तमाल बंद्योपाध्याय
गत सप्ताह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास तथा दो डिप्टी गवर्नरों ने सरकारी क्षेत्र के सभी बैंकों और निजी क्षेत्र के चुनिंदा बैंकों के सीईओ के साथ अलग-अलग ई-बैठक आयोजित कीं। बैठक बीते वित्त वर्ष का जायजा लेने के लिए आयोजित की गईं। बीते वर्ष उद्योग के जमा पोर्टफोलियो में 11.4 फीसदी का इजाफा हुआ जो उससे पिछले वर्ष के 7.9 फीसदी से अधिक था। लेकिन इस वर्ष ऋण वृद्धि गत वर्ष के 6.1 फीसदी से घटकर 5.6 फीसदी रह गई।
ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत ऋण चुकाने में चूक करने वालों के खिलाफ प्रक्रिया को एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया था ताकि कोविड महामारी के असर को कम किया जा सके। डिफॉल्ट की सीमा को एक लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दिया गया ताकि छोटे कारोबारों को बचाया जा सके। ऋण पुनर्भुगतान के लिए छह माह की मोहलत दी गई थी। जब कई कर्जदारों ने अपना कर्ज चुकाना शुरू कर दिया तब बैंक उनसे ब्याज पर ब्याज या स्थगन अवधि का चक्रवृद्धि ब्याज नहीं वसूल सके।
शुरुआत में यह लाभ केवल उन लोगों के लिए था जिन्होंने दो करोड़ रुपये तक का ऋण लिया था लेकिन मार्च के आखिर तक सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सभी ऋणदाताओं के लिए कर दिया। इसके चलते बैंकों को 8,000 करोड़ रुपये की क्षति पहुंचने की आशंका है। क्या परिसंपत्ति गुणवत्ता को इससे और अधिक क्षति हो सकती है? हालांकि कुछ कर्जदार अपना कर्ज नहीं चुका रहे थे लेकिन बैंक तयशुदा मानकों के तहत उन पर ब्याज लगा रहे थे क्योंकि उन्हें डिफॉल्टर नहीं माना जा रहा था। अब बैंकों के सामने दोहरी समस्या है। उन्हें पहले लगाया गया ब्याज वापस लेना होगा जो करीब 10,000 करोड़ रुपये तक हो सकता है। उन्हें फंसे हुए कर्ज के लिए भी राशि अलग करनी होगी।
आरबीआई की जनवरी की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा गया कि सितंबर 2021 तक सकल एनपीएल बढ़कर 13.5 और 14.8 फीसदी हो सकता है जबकि सितंबर 2020 में यह 7.5 फीसदी था। इस अवधि में सरकारी बैंकों का सकल एनपीएल 9.7 फीसदी से बढ़कर 16.2-17.6 फीसदी हो सकता है। निजी बैंकों का सकल एनपीएल 4.6 फीसदी से बढ़कर 7.9-8.8 फीसदी हो सकता है। विदेशी बैंकों में यह 2.5 फीसदी से बढ़कर 5.4-6.5 फीसदी हो सकता है।
मार्च के अंत तक बैंकिंग उद्योग का सकल एनपीएल दो फीसदी बढ़कर 9.5 फीसदी हो सकता है।
अधिकांश वित्तीय मानकों मसलन परिचालन और शुद्ध मुनाफा, पूंजी और प्रॉविजन कवरेज अनुपात आदि के क्षेत्र में अनेक बैंक 2019 और 2020 से बेहतर स्थिति में हैं। हालांकि जो ऋण चुकाया नहीं गया है उसे अभी तक फंसे हुए कर्ज के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है लेकिन अधिकांश बैंकों ने उसके लिए वर्ष के दौरान ही प्रावधान कर लिए। कुल मिलाकर नया फंसा कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है।
दिक्कत यह है कि हर क्षेत्र में विस्तारित 15 बड़े कारोबारी खातों में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये की राशि बकाया हो सकती है। इनका पुनर्गठन किया जा रहा है। 31 मार्च तक ये सभी एनपीएल में तब्दील नहीं होंगे। आर वी कामत के नेतृत्व में आरबीआई द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह ने बैंकों के लिए कुछ विशिष्ट मानकों की अनुशंसा की है जिनकी सहायता से वे कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित 16 क्षेत्रों में तनावग्रस्त ऋण खातों का निपटान कर सकते हैं। योजना के तहत पुनर्गठन वाले खातों को एनपीएल नहीं माना गया है और ऐसे खातों के लिए 10 फीसदी का प्रावधान करना जरूरी है। ऐसे खातों को पुनर्गठन के लिए चिह्नित किया गया लेकिन चूंकि मार्च के अंत तक प्रक्रिया पूरी न हो सकी इसलिए वे एनपीएल की श्रेणी में आएंगे।
अधिकांश बैंकों की स्थिति इतनी मजबूत है कि वे फंसे हुए कर्ज को बरदाश्त कर लें लेकिन कर्जदारों को दिक्कत होगी क्योंकि एक बार डिफॉल्टर का ठप्पा लगने के बाद कोई उन्हें ऋण नहीं देगा। असंगठित क्षेत्र के छोटे कारोबार और व्यापारी समुदाय महामारी की दूसरी लहर से सर्वाधिक प्रभावित है। सरकार ने पहले ही इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम को तीन महीने के लिए बढ़ाकर 30 जून तक कर दिया है और इसका दायरा बढ़ाकर संकटग्रस्त उपक्रमों को इसमें शामिल कर दिया है। कुल 3 लाख करोड़ रुपये की गारंटी रहित ऋण योजना में ऐेसे कर्जदारों को शामिल किया गया है जिनका बकाया 500 करोड़ रुपये तक हो।
पुनर्गठन की व्यवथा मार्च के अंत में समाप्त हो गई थी लेकिन आरबीआई इसे तीन माह के लिए बढ़ा सकती है। खासतौर पर छोटे कर्जदारों के लिए। इसके अलावा सरकार असंगठित क्षेत्र के लिए एक नई योजना पर भी विचार कर सकती है।
वह तथाकथित फस्र्ट लॉस डिफॉल्ट (एफएलडी यानी जहां कर्जदार के चूकने पर तीसरा पक्ष ऋण चुकाता है) के लिए 10 फीसदी की गारंटी दे सकती है ताकि बैंक कर्ज दें। यह कर्ज शहरी इलाके के कारोबारियों को दिया जा सकता है जहां सरकार के प्रतिबंधों के कारण कारोबार ठप हैं। ऐसे ऋण 25,000 रुपये तक की छोटी राशि के हो सकते हैं। ऐसे में डिफॉल्ट होने पर सरकार पर प्रति ऋण 2,500 रुपये का बोझ आएगा।
देश में 5.8 करोड़ छोटे कर्जदार हैं। यदि प्रत्येक चार में से एक को ऋण चाहिए तो अनुमान लगा सकते हैं कि 25,000 रुपये के हिसाब से बैंकों पर कम ही बोझ आएगा। वहीं 10 फीसदी एफएलडी गारंटी के साथ यह बहुत अधिक नहीं होगा।
फिलहाल वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता सुरक्षित है लेकिन महामारी की दूसरी लहर आ चुकी है। क्या हमें प्रतिक्रिया देने के लिए परिदृश्य के पूरी तरह उभरने की प्रतीक्षा करनी चाहिए या फिर सरकार की ओर से ऐसे विकल्प तलाशने चाहिए जिनके तहत आरबीआई बैंकों को रियायत दे ताकि वे असंगठित क्षेत्र की मदद कर सकें? यह क्षेत्र देश में रोजगार और वृद्धि के लिए अहम है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment