सुधार को नया खतरा (बिजनेस स्टैंडर्ड)

वर्ष 2020-21 में अप्रत्यक्ष कर संग्रह के प्रारंभिक आंकड़े केंद्र सरकार द्वारा बुधवार को जारी किए गए। आंकड़े बताते हैं कि बीते कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था अपेक्षा से कहीं बेहतर गति से सुधर रही है। वर्ष के दौरान अप्रत्यक्ष कर संग्रह गत वर्ष के वास्तविक संग्रह की तुलना में 12.3 फीसदी बढ़ा। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और गैर जीएसटी कर शामिल हैं। शुद्ध अप्रत्यक्ष कर संग्रह 10.71 लाख करोड़ रुपय रहा जो संशोधित अनुमानों का 108.2 फीसदी था। केंद्र सरकार का जीएसटी संग्रह भी संशोधित अनुमान से 6 फीसदी अधिक था। हालांकि यह पिछले साल के संग्रह से करीब 8 फीसदी कम था।

राजस्व संग्रह में सुधार को पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से भी मदद मिली। सीमा शुल्क संग्रह में 21 फीसदी का इजाफा देखा गया जबकि इस बीच आयात में कमी दर्ज की गई। यही कारण है कि कुल कर संग्रहण पिछले वर्ष से थोड़ा अधिक रहा। ऐसा प्रत्यक्ष कर में गिरावट के बावजूद हुआ। सरकार ने गत वर्ष पेट्रोलियम उत्पादों पर कर बढ़ाकर अच्छा किया था। इससे उसे कोविड-19 के कारण उपजी विसंगतियों को कम करने में मदद मिली। हालांकि गैर कर राजस्व के मोर्चे पर सरकार को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वर्ष 2020-21 के राजस्व घाटे का अंतिम आंकड़ा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.5 फीसदी के अनुमानित स्तर से कम रह सकता है। सरकार राजस्व के मोर्चे पर राहत की स्थिति में है। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि उसने भारतीय खाद्य निगम द्वारा राष्ट्रीय अल्प बचत फंड से चाहे गए ऋण को मंजूर कर दिया। यह भी अच्छी बात है क्योंकि इससे बजट में पारदर्शिता बढ़ेगी।


परंतु कोविड संक्रमण के मामलों में तेज बढ़ोतरी ने जोखिम बढ़ा दिया है। देश में अब रोजाना कोविड-19 संक्रमण के 1.80 लाख से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं। विभिन्न राज्य सरकारें अलग-अलग तरह के प्रतिबंध लगा रही हैं ताकि वायरस का प्रसार रोका जा सके। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र ने आवश्यक गतिविधियों के अलावा हर काम पर रोक लगा दी है। इसका असर मांग और आपूर्ति पर पडऩा लाजिमी है। यदि जल्दी मामलों में कमी आनी नहीं शुरू हुई तो अन्य राज्यों में भी ऐसे उपाय अपनाने होंगे। आने वाले सप्ताहों और महीनों में अगर प्रतिबंध बढ़े तो हालात और खराब हो सकते हैं। बहरहाल ध्यान देने वाली बात यह है कि नए प्रतिबंधों के कारण मांग प्रभावित होगी लेकिन सालाना आधार पर आर्थिक गतिविधि अब तक बेहतर नजर आ रही है। नीति निर्माताओं को इससे भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा कम आधार के कारण हो रहा है। गत वर्ष की तुलना में हालात इस बार अधिक चुनौतीपूर्ण हैं।


कोरोनावायरस की दूसरी लहर पहली से अधिक घातक है और इसे नियंत्रित करने में अधिक समय लग सकता है। कर संग्रह में सुधार के बावजूद सरकार की वित्तीय स्थिति पिछले साल से अधिक दबाव में है। देश का सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 90 फीसदी के करीब पहुंचने का अनुमान है। परंतु सरकार को अभी भी वंचित वर्ग को मदद पहुंचानी होगी। प्रवासी श्रमिक एक बार फिर शहरों से गांवों की ओर पलायन करने लगे हैं। सरकार को ग्रामीण रोजगार योजना में आवंटन बढ़ाना चाहिए और हालात बिगडऩे पर नि:शुल्क अनाज वितरण शुरू करना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक भी इस स्थिति में नहीं होगा कि कारोबारी जगत को और मदद पहुंचा सके। मार्च में मुद्रास्फीति की दर 5.5 फीसदी रही। आपूर्ति शृंखला की बाधा इसे ऊंचा बनाए रख सकती है और मौद्रिक नीति के लिए बाधा पैदा कर सकती है। टीकाकरण में तेजी ही इकलौता उपाय नजर आती है। सरकार को टीका निर्माताओं से बात कर आपूर्ति बढ़ानी चाहिए।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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