पिछले वर्ष कोरोना ने जब अचानक दस्तक दी तो पूरी दुनिया थम गई थी। सदियों में किसी को कभी ऐसा भयावह अनुभव नहीं हुआ था। तमाम तरह की अटकलें और अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। एक दूसरे देशों पर कोरोना फैलाने का आरोप लगने लगे। चीन को सबने निशाना बनाया। पर कुछ तो राज की बात है कोरोना कि दूसरी लहर में। जब भारत की स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्था लगभग अस्त–व्यस्त हो गई है तो चीन में इस दूसरी लहर का कोई असर क्यों नहीं दिखाई दे रहाॽ क्या चीन ने इस महामारी के रोकथाम के लिए अपनी पूरी जनता को टीके लगवा कर सुरक्षित कर लिया हैॽ
कोविड की पिछली लहर आने के बाद से ही दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इसके मूल कारण और उसका तोड़ निकालने की मुहिम छेड़ दी थी। पर भारत में जिस तरह कुछ टीवी चौनलों और राजनैतिक दलों ने कोविड फैलाने के लिए तब्लीगी जमात को जिम्मेदार ठहराया और उसके सदस्यों को शक की नजर से देखा जाने लगा वो बड़ा अटपटा था। प्रशासन भी उनके पीछे पड़ गया। जमात के प्रांतीय अध्यक्ष के खिलाफ गैर जिम्मेदाराना भीड़ जमा करने के आरोप में कई कानूनी नोटिस भी जारी किए गए। दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया गया। यही मान लिया गया कि चीन से निकला यह वायरस सीधे तब्लीगी जमात के कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए ही आया था। ये बेहद गैर–जिम्मेदाराना रवैया था। माना कि मुसलमानों को लIय करके भाजपा लगातार हिंदुओं को अपने पक्ष में संगठित करने में जुटी है। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि जानता के बीच गैरवैज्ञानिक अंधविश्वास फैलाया जाए।
जो भी हो शासन का काम प्रजा की सुरक्षा करना और समाज में सामंजस्य स्थापित करना होता है। इस तरह के गैर जिम्मेदाराना रवैये से समाज में अशांति और अराजकता तो फैली ही‚ जो ऊर्जा और ध्यान कोरोना के उपचार और प्रबंधन में लगना चाहिए थी वो ऊर्जा इस बेसिरपैर के अभियान में बर्बाद हो गई। हालत जब बेकाबू होने लगे तो सरकार ने कड़े कदम उठाए और लॉकडाउन लगा डाला। उस समय लॉकडाउन का उस तरह लगाना भी किसी के गले नहीं उतरा। सबने महसूस किया कि लॉकडाउन लगाना ही था तो सोच–समझकर व्यावहारिक दृष्टिकोण से लगाना चाहिए था। क्योंकि उस समय देश की स्वास्थ्य सेवाएं इस महामारी का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए देश भर में काफी अफरा–तफरी फैली‚ जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा करोड़ों गरीब मजदूरों को झेलना पड़ा। बेचारे अबोध बच्चों के लेकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने गांव पहुंचे। लॉकडाउन में सारा ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं पर ही केंद्रित रहा‚ जिसकी वजह से धीरे धीरे स्थित नियंत्रण में आती गई। उधर वैज्ञानिकों के गहन शोध के बाद कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली और टीका अभियान भी चालू हो गया‚ जिससे एक बार फिर समाज में एक उम्मीद की किरण जागी। इसलिए सभी देशवासी वही कर रहे थे जो सरकार और प्रधानमंत्री उनसे कह रहे थे। फिर चाहे कोरोना भागने के लिए ताली पीटना हो या थाली बजाना। पूरे देश ने उत्साह से किया। ॥ ये बात दूसरी है कि इसके बावजूद जब करोड़ों का प्रकोप नहीं थमा तो देश में इसका मजाक भी खूब उड़ा। क्योंकि लोगों का कहना था कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था‚ लेकिन हाल के कुछ महीनों में जब देश की अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर चलने लगी थी तो कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से उम्मीद तोड़ दी है। आज हर तरफ से ऐसी सूचनाएं आ रही हैं कि हर दूसरे घर में एक न एक संक्रमित व्यक्ति है। अब ऐसा क्यों हुआॽ इस बार क्या फिर से उस धर्म विशेष के लोगों ने क्या एक और बड़ा जलसा कियाॽ या सभी धर्मों के लोगों ने अपने–अपने धार्मिक कार्यक्रमों में भारी भीड़ जुटा ली और सरकार या मीडिया ने उसे रोका नहींॽ तो क्या फिर अब इन दूसरे धर्मावलम्बियों को कोरोना भी दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएॽ ये फिर वाहियात बात होगी। कोरोना का किसी धर्म से न पहले कुछ लेनादेना था न आज है। सारा मामला सावधानी बरतने‚ अपने अंदर प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने और स्वास्थ्य सेवाओं के कुाल प्रबंधन का है‚ जिसमें कोताही से ये भयावह स्थित पैदा हुई है। इस बार स्थित वाकई बहुत गम्भीर है। लगभग सारे देश से स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने की खबरें आ रही है।
संक्रमित लोगों की संख्या दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ रही है और अस्पतालों में इलाज के लिए जगह नहीं है। आवश्यक दवाओं का स्टॉक काफी स्थानों पर खत्म हो चुका है। नई आपूर्ति में समय लगेगा। श्मशान घाटों तक पर लाइनें लग गई हैं। स्थिति बाद से बदतर होती जा रही है। मेडिकल और पैरा मेडिकल स्टाफ के हाथ पैर फूल रहे हैं। इस अफरा–तफरी के लिए लोग चुनाव आयोग‚ केंद्र व राज्य सरकारों‚ राजनेताओं और धर्म गुरुओं को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं‚ जिन्होंने चुनाव लड़ने या बड़े धार्मिक आयोजन करने के चक्कर में सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया। आम जनता में इस बात का भी भारी आक्रोश है कि देश में हुक्मरानों और मतदाताओं के लिए कानून के मापदंड अलग–अलग हैं। जिसके मतों से सरकार बनती है उसे तो मास्क न लगाने पर पीटा जा रहा है या आर्थिक रूप से दंडित किया जा रहा है‚ जबकि हुक्मरान अपने स्वार्थ में सारे नियमों को तोड़ रहे हैं।
सोशल मीडिया पर नावæ का एक उदाहरण काफी वायरल हो रहा है। वहां सरकार ने आदेश जारी किया था कि १० से ज्यादा लोग कहीं एकत्र न हों पर वहां की प्रधानमंत्री ने अपने जन्मदिन की दावत में १३ लोगों को आमंत्रित कर लिया। इस पर वहां की पुलिस ने प्रधानमंत्री पर १.७५ लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया‚ यह कहते हुए अगर यह गलती किसी आम आदमी ने की होती तो पुलिस इतना भारी दंड नहीं लगाती‚ लेकिन प्रधानमंत्री ने नियम तोड़ा‚ जिनका अनुसरण देश करता है‚ इसलिए भारी जुर्माना लगाया। प्रधानमंत्री ने अपनी गलती मानी और जुर्माना भर दिया। हम भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताते हुए नहीं थकते पर क्या ऐसा कभी भारत में हो सकता हैॽ हो सकता तो आज जनता इतनी बदहाली और आतंक में नहीं जी रही होती।
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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