By डॉ अश्विनी महाजन
लंबे समय से एनपीए (नाॅन परफार्मिंग एसेट्स) की समस्या से जूझ रहे बैंकों की मुश्किलों को आसान करने के तमाम प्रयास चल रहे हैं. केंद्रीय बजट में सुझाया गया एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) यानी ‘बैड बैंक’ का प्रावधान भी एक और प्रयास कहा जा सकता है. सबसे पहले सरकार इन्साॅल्वेंसी एंड बैंकरप्सी (आइबीसी) एक्ट लेकर आयी और पहली बार दिवालियापन के लिए कोई ठोस कानूनी पहल की गयी.
माना गया कि इससे ‘इज आॅफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार होगा, क्योंकि नुकसान के कारण देनदारी नहीं चुका पाने की स्थिति में (यानी दिवालिया होने पर) परिसंपत्तियों को आसानी से बेच कर व्यक्ति छुटकारा पा सकता है. साथ ही, इसका लाभ यह था कि बैंकों के लिए भी अपनी बैलेंसशीट साफ रखना संभव हो पायेगा. उसके उपरांत देखा गया कि पिछली सरकारों के समय दिये गये कर्ज की अदायगी में कोताही होने के कारण बैंकों की आर्थिक हालत बिगड़ने के कारण उन्हें पूंजीगत मदद की भी जरूरत है. सरकार ने पिछले वर्षों में अपने खजाने से अब तक 2.5 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, ताकि बैंकों के घाटे की भरपाई हो सके.
इन प्रयासों से बैंकों को डूबने से तो बचा लिया गया, लेकिन एनपीए की समस्या बनी रही. हालांकि बैंकों के एनपीए जो 2017-18 तक आते-आते 11.2 प्रतिशत तक पहुंच गये थे, सितंबर 2020 तक वे 7.5 प्रतिशत तक कम हो गये थे, लेकिन पिछले वर्ष कोविड महामारी के कारण व्यवसायों को नुकसान के चलते ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि सितंबर 2021 तक वे फिर से बढ़ जायेंगे.
रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के हवाले से पता चलता है कि वे 13.5 प्रतिशत तक भी बढ़ सकते हैं. अदालती आदेश के अनुसार जिन ऋणों की अदायगी कोरोना के चलते आगे बढ़ा दी गयी थी, उच्चतम न्यायालय ने उन्हें एनपीए घोषित करने पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब न्यायालय ने इस रोक को हटा दिया है, तो बैंकों को उन ऋणों को एनपीए घोषित करना पड़ेगा. इससे एनपीए में भारी वृद्धि हो सकती है. जानकारों का मानना है कि कोविड के कारण उत्पन्न अन्य समस्याओं का भी प्रभाव एनपीए पर पड़ सकता है.
जब अमेरिका में 2007-08 में बैंक धराशायी हो रहे थे, उस समय अमेरिका के राजस्व विभाग ने बैंकों के उन ऋणों को खरीद लिया, जिनकी वापसी नहीं हो पा रही थी तथा बाद में बाजार ठीक होने पर उन्हें बेहतर कीमत पर बेच दिया. इस उपक्रम में विभाग को फायदा ही हुआ. लगभग वैसा ही कदम भारत सरकार उठाने जा रही है, जिसे एआरसी का नाम दिया गया है.
यह कंपनी सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन एंड एनफोर्समेंट और सिक्योरिटीज इंटरेस्ट एक्ट, 2002 के अंतर्गत स्थापित होगी. इसकी स्थापना हेतु उस कंपनी के पास स्वयं स्वामित्व की 100 करोड़ की राशि होना जरूरी है. जिन दबावग्रस्त परिसंपत्तियों को यह कंपनी खरीदेगी, उसके 15 प्रतिशत के बराबर उसके पास पूंजी अनुपात का होना जरूरी होगा.
बैंकों को उस परिसंपत्ति के मूल्य का 15 प्रतिशत नकद प्राप्त होगा और शेष 85 प्रतिशत राशि उसे बॉन्ड और ऋण पत्र के रूप में प्राप्त होगी, जिसकी देयता अधिकतम छह वर्ष की होगी. अपने कार्य हेतु एआरसी डिबेंचर और बॉन्ड तो जारी कर ही सकता है, इसके साथ वह प्रतिभूति (सिक्योरिटी) रसीद भी जारी कर सकता है. इस वित्त की मदद से बैड बैंक (एआरसी) दबावग्रस्त ऋणों को खरीद सकेगा.
खरीदने के बाद एआरसी के पास वे तमाम अधिकार होंगे, जो बैंक के पास थे, यानी वह उन ऋणों का पुनर्गठन या पुननिर्धारण कर सकता है, समाधन कर सकता है, ऋणी के व्यवसाय को बेच सकता है या लीज पर दे सकता है अथवा प्रबंधन को बदल सकता है, लेकिन इसके लिए ऋण दाताओं के 75 प्रतिशत और एआरसी की सहमति जरूरी होगी. यह भी प्रश्न उठता है कि इंसोलवेंसी और बैंकरप्सी कोड (आइबीसी) और एआरसी में अंतर क्या है?
दोनों का उद्देश्य एनपीए से छुटकारा पाना ही है, लेकिन समझना होगा कि आइबीसी उधारी के समाधान के लिए बनाया गया है ताकि एक समयबद्ध तरीके से ऋणी जो ऋण नहीं चुका पाते, उन्हें दिवालिया घोषित करते हुए समाधान निकल सके. गौरतलब है कि आइबीसी से पहले इस काम में वर्षों लग जाते थे. दूसरी तरफ, एआरसी का मकसद एनपीए ऋणों को बेच कर बैंकों की बैलेंसशीट को जल्द से जल्द साफ करने का है. दोनों के माध्यम से बैंको की समस्याओं को कम करने का प्रयास हो रहा है.
लेकिन आलोचकों का मानना है कि एआरसी से भी समस्या का समाधान नहीं होगा. अधिकतर बैंक सरकारी क्षेत्र में हैं और एआरसी भी सरकारी स्वामित्व में होगा. ऐसे में एक सरकारी संस्था से दूसरी सरकारी संस्था को ऋणों के हस्तांतरण से विशेष अंतर नहीं पड़ेगा. लेकिन समझना होगा कि बैंकों के आत्मविश्वास को बढ़ाने हेतु उनके एनपीए का हस्तांतरण दूसरी संस्था को करना एक अच्छा कदम हो सकता है.
साथ ही, विशेष दक्षता प्राप्त करने के बाद एआरसी एनपीए ऋणों से अधिकाधिक वसूली कर सकेगा. अमेरिका के राजस्व विभाग का उदाहरण हमारे सामने है. आशा करनी चाहिए कि धीरे-धीरे एआरसी दक्षता हासिल कर बैंकों की बैलेंसशीट को भी साफ करने में सहायक होगा और अपने निवेशकों के लिए लाभ भी कमा सकेगा. आइबीसी के प्रयास से भी यह बेहतर साबित हो सकता है.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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