परमाणु हथियारों के बाद साइबर हमलों से पैदा होती जंग (बिजनेस स्टैंडर्ड)


देवांशु दत्ता  

शीतयुद्ध और नाभिकीय क्षमता ने युद्ध के सिद्धांत को नई दिशा प्रदान की। साल 1950 से 1991 के बीच, बार बार ऐसी परिस्थितियां बनीं, जब किसी भी ओर से परमाणु हमले की शुरुआत की जा सकती थी। उदाहरण के लिए, कोरियाई युद्ध और क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान ऐसी आंशका उत्पन्न हो गई थी। किसी तरह की गलती या विरोधी द्वारा दुर्घटनावश परमाणु अस्त्र प्रक्षेपित किए जाने से ऐसा हो सकता था।

जापान के हिरोशिमा पर परमाणु हमले के 75 साल बाद भी, किसी के पास परमाणु हमलों के खिलाफ कोई विश्वसनीय रक्षा प्रणाली नहीं है। अगर कभी भी परमाणु अस्त्रों का युद्ध में उपयोग किया जाता है, तो जीवन से जुड़े भारी नुकसान और भौतिक विनाश निश्चित हैं। म्युचुअल अश्योर्ड डिस्ट्रक्शन (एमएडी) तीन तरीकों से हमले की क्षमता (तीसरा तरीका होगा, ध्रुवीय बर्फ के नीचे छिपी परमाणु पनडुब्बियों द्वारा हमला करना।) होने से पृथ्वी को कई बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त नाभिकीय अस्त्र मौजूद हैं।


बड़े हमले और प्रतिशोध के युद्ध के परिदृश्यों के अलावा, शीतयुद्ध के रणनीतिकारों ने सोचा कि कुछ जानकारी साझा करना और विरोधियों से बात करना ऐसी परिस्थितियों में उपयोगी रहेगा। यदि दोनों पक्षों को पता हो कि विरोधी पक्ष बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम है तो हमलों की संभावना कम होगी। विपक्षी को एक तरह से उनकी सीमाएं बताना काफी कारगर था। क्रेमलिन और व्हाइट हाउस के बीच हॉटलाइन और सामरिक शस्त्रों को सीमित करने पर वार्ता एक आकस्मिक विश्व युद्ध से बचने के अन्य सुरक्षा उपाय थे।


वर्तमान में साइबर-युद्ध इसमें एक नया आयाम जोड़ता है। परमाणु हथियारों के विपरीत, कोई भी बहुत कम लागत के साथ साइबर-शस्त्रागार का निर्माण कर सकता है। हर जगह लोग कंप्यूटर और स्मार्टफोन के लिए एक ही ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं, और हार्डवेयर भी मानकीकृत है। कोडिंग का जानकार कोई भी कम उम्र का लेकिन स्मार्ट बच्चा साइबर हमलों को अंजाम दे सकता है।


इसके विपरीत, साइबर हमले के अपराधियों का पता लगाने के लिए अत्यधिक तकनीकी विश्लेषण की जरूरत होती है। यह राज्य द्वारा प्रायोजित साइबर हमलों को कूटनीतिक रूप से अस्वीकार्य बनाता है। कई सरकारी एजेंसियों ने साइबर-जासूसी और निगरानी के लिए तथा विनाशकारी हमलों से बचाव के लिए क्षमताओं को विकसित किया है। कुछ ने हैकरों की भर्ती करके निजी क्षमताओं में भी इजाफा किया है।  


जबकि साइबर हमले में लोगों को सीधे नहीं मारा जाता लेकिन वे बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकते हैं। यूक्रेन की बिजली व्यवस्था कई बार बंद हो चुकी है। बैंकिंग सिस्टम को निशाना बनाया जा चुका है। बंदरगाहों को निशाना बनाया जा चुका है। ब्रिटिश नैशनल हेल्थ सर्विस को निशाना बनाया जा चुका है। सैकड़ों नगर निकायों को हैक करके फिरौती देने के लिए मजबूर किया गया है। ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम को हाईजैक कर लिया गया है। मेट्रो प्रणालियों को बंद कर दिया गया है। यूक्रेन और जॉर्जिया में सरकारी सर्वर से अहम डेटा हटाया गया। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने के अलावा कई मामलों में सीधे चुनाव के बुनियादी ढांचे को हैक करने का प्रयास किया गया है।


परमाणु हमलों और साइबर हमलों में एक बात समान है वह यह कि इनके खिलाफ कोई विश्वसनीय बचाव नहीं है। विशिष्ट प्रणालियों को मजबूत किया जा सकता है। लेकिन यहां तक ​​कि ईरानी परमाणु प्रतिष्ठान जैसी अत्यधिक संरक्षित प्रणालियों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया गया है।


समाज के साथ बहुत गहराई के साथ जुड़ी नई तकनीकों को अब दूर करना लगभग असंभव है। विशेषकर जब हर व्यक्ति कम या अधिक मात्रा में डिजिटल सेवाओं का उपयोग करता है और घरेलू उपकरण भी इंटरनेट से जुड़े हैं। उपकरणों में निहित खरबों लाइन के कोड में यह भी पता लगाना असंभव है कि किसी दिए गए सिस्टम से कितना समझौता किया गया है और वह कितना असुरक्षित हो सकता है।


साइबर हथियारों की दौड़ पर लिखी अपनी हालिया पुस्तक में, निकोल पर्लरोथ ने दावा किया है कि साइबर उपकरणों के आक्रामक उपयोग के लिए अमेरिकी बजट, साइबर हमलों के खिलाफ रक्षा के लिए आवंटित बजट से अधिक है। यही कारण है कि एक आक्रामक साइबर-शस्त्रागार का निर्माण करना इससे बचाव की तुलना में बहुत आसान है।


यह एक नया क्षेत्र है जहां नए प्रतिमानों को समझने के लिए युद्ध के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए। किसी भी आधुनिक संघर्ष में, साइबर तत्त्व अहम होगा और पारंपरिक सैन्य क्षमता को लक्षित करने के लिए साइबर हमले निश्चित रूप से प्रतिबंधित नहीं होंगे।


रणनीतिक विचारकों को साइबर हमलों, इसकी वृद्धि और प्रतिशोध के परिदृश्यों से जूझना होगा। देशों को दूसरे युद्ध और तीसरे युद्ध के समतुल्य साइबर क्षमता को विकसित करना होगा और संभावित विरोधियों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उनके पास जवाबी कार्रवाई करने की विश्वसनीय क्षमता है।


आइंस्टान ने कहा था, 'मुझे नहीं पता कि तीसरा विश्व युद्ध किन हथियारों से लड़ा जाएगा, लेकिन चौथा विश्व युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा।' यदि तीसरा विश्व युद्ध साइबर हथियारों से लड़ा जाता है तो आइंस्टाइन की यह भविष्यवाणी सही साबित हो सकती है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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