प्रदर्शन की सार्थकता? ( बिजनेस स्टैंडर्ड)

टी. एन. नाइनन  

एक लोकप्रिय विरोध प्रदर्शन जो अखबारों की सुर्खियों से हट चुका है उसके विफल होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। दिल्ली के इर्दगिर्द किसानों की कम होती तादाद को देखिए। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में 20 माह की कड़ाई के सफल होने के संकेत हैं। हालांकि जब तक कड़ाई लागू है तब तक कोई अनुमान लगाना जोखिम भरा है लेकिन कुछ बातें निर्विवाद हैं। आखिरी बार आपने लोकपाल के बारे में कब सुना था? सन 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रदर्शनकर्ताओं की प्रमुख मांग यही थी। सोवियत संघ के पतन के बाद जब दुनिया की कई सरकारें संवेदनशील दौर से गुजर रही थीं तब कश्मीरी अलगाववादियों को लगा था कि उन्हें आसानी से जीत मिलेगी। उन्होंने यह नहीं सोचा होगा कि अगले तीन दशक में लोगों को भीषण प्रताडऩा से गुजरना होगा और उनकी स्वायत्तता भी छिन जाएगी।


हकीकत यह है कि राज्य सत्ता ने स्वयं को अधिक आक्रामक ढंग से प्रभावी बनाया है। यहां तक कि सड़कों पर होने वाले जनांदोलन भी एक के बाद एक विभिन्न देशों में नाकाम हो रहे हैं। म्यांमार, बेलारूस, चीन का हॉन्गकॉन्ग और रूस इसके उदाहरण हैं। इसकी तुलना सन 2000 से 2012 के बीच यूगोस्लाविया और यूक्रेन, जॉर्जिया और किर्गिजस्तान में कलर रिवॉल्यूशन (पूर्व सोवियत संघ के विभिन्न देशों में हुए आंदोलन) तथा अरब उभार से कीजिए जिसमें ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया और यमन में लंबे समय से काबिज सत्ताधारी उखाड़ फेंके गए। दुनिया के अन्य हिस्सों में व्यापक आंदोलन का भी यही हाल रहा। पूर्व सोवियत संघ के देशों में हुए आंदोलन मोटे तौर पर शांतिपूर्ण रहे लेकिन इसके बावजूद वहां चुनावी धोखाधड़ी के आरोपी अलोकप्रिय नेताओं को हटाने में कामयाबी मिली। परंतु अब म्यांमार में इसका उलट देखने को मिल रहा है जहां सेना ने हस्तक्षेप किया क्योंकि उसे चुनाव नतीजे रास नहीं आए। देश के प्रदर्शनकारी गोलियों का सामना करने को तैयार हैं। बेलारूस में 30,000 लोगों को हिरासत में लिया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। राज्य की बर्बरता ने अलेक्सान्द्र लुकाशेंको जैसे शासकों को सत्ता में बने रहने में मदद की जबकि उनके पूर्ववर्ती 15 वर्ष पहले भाग खड़े हुए थे। यूगोस्लाविया में प्रतिबंध कारगर साबित हुए थे लेकिन ईरान और रूस उनसे बेअसर रहे। म्यांमार के पिछले और मौजूदा दोनों शासनों पर प्रतिबंध लगाए गए लेकिन दोनों ही अवसरों पर यह बेअसर रहे। कुछ देशों में इन बंदिशों ने प्रतिबंध लगाने वाली अर्थव्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुंचाया है। शायद परिदृश्य में इस बदलाव को बदलते शक्ति संतुलन से समझा जा सकता है। एक संक्षिप्त एक ध्रुवीय समय में अमेरिकी प्रभाव ने केंद्रीय यूरोप और कॉकेशस के देशों में सत्ता परिवर्तन में मदद की। उस दौर में बर्लिन की दीवार ढही थी और रूस इस स्थिति में नहीं था कि अपने आसपास हालात नियंत्रित कर सके। अब ऐसा नहीं है। रूस और चीन यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अमेरिका समर्थित लोकतंत्र आंदोलन और व्यवस्था परिवर्तन दोहराए न जाएं। रूस ने विपक्षी नेता एलेक्सी नावन्ली को जेल में डाल दिया है और सीरिया में अमेरिका को रोक दिया है। तुर्की में रेचेप एर्दोआन पश्चिम को नाराज करते हैं लेकिन राष्ट्रपति पुतिन से उनके रिश्ते काफी मधुर हैं। बेलारूस में लुकाशेंको के सफल समर्थन के बाद पुतिन ने म्यांमार में भी दखल दिया है। उन्होंने किर्गिजस्तान में सत्ता परिवर्तन की राह बनाई और लीबिया में परोक्ष हस्तक्षेप किया। चीन भी अब हॉन्गकॉन्ग में अंब्रेला क्रांति (प्रदर्शनकारियों ने छातों का इस्तेमाल किया था) को बरदाश्त करने का इच्छुक नहीं दिखता। उसे शिनच्यांग में बरती गई कड़ाई को लेकर पश्चिम की प्रतिक्रियाओं की भी परवाह नहीं है।


क्रांति की शुरुआत करना, उसे राह दिखाने की तुलना में आसान है। यही कारण है कि कई जगह सत्ता परिवर्तन निरंकुश शासकों को हटाने वाले नागरिकों के लिए बेहतर नहीं साबित हुआ। किर्गिजस्तान में 2005 की ट्यूलिप क्रांति के बाद से हिंसा और अशांति बरकरार है। लीबिया की हालत खराब है, मिस्र में एक अधिनायकवादी शासक की जगह दूसरे ने ले ली है और यमन गृह युद्ध में उलझा है। सीरिया बरबाद हो चुका है, लेबनान का 2005 की सीडर क्रांति के बाद देश शासन लायक रह नहीं गया। यूक्रेन में विक्टर यानुकोविच को हटा दिया गया लेकिन वह सत्ता में वापस आए। यह बात और है कि उन्हें फिर हटा दिया गया। इतिहास बताता है कि क्रांति अपनी ही संतानों को खा जाती हैं। यदि आप विडंबना तलाश रहे हैं तो अजरबैजान प्रदर्शनकारियों को दूर रखने में कामयाब रहा जबकि पड़ोसी देश अर्मेनिया की सरकार 2018 में सत्ता से बेदखल कर दी गई। परंतु अजरबैजान ने हाल ही में अर्मेनिया के साथ एक छोटी लड़ाई में जीत हासिल की है। ऐसे में सवाल यह है कि कौन सा प्रदर्शन, कहां का लोकतंत्र, किसकी क्रांति और किस कीमत पर सफलता?

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment