एक और टीका (जनसत्ता)

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की विषय विशेषज्ञ समिति ने रूस के टीके स्पूतनिक को भारत में इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। इस वक्त हम महामारी के जिस भयावह दौर से गुजर रहे हैं, उसमें तीसरा टीका मिल जाना बड़ी राहत है। भारत में अभी सिर्फ दो टीकों कोवैक्सीन और कोविशील्ड का ही आपात इस्तेमाल हो रहा है।

एक सौ उनतालीस करोड़ से ज्यादा की आबादी का टीकाकरण करने के लिए जरूरी है कि देश में बड़े पैमाने पर टीकों का उत्पादन हो। ऐसे वक्त में जब संक्रमण की रफ्तार नित नए कीर्तिमान बना रही हो, हालात पर काबू पाने के लिए असरदार टीके ही कारगर हथियार साबित हो सकते हैं। इसके अलावा, पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से टीकों की अचानक से किल्लत देखने को मिली है, उससे भी टीकाकरण अभियान को धक्का लगा है। इसलिए जितनी जल्दी और ज्यादा टीके आएंगे और लोगों का टीकाकरण होगा, उतनी ही जल्दी हम कोरोना से मुक्ति पाने की दिशा में बढ़ सकेंगे।

कोरोना की दस्तक के बाद से ही कई देश टीके तैयार करने में जुट गए थे। रूस भी उन देशों में शुमार था जिसने सबसे पहले टीका बना लेने का दावा किया था। उसने पिछले साल अगस्त में ही इसे अपने यहां लगाना शुरू कर दिया था। भारत में इस टीके के चिकित्सकीय परीक्षण और वितरण के लिए देश की दवा कंपनी डॉ रेड्डीज लैब ने पिछले साल सितंबर में रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड के साथ भागीदारी शुरू की थी और डेढ़ हजार स्वयंसेवियों पर तीसरे चरण का परीक्षण किया।

स्पूतनिक टीके को लेकर उम्मीदें इसलिए भी ज्यादा हैं कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड के मुकाबले इसके ज्यादा असरदार होने का दावा किया जा रहा है। तीसरे चरण के परीक्षण में इसके इनक्यानवे फीसद से ज्यादा प्रभावी होने की बात कही जा रही है। जबकि कोवैक्सीन और कोविशील्ड अस्सी फीसद प्रभावी बताए गए हैं। अब तक उनसठ देश स्पूतनिक टीके के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दे चुके हैं और यूरोपीय संघ भी जल्द ही इसे मंजूरी देने की तैयारी में है।

भारत में टीकों की मांग और उत्पादन के बीच काफी बड़ा अंतर बना हुआ है। कोवैक्सीन और कोविशील्ड मिला कर चार करोड़ खुराक महीने का उत्पादन है। रोजाना पैंतीस लाख से ज्यादा टीके लगाए जा रहे हैं, यानी हमें लगभग सात करोड़ खुराक हर महीने और चाहिए। फिर, भारत दूसरे देशों को भी टीकों का निर्यात कर रहा है। ऐसे में और टीकों की सख्त जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता। जल्दी ही बड़े पैमाने पर टीकों का उत्पादन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हर व्यक्ति को टीके की दो खुराक दी जानी हैं और ऐसे में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि एक खुराक के बाद उसे दूसरी खुराक समय से मिल जाएगी। टीकों की यह कमी तभी दूर हो सकती है जब कई कंपनियां इसके उत्पादन में जुटें।

कहने को भारत की गिनती दुनिया के प्रमुख टीका निर्माताओं में होती है, लेकिन अब अचानक से जरूरत आ पड़ी है और ऐसे में सिर्फ अपने देश के लिए ही अरबों टीके चाहिए। इस वक्त भारत में दस करोड़ से ज्यादा लोगों को टीका लग चुका है। लेकिन भयावह तथ्य यह है कि संक्रमण से सबसे ज्यादा ग्रस्त पांच राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल और पंजाब में पंद्रह फीसद आबादी को भी टीका नहीं लग पाया है। जाहिर है, टीकाकारण में सबसे बड़ी बाधा टीकों की कमी है। ऐसे में स्पूतनिक और भविष्य में आने वाले दूसरे टीके लोगों की जान बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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