में के. वेणुगोपाल ने अदालत को आश्वस्त किया कि ‘‘जुलाई 2019 में हाईकोर्ट के जज नियुक्त करने के लिए सुप्रीमकोर्ट कोलेजियम द्वारा भेजे 10 नामों पर तीन महीने के अंदर विचार करके कोलेजियम को सूचित करेगी तथा ‘मैमोरैंडम आफ प्रोसीजर’ में तय समय सीमा का पालन किया जाएगा।’’  इसके साथ ही उन्होंने नामों को मंजूरी देने में देरी के लिए सिफारिशें समय पर नहीं भेजने के मामले में हाईकोर्टों को जिम्मेदार ठहराया। 
इस पर खंडपीठ ने कहा, ‘‘यह मामला आप हम पर छोड़ दीजिए।’’ 

जो भी हो, देश की शीर्ष अदालतों के साथ-साथ निचली अदालतों में जजों की कमी अत्यंत गंभीर मामला है जिसके कारण न्याय प्रक्रिया बाधित हो रही है। अत: इस संबंध में तमाम अड़चनों को दूर कर जजों की नियुक्ति में तेजी लाना ही समय की मांग है क्योंकि समय पर न्याय न मिलने से क्षुब्ध होकर पीड़ित कई बार कानून अपने हाथों में ले लेते हैं जिससे अपराधों में वृद्धि होती है।

-विजय कुमार                                              

सौजन्य - पंजाब केसरी।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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