कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई है उसने इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि कैसे ऑक्सीजन, अस्पतालों में बिस्तर और दवाओं आदि की आपात व्यवस्था करना आवश्यक हो गया है। स्वास्थ्य योजनाएं बनाने वालों को इसमें एक चीज और जोडऩी चाहिए और वह है चिकित्सा कर्मियों की कमी दूर करना। हाल ही में आयोजित एक वेबिनार में हृदय के शल्य चिकित्सक और उद्यमी देवी शेट्टी ने उस संकट का ब्योरा दिया जिसने नीति निर्माताओं का ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने कहा कि कोविड संक्रमित हर मरीज के आधार पर माना जा सकता है कि पांच से 10 लोग ऐसे होंगे जो संक्रमित होंगे लेकिन उन्होंने जांच नहीं कराई होगी।
यानी यदि 3.50 लाख लोग जांच में संक्रमित मिल रहे हैं तो वे रोजाना 15 से 20 लाख लोगों को संक्रमित कर रहे होंगे। यदि मान लिया जाए कि इनमें से पांच फीसदी को आईसीयू बेड चाहिए तो भारत को रोज 80,000 आईसीयू बेड चाहिए जबकि फिलहाल देश भर में 75,000 से 95,000 आईसीयू बेड ही उपलब्ध हैं। यदि मान लिया जाए कि हर मरीज अस्पताल में औसतन 10 दिन बिताता है तो देश को ऐसे पांच लाख बेड तैयार करने होंगे। यह चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन असंभव नहीं है।
परंतु डॉ. शेट्टी कहते हैं कि मरीजों का इलाज बिस्तर नहीं करते। भारत को तत्काल चिकित्सकों, परिचारिकाओं तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता है ताकि कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जा सके। इस क्षेत्र में भी हम काफी पिछड़े हुए हैं। फिलहाल सरकारी अस्पतालों में चिकित्साकर्मियों की 78 फीसदी कमी है। यानी बोझ निजी अस्पतालों को उठाना पड़ रहा है। डॉ. शेट्टी के आकलन से भारत को अगले वर्ष कोविड-19 का प्रबंधन करने के लिए दो लाख परिचारिकाओं और 1.5 लाख चिकित्सकों की आवश्यकता होगी। इतनी कम अवधि में इतने काबिल लोग जुटाना लगभग असंभव है लेकिन इसके उपाय भी हमारे पास हैं। उदाहरण के लिए शेट्टी कहते हैं कि करीब 2.20 लाख परिचारिकाओं ने अपनी सामान्य नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कर ली है या मिडवाइफ की पढ़ाई की है अथवा बीएससी पास की है और वे परीक्षाओं की प्रतीक्षा में हैं। ये प्रशिक्षु अगर एक वर्ष तक कोविड-19 इकाइयों में काम करें तो उन्हें परीक्षा से छूट दी जानी चाहिए। इसके अलावा प्रोत्साहन स्वरूप उनसे यह वादा किया जाना चाहिए कि उन्हें सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी।
इसी प्रकार 1.30 लाख चिकित्सक नीट की प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि वे स्नातकोत्तर पढ़ाई कर सकेे। जबकि वहां केवल 35,000 सीट हैं। ऐसे में सुझाव यह है कि राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद को चाहिए कि जो चिकित्सक एक वर्ष तक कोविड-19 इकाइयों में काम करते हैं उन्हें अगले वर्ष की चयन प्रक्रिया में पास न होने पर अतिरिक्त अंक दिए जाएं। इसके अलावा 25,000 चिकित्सक अपना प्रशिक्षण पूरा कर चुके हैं लेकिन अब तक उनकी परीक्षाएं नहीं हुई हैं। कुछ हजार चिकित्सा विशेषज्ञ ऐसे भी हैं जिन्होंने हृदय रोग की गहन चिकित्सा या आपातसेवा में विशेषज्ञता का डिप्लोमा लिया है लेकिन इन्हें चिकित्सा परिषद की मान्यता नहीं है। यदि परिषद इन्हें मान्यता देती है तो कोविड आईसीयू प्रबंधन के लिए कई हजार काबिल पेशेवर मिलेंगे। इससे मौजूदा चिकित्सा कर्मियों को भी कुछ राहत मिलेगी जो एक साल से बिना रुके लगातार काम कर रहे हैं। वे पूरी तरह थक चुके हैं और अगर महामारी इसी तीव्रता से बनी रहती है तो शायद वे आगे चलकर मौद्रिक प्रोत्साहन भी स्वीकार न करें। युद्ध जैसे हालात में ऐसे ही कदम उठाए जाते हैं और कोविड-19 महामारी में भी ये कारगर हो सकते हैं क्योंकि हालात कमोबेश युद्ध जैसे ही हैं। यदि सरकार अगले संकट की प्रतीक्षा करने के बजाय इन सुझावों पर विचार करे तो अच्छा होगा।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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