‘कोरोना से लड़ाई में’ ‘भारत आया अर्श से फर्श पर’ (पंजाब केसरी)

भारत कोविड-19 की दूसरी भयावह लहर के साथ संघर्ष कर रहा है। कहीं ऑक्सीजन के लिए मदद की गुहार लगा रहा है कहीं अस्पताल में एक बैड के लिए पुकार है, तो कोई दवाइयां ढूंढ रहा है। यहां तक कि इलाज के अभाव में रोगी का निधन होने पर श्मशान घाट में जगह और अंतिम संस्कार के लिए भी अब मदद चाहिए। दूसरी लहर की शुरूआत

भारत कोविड-19 की दूसरी भयावह लहर के साथ संघर्ष कर रहा है। कहीं ऑक्सीजन के लिए मदद की गुहार लगा रहा है कहीं अस्पताल में एक बैड के लिए पुकार है, तो कोई दवाइयां ढूंढ रहा है। यहां तक कि इलाज के अभाव में रोगी का निधन होने पर श्मशान घाट में जगह और अंतिम संस्कार के लिए भी अब मदद चाहिए। दूसरी लहर की शुरूआत के संकेत 1 अप्रैल से दिखाई दे रहे थे। इसके पीछे क्या कारण थे? लोग, सरकार, योजना आयोग, नौकरशाहों की नीतियां, कुम्भ मेला, चुनावी रैलियां, रमजान या सबकी अति-संतुष्ट व निशिं्चत मानसिक स्थिति कि कोरोना संक्रमण समाप्त हो गया है। यह सब घर से बाहर निकलने की व्याकुलता के कारण ऐसा हुआ! 

1 से 20 अप्रैल तक 20 दिनों में देश का चेहरा बदल गया! किसने इस स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है, यह एक ऐसा मामला है जिसे गहराई से देखने  और जांचने की जरूरत है। फिलहाल तो पीड़ितों की मदद करने का समय है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से कोशिश की है कि न केवल दिल्ली में बल्कि अन्य जगहों में भी जहां इसकी जरूरत है, ऑक्सीजन की सप्लाई फिर से सामान्य की जा सके, और सरकार भी इसके लिए रेलों तथा हवाई जहाज से लेकर पुलिस और यहां तक कि सेना की मदद भी ले रही है।

भारतीय वायुसेना ने अपने पांच तरह के विमानों तथा हैलीकॉप्टरों को कोविड-19 के बिगड़ते हालात के बीच तैनात किया है जो लगातार देश के अलग-अलग हिस्सों में ऑक्सीजन से लेकर दूसरे जरूरी सामान की सप्लाई शुरू कर चुके हैं। जल्द से जल्द विभिन्न राज्यों तक ऑक्सीजन टैंकर विमानों से पहुंचाए जाने लगे हैं। भारतीय वायुसेना के विमान विदेशों से भी ऑक्सीजन लाने लगे हैं जिनमें सिंगापुर शामिल है। डिफैंस रिसर्च डिवैल्पमैंट ऑर्गेनाइजेशन (डी.आर.डी.ओ.) तथा डिफैंस पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग्स (डी.पी.एस.यूज) भी राहत कार्यों में दिन-रात जुटे हुए हैं। डी.आर.डी.ओ. ने कई शहरों में अत्याधुनिक कोविड अस्पतालों की स्थापना की है और आगे भी कर रही है। 

ऐसे हालात में भारत की मदद के लिए बहुत से देश भी आगे आए हैं। उदाहरणस्वरूप जर्मनी। टाटा ग्रुप ने जर्मन कम्पनी ङ्क्षलडे के सहयोग के साथ 24 ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट टैंकों को पाने में सफलता हासिल की है जिन्हें ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत में एयरलिफ्ट किया जाएगा। जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने कहा है कि उनकी सरकार भारत के लिए आपातकालीन मदद करने की तैयारी कर रही है। वहीं रिलायंस ग्रुप ने भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा गुजरात जैसे राज्यों, जहां पर कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं, में प्रतिदिन 700 टन से ज्यादा ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। 

जहां एक ओर यू.पी. के व्यवसायी मनोज गुप्ता ने कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए एक रुपए की लागत से ऑक्सीजन सिलेंडरों को रिफिल करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है, वहीं सिलीकॉन वैली के उद्यमी विनोद खोसला ने भी ऑक्सीजन के आयात को लेकर फंड देने का प्रस्ताव रखा। फ्रांसिसी गैस अग्रणी कम्पनी एयर लिक्विेड एस.ए. भारत में अपने औद्योगिक  ग्राहकों से ऑक्सीजन लेकर भारत के अस्पतालों में इसकी आपूर्ति कर रही है। इंगलैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का कहना है कि वह भारत की मदद करने के लिए तरीकों पर विचार कर रहे हैं। उनके अनुसार भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी है और उसे दी जाने वाली मदद में वैंटीलेटर तथा इलाज के लिए जरूरी अन्य चीजें शामिल हो सकती हैं। 

इंगलैंड की विदेश मंत्री लीसा नैंडी ने कहा कि यू.के. को भारत की हर तरह से सम्भावित मदद करनी चाहिए। उनके अनुसार यू.के. ‘जीनोम सीक्वैंसिंग’ तथा ‘एपिडेमियोलॉजी’ जैसे क्षेत्रों में भारत की मदद कर सकता है। वहीं पाकिस्तान के स्वयंसेवी समूह ‘अब्दुल सत्तार ईदी फाऊंडेशन’ ने कोविड-19 की दूसरी लहर से लड़ाई में भारत की मदद के लिए 50 एम्बुलैंस तथा सपोर्ट स्टाफ भेजने की पेशकश की है। संस्था ने भारत में अपनी एम्बुलैंसों, सपोर्ट स्टाफ, ड्राइवरों, तकनीशियनों तथा अन्यों के प्रवेश के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी फैसल ईदी ने कहा, ‘‘भारत में हमारी जड़ें हैं। हमने सोचा है कि अपने पड़ोसी की ओर हमें मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए।’’

चीन ने भी संकट की इस घड़ी में भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है। अमरीका की बात करें तो वैक्सीन तैयार करने वाले कच्चे माल के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों को हटाने के लिए फिलहाल वह किसी तरह का वायदा करने से कतरा रहा है परंतु सीनेटर एड मार्की का कहना है कि भारत की मदद करना अमरीका की ‘नैतिक जिम्मेदारी’ है। गौरतलब है कि गत वर्ष कोरोना की शुरूआत के बाद से ही भारत दुनिया की फार्मेसी बन गया था, जहां भारत ने हाइड्रोक्लोरोक्विन सबको भिजवाई वहीं पर 2020-21 के वित्तीय वर्ष के पहले 10 महीनों में पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुनी ऑक्सीजन जरूरतमंद देशों को निर्यात की। भारत जो पूरे अफ्रीका, यूरोप और अन्य पूर्व एशियाई देशों में वैक्सीन की आपूर्ति कर रहा था, आज यह अर्श से फर्श पर आ गया है।

यह एक सबक है सरकार और भारत के लोगों के लिए जिसे सीखने की जरूरत है। महामारी इतनी जल्दी कहीं नहीं जा रही। अनेक देशों में इसकी तीसरी लहर भी आ चुकी है। ऐसे में केवल हमें ऐसे इंतजाम करने होंगे जिनसे निर्माण, उत्पादन, वितरण की देश भर में विशेष प्रणालियां पर्याप्त रूप में मजबूती से स्थापित की जा सकें। 

सौजन्य - पंजाब केसरी।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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