दिल्ली समेत देश के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन संकट से कोरोना संक्रमित मरीजों के मौत की खबरें विचलित करने वाली हैं। इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि लोग जीवन बचाने अस्पताल में जायें और उन्हें मौत मिले। एक तो हमने कोरोना संकट की आसन्न दूसरी लहर का आकलन करके तैयारी नहीं की, दूसरे केंद्र व राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर टकराव और भेदभाव की खबरें परेशान करने वाली हैं। देश में ऑक्सीजन सिलेंडरों को लेकर मारे-मारे फिरते मरीजों के तीमारदार तथा टैंपों-टैक्सी और एंबुलेंसों में ऑक्सीजन लगाये बैठे हताश मरीज लाचारी की त्रासद तस्वीर दर्शाते हैं। ऑक्सीजन संकट के बीच दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल तथा शुक्रवार की रात दिल्ली स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में दर्जनों मरीजों की मौत ने देश को स्तब्ध किया। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब से भी ऐसी खबरें सामने आईं। शायद ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा को देखते हुए ही दिल्ली हाईकोर्ट को सरकारों को फटकार लगानी पड़ी। कोर्ट ने तल्ख शब्दों में कहा कि दिल्ली के लिये बढ़ाये ऑक्सीजन के कोटे की निर्बाध आपूर्ति में यदि कोई बाधा डालेगा तो अधिकारियों को सख्त दंड दिया जायेगा। हालात बड़े परेशान करने वाले हैं, अस्पताल में मरीजों को इसलिये भर्ती नहीं किया जा रहा है कि ऑक्सीजन का संकट बना हुआ।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी कई राज्यों के उच्च न्यायालयों में ऑक्सीजन संकट पर जारी सुनवाई पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे राष्ट्रीय आपातकाल कहा और ऑक्सीजन आपूर्ति और दवाओं के वितरण की राष्ट्रीय योजना मांगी। जाहिरा बात है कि समय रहते ऑक्सीजन संकट के समाधान की कोशिश नहीं हुई। जनता की बेबसी का फायदा उठाते हुए अगर दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और शासन-प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है तो इसे तंत्र की नाकामी ही माना जायेगा। जब सरकारें दायित्व निभाने में विफल रहती हैं तो अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ता है। बाद में गृह मंत्रालय को राज्यों को निर्देश देने पड़े कि यदि ऑक्सीजन आपूर्ति में राज्यों के बीच आवाजाही में किसी तरह की बाधा उत्पन्न होती है तो इसके लिये डीएम और एसपी जिम्मेदार होंगे। बहरहाल, देश ने ऑक्सीजन का ऐसा भयावह संकट पहले कभी नहीं देखा। अस्पतालों में कोहराम मचा है। बताया जा रहा है कि बीते वर्ष अप्रैल में जब देश में कोरोना के गिने-चुने मामले थे, अधिकारियों के एक एम्पावर्ड समूह की बैठक में देश में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाया गया था। स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों की स्थायी संसदीय समिति ने भी इस आसन्न संकट की ओर ध्यान खींचा था। समिति ने अक्तूबर, 2020 में राज्यसभा सभापति को इस बाबत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। जाहिर बात है कि हम इस आसन्न संकट को लेकर तैयारी करने में चूके हैं। यह ठीक है कि सामान्य दिनों में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग कम होती है, लेकिन संक्रमण संकट को महसूस करते हुए विषम परिस्थितियों के लिये तैयार रहना चाहिए था।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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