ऋतु सारस्वत, स्तंभकार और समाजशास्त्री
वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की हालिया जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी ने लैंगिक असमानता को और भी बढ़ा दिया है। रिपोर्ट बताती है कि अब महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता आने में करीब 136 वर्ष लग जाएंगे। वहीं आर्थिक असमानता खत्म होने में 250 से अधिक वर्ष लगेंगे। आर्थिक असमानता का एक बहुत बड़ा कारण महिला और पुरुष के बीच वेतन का एक बड़ा अंतर है। विश्व का शायद ही ऐसा कोई देश हो जो कि वैधानिक स्तर पर समान कार्य के लिए समान वेतन की पैरवी ना करता हो, बावजूद इसके यह अंतर निरंतर कायम है और यह स्थिति विकासशील देशों से लेकर विकसित देशों तक समान रूप से व्याप्त है। इसका सीधा और स्पष्ट कारण है पुरुष सत्तात्मक समाज में महिलाओं को कम आंकने की प्रवृत्ति। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 23 प्रतिशत तक कम वेतन मिलता है। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि यह स्थिति केवल अकुशल महिला श्रमिकों में ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड से लेकर कॉर्पोरेट दुनिया और खेल के मैदान तक अपने पांव पसारे हुए है।
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2011-12 में औसतन समान कार्य के लिए पुरुषों की जैसी योग्यता होने के बावजूद उनकी तुलना में महिलाओं को 34 प्रतिशत कम भुगतान किया गया। इस तथ्य पर सहज कोई विश्वास नहीं करेगा कि धार्मिक कार्यों में संलग्न महिलाओं को भी पुरुषों से अपेक्षाकृत कम वेतन मिलता है। यही स्थिति दुनिया भर में महिला खिलाडिय़ों की भी है। असमान वेतन के संदर्भ में सदैव ही अतार्किक तथ्य दिए जाते हैं और उनकी बौद्धिक एवं शारीरिक क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न खड़े किए जाते हैं। अमूमन महिला खिलाडिय़ों को समान वेतन ना देने के विरुद्ध भी यह तर्क दिया जाता है कि महिलाएं पुरुषों के शारीरिक बल के समक्ष कमजोर हैं। यह तय है कि महिलाएं किसी भी स्तर पर पुरुषों से कमतर नहीं हैं, परंतु पुरुष सत्तात्मक वैश्विक व्यवस्था के गले से यह बात नहीं उतरती। इसीलिए महिलाओं को हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती है।
सौजन्य - पत्रिका।
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