आखिरकार अमेरिका को समझ में आ गया कि कोविड महामारी से जंग में टीकों की कितनी अहमियत है। उसने आश्वासन दिया है कि कोविशील्ड वैक्सीन बनाने में जो खास चीजें जरूरी होती हैं, उन्हें वह भारत को फौरन मुहैया कराएगा। इनके निर्यात पर अमेरिका ने रोक लगा दी थी। कोविड वैक्सीन के मामले में इस साल जनवरी में अमेरिका ने 1950 की कोरिया वॉर के दिनों का एक कानून लागू कर दिया। उस कानून का मकसद था युद्ध में काम आनेवाले साजोसामान की आपूर्ति की दिक्कतें दूर करना। बाद के दिनों में नेशनल इमर्जेंसी की हालत में भी यह कानून लागू करने की मंजूरी दी गई। जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका ने इसे लागू कर दिया कोविड वैक्सीन के मामले में। टीके बनाने में काम आने वाली करीब 37 चीजों का निर्यात रोक दिया गया ताकि अमेरिका में फाइजर, बायोएनटेक और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों के टीके जोरशोर से बनाए जा सकें। ये खास चीजें यूरोप की कंपनियां भी बनाती हैं, लेकिन वे बड़ी सप्लायर नहीं हैं। लिहाजा भारत और यूरोप में टीके बना रही कंपनियां दिक्कत में फंस गईं। कोविशील्ड बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने निर्यात खोलने की गुहार लगाई बाइडेन से, तो कोवैक्सीन बना रही भारत बायोटेक के सीएमडी डॉ कृष्णा एल्ला ने भी चिंता जताई। अपील विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी की और कहा कि भारत दुनिया की मदद करता है तो अब दुनिया को भारत की मदद करनी चाहिए। यहां तक कि खुद बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर से भी रोक के खिलाफ आवाज उठने लगी। यूरोप की कंपनियां तो रोक के खिलाफ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन चली गईं।
आखिर में भारत और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत से राह निकली। अमेरिका ने तय किया है कि कोविशील्ड बनाने में काम आने वाली चीजों की आपूर्ति भारत को जल्द की जाएगी। दूसरे जीवन रक्षक उपकरण भी भेजेगा अमेरिका। अमेरिका पहले ही करोड़ों डोज के लिए कंपनियों से करार कर चुका है। एस्ट्राजेनेका के टीके के दो करोड़ डोज उसके पास पड़े हुए हैं। ऐसे में कच्चे माल का निर्यात रोकने का फैसला कहीं से भी जायज नहीं था। खैर, जो बाइडेन को याद आ गया कि महामारी के शुरुआती दौर में भारत ने अमेरिका की मदद की थी। उन्होंने ट्वीट किया कि जरूरत के वक्त अब मदद करने की बारी अमेरिका की है। अमेरिका को यह भी याद आया होगा कि सीरम केवल भारत के लिए कोविशील्ड नहीं बना रही। उसका एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों के काम आएगा। वैक्सीन डिप्लोमैसी के मोर्चे पर भी अमेरिका की भद पिट रही थी। अच्छा है कि अमेरिका ने समय रहते यह बात समझ ली कि महामारी से जंग अकेले-अकेले नहीं, मिलकर लड़नी होगी क्योंकि एक भी व्यक्ति असुरक्षित रह गया तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। लेकिन अभी यह अधूरा कदम है। सिर्फ कोविशील्ड नहीं, सभी वैक्सीनों के कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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