भारतीय यूनिकॉर्न स्टार्टअप के मिथक और उनका जादू (बिजनेस स्टैंडर्ड)

निवेदिता मुखर्जी  

बीते सप्ताह का हर दिन स्टार्टअप की दुनिया के लिए सुखद और यादगार रहा। इस दौरान बहुत कम अंतराल में छह इंटरनेट आधारित कंपनियों ने यूनिकॉर्न का दर्जा प्राप्त किया। यानी इन कंपनियों का मूल्यांकन एक अरब डॉलर का स्तर पार कर गया। इस बात का जोरशोर से जश्न भी मनाया गया। इसमें यही संदेश निहित था कि आखिरकार भारत उस स्थिति में आ गया है जहां किसी निजी स्टार्टअप का एक अरब डॉलर का स्तर हासिल करना यदाकदा होने वाली घटना नहीं रह गई।


अमेरिकी एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म सीबी इनसाइट्स के डेटाबेस के मुताबिक अप्रैल 2021 तक दुनिया भर की 642 यूनिकॉर्न में से 29 भारत में स्थित हैं। वेंचर इंटेलिजेंस का एक और डेटा बताता है कि भारतीय यूनिकॉर्न की तादाद 47 है और इनमें इजाफा हो रहा है। आंकड़ों में यह अंतर यूनिकॉर्न की गणना के तरीके की वजह से है। एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन पर यूनिकॉर्न, 10 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन पर डेकाक्रॉन और 100 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन पर हेक्टोकॉर्न मानी जाती है और निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सी स्टार्टअप सूची में कब किस स्थान पर थी।


वैश्विक रैंकिंग की बात करें तो किसी स्टार्टअप का यूनिकॉर्न बनना यकीनन उसकी विकास गाथा की पुष्टि करता है लेकिन वहां यह बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। कारण यह कि वहां स्टार्टअप का मूल्यांकन कोई विशिष्ट बात नहीं है। यह किसी स्टार्टअप का सांकेतिक मूल्य है जो नकदी प्रवाह की उपलब्धता, महत्त्वाकांक्षा और फंडिंग के अहम संकेतकों के आकलन पर निर्भर है। चूंकि मूल्यांकन का राजस्व, मुनाफे या किसी अन्य पारंपरिक कारोबारी मानक से कोई लेनादेना नहीं इसलिए यह निवेशकों की भावना से अधिक संचालित है। स्टार्टअप जगत में निवेशक कई बार कंपनियों के सामने कड़े प्रदर्शन लक्ष्य भी रखते हैं। वहीं अन्य अवसरों पर वे चाहते हैं कि आंकड़े चाहे कुछ भी हों लेकिन ग्राहक कंपनी से जुड़े रहें।


कई ऐसे मामले सामने आए जहां उच्च मूल्यांकन के बावजूद स्टार्टअप नाकाम होती देखी गईं। सितारा संस्थापकों वाले संस्थान भी डूबने से नहीं बच पाए। फ्लिपकार्ट, हाउसिंग डॉट कॉम, स्नैपडील जैसी तमाम स्टार्टअप के बारे में सोचिए। चमकदार नाम वाले निवेशक जो स्टार्टअप को शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने में मदद करते हैं, वे पूरे सफर के दौरान पूरी तरह नियंत्रण कायम रखते हैं। आमतौर पर संस्थापक निवेशक उस समय सार्वजनिक तौर पर चर्चा में आता है जब किसी स्टार्टअप की बिक्री होती है या उसे बेचने का प्रयास किया जाता है। फ्लिपकार्ट के मामले में कंपनी के सह-संस्थापक और देश में ई-कॉमर्स के पोस्टर बॉय आईआईटी से पढ़े सचिन बंसल को 2018 में अपना पद छोडऩा पड़ा जब टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट के ली फिक्सेल समेत निवेशकों के एक समूह ने बेंगलूरु की इस कंपनी की बहुलांश हिस्सेदारी 16 अरब डॉलर में वॉलमार्ट को बेचने का सौदा किया। सचिन बंसल ने बिन्नी बंसल के साथ मिलकर करीब 10 वर्ष पहले जिस कंपनी की स्थापना की थी, उस कंपनी की बोर्ड रूम वार्ता में सचिन बंसल के पास ज्यादा कुछ कहने का अधिकार ही नहीं था। सचिन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते थे लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। सौदे के बाद खिंची रस्मी तस्वीर में वे नदारद दिखते हैं। उन्होंने एक ट्वीट करके जानकारी दी कि वे अब फ्लिपकार्ट से अलग हैं। एक और मामला जो सुर्खियों में रहा वह था अचल संपत्ति क्षेत्र के सर्च पोर्टल हाउसिंग डॉट कॉम का।


इसके सह-संस्थापक और सीईओ राहुल यादव ने 2015 में प्रमुख निवेशक सिकोया कैपिटल के शैलेंद्र सिंह को ई-मेल भेजा। सार्वजनिक हुए इस मेल में तब 25 वर्ष के यादव (जिन्होंने आईआईटी की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी), ने कहा कि अगर निवेशकों ने उनसे उलझना नहीं छोड़ा तो वह कंपनी छोड़ देंगे। लेकिन उन्होंने एक ऐसी पंक्ति लिखी जिसने उनका कंपनी से बाहर जाना सुनिश्चित कर दिया- यादव ने लिखा कि इसके साथ ही देश में सिकोया कैप के अंत की शुरुआत हो जाएगी। इसके बाद काफी कुछ घटा। यादव ने निवेशकों और बोर्ड सदस्यों के चर्चा के लिए नाकाबिल बताकर बोर्ड से इस्तीफा दिया, बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस लिया और आखिरकार उन्हें कंपनी छोडऩी पड़ी।


देश में यूनिकॉर्न की तेजी से बढ़ती होड़ के बीच दो लोगों के उद्धरण ध्यान देने लायक हैं। फ्लिपकार्ट के बाद नवी टेक्रॉलजीज नामक फिनटेक कंपनी शुरू करने वाले सचिन बंसल और क्रेडिट कार्ड बिल भुगतान प्लेटफॉर्म क्रेड (जो हाल ही में यूनिकॉर्न बनी) के संस्थापक कुणाल शाह। सचिन ने कहा कि अधिकांश उद्यमी केवल उद्यम के प्रति लगाव के कारण काम करते हैं और संपत्ति केवल आंकड़े हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे कभी उसका उपभोग नहीं कर पाएंगे। शाह ने कहा कि यूनिकॉर्न का तमगा और उच्च मूल्यांकन आदि सब दिखावटी हैं और अहम है कंपनी का मुनाफा कमाना। उन्होंने कहा कि यूनिकॉर्न अंशधारकों के विश्वास और आशा का केंद्र हैं। सचिन भले ही देश के एक शुरुआती और अत्यंत सफल यूनिकॉर्न के संस्थापक होने के अनुभव से बोल रहे हों लेकिन शाह को उद्यमिता जगत में काफी समय हो गया है और उन्हें पता है कि यूनिकॉर्न की वास्तविक कीमत क्या है? शुरुआत में यूनिकॉर्न को लेकर घोषणाओं की गति भी धीमी थी। उदाहरण के लिए फ्लिपकार्ट के एक अरब डॉलर का जादुई आंकड़ा छूने की खबर 2013 में सामने आई जबकि वह एक साल पहले ही यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुकी थी। कंपनी के नए निवेशकों में से एक दक्षिण अफ्रीका के नैस्पर ने एक वर्ष पहले की गई अपनी आखिरी फंडिंग के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन 1.04 अरब डॉलर किया था। यह अंशधारकों को दी जाने वाली वार्षिक रिपोर्ट का हिस्सा थी। इसमें कहा गया कि कंपनी ने फ्लिपकार्ट में 10 फीसदी हिस्सेदारी के लिए अगस्त 2012 में 10 करोड़ डॉलर का निवेश किया। जैसा कि कहा जाता है, शेष सब इतिहास है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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