‘चंद आदर्श गांवों की कहानी’ जो ‘दूसरों के लिए बन रहे मिसाल’ (पंजाब केसरी)

हमारे अधिकांश गांव उपेक्षित और जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं परंतु इसके बावजूद चंद गांवों की पंचायतें देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास करते हुए लोक कल्याणकारी कदम उठाकर एक मिसाल पैदा कर रही हैं जिसके

हमारे अधिकांश गांव उपेक्षित और जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं परंतु इसके बावजूद चंद गांवों की पंचायतें देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास करते हुए लोक कल्याणकारी कदम उठाकर एक मिसाल पैदा कर रही हैं जिसके चंद उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

* तेलंगाना के निजामाबाद जिले में गोदावरी नदी के किनारे स्थित ‘नालेश्वर’’ नामक गांव के प्रत्येक परिवार के सभी सदस्य चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए हर सोमवार को उपवास रखते हैं।
* पंजाब के मोगा जिले के गांव ‘रणसींह कलां’ की पंचायत एन.आर.आई. भाईचारे के आर्थिक सहयोग से विधवाओं, बुजुर्गों और विकलांगों को पैंंशन, स्वास्थ्य बीमा आदि की सुविधाएं प्रदान कर रही है। 

‘नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार’ व ‘दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार’ से सम्मानित यह पंचायत 70 जरूरतमंद विधवाओं, बुजुर्गों व विकलांगों को 750 रुपए मासिक पैंशन दे रही है। 
पंचायत छोटे किसानों को पराली न जलाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए 500 रुपए प्रति एकड़ क्षतिपूर्ति भी दे चुकी है। इसने अपना खुद का सीवरेज सिस्टम स्थापित करने के अलावा एक सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट भी लगाया है, जिसके द्वारा साफ किए हुए पानी को 100 एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 

* श्रीनगर के गांदरबल जिले का ‘बाबा वाईल’ नामक गांव श्रीनगर का एकमात्र गांव है जहां गत 30 वर्षों से विवाह में फिजूलखर्ची, दहेज और आभूषण लेने पर पूर्ण पाबंदी है और हर समारोह सादगी से सम्पन्न होता है। कन्या पक्ष को कोई खर्च नहीं करना पड़ता। दूल्हे का परिवार लड़की वालों को खर्च के लिए 50,000 रुपए देता है। गांव के बुजुर्ग पंचायत के कामकाज पर नजर रखते हैं ताकि दहेज का लेन-देन न हो। पिछले 30 वर्षों में यहां घरेलू हिंसा और दहेज का एक भी मामला सामने नहीं आया। 

* मोगा के ‘साफूवाला’ गांव में 45 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों ने कोरोना का टीका लगवा लिया है और इस प्रकार यह शत-प्रतिशत वैक्सीनेशन का लक्ष्य प्राप्त करने वाला पंजाब का पहला गांव बन गया है। हाल ही में एक दिन में 45 वर्ष से अधिक आयु के 330 गांववासियों ने टीका लगवाया। 
* मध्य प्रदेश के दमोह जिले के ‘हिनौता’ नामक गांव की पंचायत ने इस क्षेत्र में होने वाली चुनावी सभाओं में भीड़ के कारण संक्रमण का खतरा देखते हुए अपने यहां स्वैच्छिक कफ्र्यू लगा कर बाजार आदि बंद कर दिए। 

* मध्य प्रदेश में ही बैतूल के ‘बाचा’ गांव की पंचायत ने भी ‘स्वैच्छिक जनता कफ्र्यू’ लगा कर बाहरी लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है।
* गुजरात के ‘मेहसाणा’ जिले के ‘टरेटी’ नामक गांव में ‘सामुदायिक स्टीम बूथ’ बनाया गया है, जहां गांववासियों को गिलोय, नीम, अदरक और लौंग जैसी चीजों को उबाल कर तैयार किए गए औषधियुक्त और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले घोल की भाप मुफ्त देने की व्यवस्था की गई है। 

* राजस्थान में सीकर जिले के ‘सुखपुरा’ गांव में पंचायत द्वारा किए गए सुरक्षात्मक उपायों का गांववासियों द्वारा सख्ती से पालन किए जाने के कारण पिछले 13 महीनों के दौरान कोरोना का एक भी केस नहीं आया। विभिन्न ग्राम पंचायतों द्वारा स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए उपवास, विधवाओं और विकलांगों को पैंंशन व स्वास्थ्य सुविधाएं, दहेज पर रोक और कोरोना पर नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम बहुत ही अनुकरणीय हैं। इस समय जबकि गांवों में भी कोरोना ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं तथा बिहार में पटना जिले के ही 100 गांव इसकी चपेट में आ गए हैं, गांवों में सुरक्षात्मक उपायों में तेजी लाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि यदि गांवों में कोरोना फैल गया तो इस पर रोक लगाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। 

ऐसे में कोरोना से बचाव के लिए ‘नालेश्वर’, ‘बाबा बाइल’, ‘साफूवाला’, ‘बाचा’, ‘हिनौता’, ‘टरेटी’ और ‘सुखपुरा’ आदि गांवों द्वारा उठाए जा रहे कदम दूसरों के लिए मिसाल हैं। देश के बाकी गांवों में भी ऐसे कदम जल्दी से जल्दी उठाने की जरूरत है ताकि इस खतरे को विकराल रूप धारण करने से रोका जा सके क्योंकि हमारे गांवों में कोरोना से बचाव के लिए जरूरी सुविधाएं तो एक ओर, अस्पताल और डाक्टर तक उपलब्ध नहीं हैं।—विजय कुमार 

सौजन्य - पंजाब केसरी।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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