रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने सर्वसम्मति से यह निर्णय किया है कि नीतिगत रीपो दर को अपरिवर्तित रखा जाएगा। यह कदम आशा के अनुरूप ही है। समिति ने वृद्धि को बल देने के लिए समायोजन वाला रुख बरकरार रखने का भी निर्णय किया है। कोविड-19 के मामलों में तेज बढ़ोतरी के कारण बीते कुछ सप्ताह में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया खतरे में पड़ती नजर आ रही है। विभिन्न राज्यों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जो प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं वे मांग को प्रभावित करेंगे। दिए गए संदर्भों में आरबीआई ने यथास्थिति बरकरार रखकर अच्छा किया है। बहरहाल नीतिगत राह आने वाली तिमाहियों में शायद इतनी सीधी सपाट न रहे। कोविड के मामलों में इजाफा और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय हालात भी अनिश्चितता बढ़ा सकते हैं।
केंद्रीय बैंक ने चालू वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के अनुमान को 10.5 फीसदी पर बरकरार रखा है। यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ताजा पूर्वानुमान से कम है लेकिन हालिया टीकाकरण कार्यक्रम के बावजूद वायरस का अनिश्चित व्यवहार वृद्धि का जोखिम बढ़ा सकता है। इस बीच एमपीसी का अनुमान बताता है कि मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष में 4 फीसदी के ऊपर निकल जाएगी। हालांकि आशा यही है कि यह एक तय सीमा में रहेगी लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में आपूर्ति शृंखला के बाधित होने से भी महत्त्वपूर्ण जोखिम पैदा हो सकता है। वैश्विक जिंस कीमतों में इजाफा भी इसे प्रभावित करेगा। आईएमएफ का प्राथमिक जिंस सूचकांक अगस्त 2020 से फरवरी 2021 तक 29 फीसदी बढ़ा। कमजोर वृद्धि के साथ मुद्रास्फीति में संभावित वृद्धि आरबीआई की कठिनाई बढ़ा सकती है।
वृद्धि को जोखिम बढऩे का अर्थ यह होगा कि केंद्रीय बैंक को वित्तीय हालात लंबे समय तक सहज बनाए रखने होंगे। सरकारी उधारी की प्रक्रिया को सहजता से चलाना भी जरूरी होगा लेकिन इससे मुद्रास्फीति संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं। हाल के महीनों में व्यवस्था में औसतन 6 लाख करोड़ रुपये की नकदी रही और आरबीआई ने भी नकदी बरकरार रखने की प्रतिबद्धता जताई है। केंद्रीय बैंक द्वितीयक बाजार में सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम शुरू कर रहा है जहां वह खुले बाजार की गतिविधियों की प्रतिबद्धता जताएगा। इसके तहत केंद्रीय बैंक इस वर्ष की पहली तिमाही में द्वितीयक बाजार से एक लाख करोड़ रुपये मूल्य के सरकारी बॉन्ड खरीदेगा। अब तक केंद्रीय बैंक प्रतिफल को कम करने के लिए विशेष मुक्त बाजार गतिविधियों और विशिष्ट कदम घोषित करता रहा है। विचार यही है कि सरकारी उधारी कार्यक्रम का समर्थन किया जाए और बाजार दरों को सीमित रखा जाए। परंतु अतिशय नकदी की स्थिति के समायोजन की प्रतिबद्धता नीतिगत समायोजन को कठिन बना सकती है।
इसके अलावा आरबीआई को वैश्विक अर्थव्यवस्था के असर से भी निपटना है। कुछ विकसित देशों में सुधार की गति अनुमान से तेज है। खासकर अमेरिका में, इससे भी मुद्रास्फीति की चिंता बढ़ी है। आईएमएफ के ताजा वैश्विक पूर्वानुमान में कहा गया है कि कीमतों का दबाव नहीं रहेगा। कहा गया है कि विकसित देशों समेत मौद्रिक नीति ढांचे में सुधार से मुद्रास्फीति का खतरा कम हुआ है लेकिन इसमें एकरूपता नहीं है। लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि यदि मौद्रिक नीति का प्राथमिक इस्तेमाल मूल्य स्थिरता के बजाय सरकारी उधारी की लागत कम रखना है तो मुद्रास्फीति के अनुमान और मुद्रास्फीति में तेजी आ सकती है। आरबीआई को इस विषय में सावधान रहना होगा। वृद्धि सुनिश्चित करने और सरकारी उधारी की मदद करने के क्रम में कीमतों और वित्तीय स्थिरता के लक्ष्यों को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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