द. 24 परगना (पश्चिम बंगाल) से मुकेश केजरीवाल
कोलकाता के व्यस्त, विशाल 'मां' फ्लाईओवर के दोनों ओर चमचमाते-जगमगाते इलाके हों या दक्षिण 24 परगना के जयनगर के छोटे से श्रीपुर गांव की गंवई गलियां...एक तस्वीर, एक नारा और एक चिह्न ही आपको पूरे पश्चिम बंगाल में चप्पे-चप्पे पर दिखेगा। गांवों में फर्क सिर्फ इतना होगा कि इनका आकार छोटा होगा। प्रचार में भाजपा अगर मास्टर है तो ममता उनकी भी बड़ी दीदी साबित हो रही हैं। हर ओर मौजूद प्रचार, प्रचार में छवि, छवि में संदेश और संदेश में सटीकता... सब जैसे भाजपा की किताबों से उतारा गया हो। कुछ तैयारी और कुछ अपने शासन का जोर... तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के प्रचार को कोने में सिमटा दिया है। हालांकि यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे प्रचार का हार-जीत में सीमित रोल ही होता है।
उठ रहे सवाल-
पूरे राज्य में पटे पड़े इन होर्डिंग को पार्टियों के कार्यकर्ता गर्व से अपनी बढ़त का सबूत बता रहे हैं। यहां के बारीपुर कॉलेज में पढऩे वाले गौतम सवाल उठाते हैं, इतने गरीब राज्य में इन होर्डिंग पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करना कहां तक ठीक है। इसी तरह मगराहाट पूर्व के माकपा उम्मीदवार चंदन साहा कहते हैं, तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों उद्योगपतियों की पार्टी है। हम लोग जनता से चंदा लेते हैं और ये लोग अडानी, अंबानी से। जनता समझ रही है।
चुनावी नारे चढ़ रहे जुबान पर-
बंगाल चुनाव में लोगों की जुबान पर सबसे ज्यादा चढ़ा है, 'खेला होबे'। तृणमूल ने इसी बोल से फास्ट बीट पर रैप सॉन्ग तो बाद में बनाया, पहले से ही वे इसका इस्तेमाल भाजपा वालों को चिढ़ाने के लिए करते रहे हैं। जयनगर के दुर्गापुर मोड़ पर चंदा बिस्वास मुस्कुराते हुए कहती हैं, 'जानेन ना? ऐटी राजनैतिक बिद्रूप' (यह राजनीतिक व्यंग्य है)। फिर वे कहती हैं कि राज्य में खेल-कूद से लोगों को बहुत लगाव है, इसलिए चुनावी जुमले भी इसी पर गढ़े जा रहे हैं।
चुनाव खर्च सीमा से बेपरवाह-
आप देश के किसी भी हिस्से में चले जाइए, हाल के चुनावों में आपको लगातार प्रचार के ऐसे रंग हल्के होते दिखे हैं क्योंकि हर झंडे, पोस्टर और बैनर के खर्च का हिसाब देना होता है। लेकिन यहां खास तौर पर सत्तारूढ़ तृणमूल वालों को इसकी कोई परवाह नहीं दिख रही। पांच-छह युवक निकलते हैं और सामने आने वाले मकानों की जो भी दीवार, छज्जे या छत पसंद आ जाती हैं, वहां बड़े-बड़े पोस्टर टिका देते हैं। ना तो इन पर यह ब्योरा दर्ज है कि कितनी संख्या में छापे गए हैं और ना ही जिसकी इमारत पर लगाया जाता है, उससे कोई सहमति ली जाती है।
मां की जगह बेटी...
दस साल पहले दीदी ने 'मां, माटी, मानुष' का नारा देकर वाम दलों को बाहर किया था। इस बार प्रचार सामग्री में ममता की मुस्कुराती तस्वीर है और इन पर सिर्फ एक ही नारा है- 'बांग्ला निजेर मेयकेई चाय' यानी बंगाल को खुद अपनी बेटी ही चाहिए। वैसे तो 66 साल की मुख्यमंत्री दीदी के नाम से बुलाई जाती हैं, लेकिन खुद को बेटी बताने से ज्यादा उनका इरादा भाजपा के चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाहरी बताने का है। भाजपा का प्रचार जहां मोदी की तस्वीर पर केंद्रित है। इसमें गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष को भी शामिल किया गया है।
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