नारायण कृष्णमूर्ति, वरिष्ठ पत्रकार
छोटी बचत योजनाएं हमारे देश में काफी लोकप्रिय हैं। इनसे बचतकर्ताओं के साथ सरकार को भी अपनी वित्ती जरूरतें पूरी करने में मदद मिली हैं। लेकिन इन योजनाओं में ब्याज दर पर कटौती से छोटे बचतकर्ताओं को नुकसान होता है। सरकार को इसके उद्देश्यों पर ध्यान देना चाहिए।
भारत में छोटी बचत योजनाओं की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह लोगों के लिए 1.5 लाख डाकघरों में उपलब्ध है, जो पूरे देश भर में इस योजना की पेशकश करते हैं। वर्षों से इस योजना की लोकप्रियता इसकी सादगी, ब्याज दरों पर सरकारी गारंटी, जमा की सुरक्षा और कुछ मामलों में कर बचत के कारण ऊंची रही है। एक तरह से डाकघर जमा, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ), नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी), किसान विकास पत्र (केवीपी) जैसी योजनाओं ने सीमित साधनों वाले लोगों को इन योजनाओं में कम से कम पांच रुपये से बचत करने के लिए अलग-अलग तरीके प्रदान किए हैं। भारत सरकार ने इन साधनों के माध्यम से भारी मात्रा में संग्रह करने की क्षमता को महसूस किया है, ताकि डाकघर नेटवर्क के माध्यम से इनका लाभ उठाया जा सके। सरकार के पास इन योजनाओं के तहत धन एकत्र करने के कारण हैं, क्योंकि एकत्रित राशि से एक कोष तैयार होता है, जिसे राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) के रूप में जाना जाता है। एनएसएसएफ की स्थापना 1999 में भारत के सार्वजनिक खाते में की गई थी और इसे संविधान के अनुच्छेद 283 (1) से उत्पन्न राष्ट्रीय लघु बचत कोष (निगरानी और निवेश) नियम, 2001 के तहत वित्त मंत्रालय द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
एनएसएसएफ के तहत रखे गए धन का उपयोग केंद्र और राज्यों द्वारा अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है, जबकि शेष राशि का निवेश केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिभूतियों में किया जाता है। इसलिए यह सरकार को अपनी वित्तपोषण आवश्यकताएं पूरी करने के लिए धन को अपनी तरफ हस्तांतरित करने में मदद करता है। 14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, केरल, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, और मध्य प्रदेश को छोड़कर भारत के सभी राज्य अपनी वित्तपोषण आवश्यकताओं के लिए एनएसएसएफ फंड का उपयोग करते हैं, क्योंकि केरल, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, और मध्य प्रदेश को ब्याज की कम दरों पर ऋण मिलता है। उदाहरण के लिए, फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआई) को लें, जिसने अपनी वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में अपनी वित्तीय जरूरतों के दो-तिहाई से अधिक की राशि एनएसएसएफ से उधार ली। एफसीआई ने एनएसएसएफ से वित्त वर्ष 2019 में 1.86 लाख करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2018 में 1.21 लाख करोड़ रुपये और उससे पहले के साल वित्त वर्ष 2017 में 70,000 करोड़ रुपये उधार लिए।
साफ है कि एनएसएसएफ संग्रह, जिसमें छोटे बचतकर्ता योगदान करते हैं, सरकार के बचाव के काम में आता है और इसकी बजटीय कमी दूर करने की आवश्यकता है। छोटी बचत पर ब्याज दरें वर्षों से 2016 तक अछूती रहीं, जब छोटी बचत योजना की नई ब्याज दरों को बाजारों के साथ मिलाया गया और सालाना के बजाय तिमाही समीक्षा की गई। इस कदम का मतलब है कि छोटी बचत पर ब्याज दरें अब 10 साल के बांड पर प्रचलित सरकारी प्रतिभूति दरों से ज्यादा मेल खाती हैं और इनकी तिमाही समीक्षा की गई है। इसका असर यह हुआ कि पिछले एक दशक में छोटी बचत पर ब्याज दरों में लगातार गिरावट आई है। इसी अवधि के दौरान कुछ छोटी बचत संरचना में कुछ बदलाव लाए गए हैं, जो जरूरी नहीं कि छोटे बचतकर्ता के अनुकूल हों। मिसाल के तौर पर, जबसे सेक्शन 80 सी की सीमा के तहत आयकर बचत की सीमा को एक लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख कर दिया गया है; पीपीएफ में योगदान की ऊपरी सीमा समय के साथ 60,000 रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दी गई।
इसी तरह, नई बचत योजनाएं, जैसे कि वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (एससीएसएस), जिसे 2004 में शुरू किया गया था और सुकन्या समद्धि योजना, जो 2015 में शुरू की गई थी, छोटी बचत के दायरे में हैं, फिर भी इन्हें कुछ बैंकों द्वारा भी पेश किया जाता है। इसी तरह पीपीएफ पर अब केवल डाकघरों का एकाधिकार नहीं रह गया है, इसे भी सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्र के बैंकों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है, जैसे एसबीआई, आईसीआईसीआई, इत्यादि। स्वीकृत लघु बचत योजनाओं पर कर बचत का मतलब है कि कई बड़े बचतकर्ता कर रियायत के साथ-साथ योजनाओं द्वारा प्रदान किए जाने वाले सुनिश्चित लाभ (रिटर्न) के लिए छोटी बचत योजनाओं को तवज्जो देते हैं।
इस पृष्ठभूमि में छोटी बचत पर ब्याज दरों में किसी भी गिरावट से छोटे बचतकर्ताओं को सबसे अधिक नुकसान होता है; खासकर वैसे लोगों को जो ज्यादातर संगठित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा नहीं हैं। दूसरा तबका, जो छोटी बचत पर ब्याज दरों में कटौती से प्रभावित होता है, वह है सेवानिवृत्त वर्ग, जो अक्सर इन योजनाओं से मिलने वाले सुनिश्चित रिटर्न के आधार पर अपनी सेवानिवृत्ति आय की योजनाएं बनाते हैं। उदाहरण के लिए, 2012 तक एससीएसएस पर ब्याज दर नौ फीसदी थी और तब से यह घटकर 7.4 फीसदी तक आ गई है, जिसका अर्थ है 10 लाख रुपये की जमा राशि पर वार्षिक आय 90,000 रुपये से घटकर 74,000 रुपये हो गई यानी आय में 17 फीसदी की गिरावट आई। यदि कोई इसी अवधि के दौरान की मुद्रास्फीति से इसे समायोजित करे, तो पैसे की कीमत बहुत कम हो जाएगी।
वर्तमान में उच्च कर सीमा के दायरे में आने वाले लोग पीपीएफ, एससीएसएस, सुकन्या समृद्धि और यहां तक कि पांच साल की कर बचत जमा योजना जैसी छोटी बचत से लगातार कर रियायत का लाभ उठाते हैं, क्योंकि इन योजनाओं में निवेश करने पर कर रियायत दी जाती है। तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश योजनाएं पैसे की निकासी पर कर नहीं लगाती हैं, इसलिए यह बड़े आयकर दाताओं के बीच पसंदीदा विकल्प बन गया है। जबकि, इन योजनाओं से होने वाली आय पर निर्भर छोटे बचतकर्ता, अपने जीवन की बचत पर ब्याज दर में कटौती से आहत और इन सरल वित्तीय साधनों पर निर्भरता महसूस करते हैं। ऐसे में अब समय आ गया है कि इन बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती का कठोर फैसला लेने से पहले सरकार छोटी बचत के उद्देशों पर एक बार फिर से नजर डाले।
सौजन्य - अमर उजाला।
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