सहारा टीकों का (जनसत्ता)

विदेशी टीकों को मंजूरी देने की प्रक्रिया में सरकार ने जो बदलाव किया है, वक्त को देखते हुए उसे उचित ही कहा जाएगा। अब तय यह हुआ है कि विदेशी टीकों को मंजूरी-नामंजूरी का फैसला तीन दिन में होगा। इस फैसले के पीछे मकसद यही लगता है कि दुनिया की प्रमुख टीका निर्माता कंपनियां भारत आएं और उत्पादन शुरू करें। इस समय भारत सहित दुनिया भर में टीकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। देश में ही रोजाना करोड़ों टीके चाहिए। ऐसे में उत्पादन बढ़ाए बिना टीकों की पूर्ति संभव नहीं हो सकती। और उत्पादन तभी बढ़ेगा जब ज्यादा से ज्यादा कंपनियां बाजार में मौजूद हों। सिर्फ एक दो कंपनियों के सहारे यह काम संभव नहीं है। दुनिया की कई बड़ी कंपनियों ने कोरोना टीके बना लिए हैं और उन्हें अमेरिका, यूरोपीय संघ के देशों सहित कई देशों ने अपने यहां आपात इस्तेमाल की मंजूरी भी दे दी है। हाल में भारत ने रूस में बने टीके स्पूतनिक को मंजूरी दी थी। कई और कंपनियों के टीके भी भारत आने की तैयारी में हैं।

किसी भी देश में विदेशी टीके और उसके परीक्षण को मंजूरी देने की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है। इसके बाद ही वह उस देश में टीके का परीक्षण किया जा सकता है। सरकार ने जो नए नियम बनाए हैं, उनके तहत अब कोई भी विदेशी टीका निर्माता कंपनी अपनी भारतीय इकाई या एजेंट के जरिए सीधे केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन के समक्ष अर्जी लगा सकेगी। इस पर तीन दिन में हां या ना का फैसला हो जाएगा। अगर मंजूरी मिल गई तो उस कंपनी को प्रमाणपत्र और आयात लाइसेंस भी तत्काल दे दिए जाएंगे। इसके बाद कंपनी को तीस दिन के भीतर नैदानिक परीक्षण भी शुरू करने होंगे। अभी तक होता यह था कि इस प्रक्रिया में महीनों लग जाते थे। विदेशी टीका निर्माता कंपनी को आपात इस्तेमाल की मंजूरी से पूर्व अलग-अलग हिस्सों में आबादी पर इसका परीक्षण भी करना अनिवार्य था। लेकिन फिलहाल टीकों की बढ़ती मांग को देखते हुए यह बंदिश ढीली कर दी गई है।

अब आपात इस्तेमाल के साथ ही यह परीक्षण भी चलता रहेगा। अगर टीके इसमें खरे साबित हुए तो केंद्रीय औषधि प्राधिकार इन्हें औपचारिक रूप से हरी झंडी देगा और फिर ये कंपनियां किसी भी भारतीय साझीदार के साथ मिल कर उत्पादन कर सकेंगी। गौरतलब है कि शुरू में आपात इस्तेमाल के लिए कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साथ फाइजर ने भी आवेदन किया था, लेकिन बाद में फाइजर ने अर्जी वापस ले ली थी।


यह तो सही है कि विदेशी कंपनियों के आने से टीकों की तात्कालिक कमी एक हद तक दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि ये टीके कितने कारगर, कितने सुरक्षित और कितने मंहगे-सस्ते होंगे, इस पर आगे भी सोचना पड़ेगा। खून में थक्के बनने की शिकायतों के बाद अमेरिका ने ही जॉनसन एंड जॉनसन के टीके पर प्रतिबंध लगा दिया। कई यूरोपीय देशों में भी कुछ टीकों के इस्तेमाल को रोक दिए जाने की खबरें चिंता पैदा करती हैं। इसलिए भारत में जो भी विदेशी टीका पहले सौ लोगों को दिया जाएगा, उन पर सात दिन निगरानी रखनी पड़ेगी।


टीका पूरी तरह सुरक्षित पाए जाने पर ही उसे मंजूरी मिलेगी। और रही बात टीके के महंगे-सस्ते होने की तो यह भी कोई छोटा मसला नहीं है। महंगा टीका हर आदमी के बूते में नहीं होगा। हाल फिलहाल टीका ही इकलौता उपाय दिख रहा है। लेकिन याद रखना चाहिए कि इस वक्त ज्यादातर टीकों को आपात मंजूरी ही मिली है, ऐसे में पक्के तौर पर इनके सुरक्षित होने का दावा फिलहाल कोई नहीं कर सकता।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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