महेश व्यास
श्रम के तीव्र आवृत्ति वाले आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि अप्रैल में श्रम बाजार की स्थिति बिगड़ती जा रही है। 30 दिवसीय दैनिक गतिमान औसत अनुमान और महीने के दौरान तीन प्रमुख श्रम बाजार अनुपातों के साप्ताहिक अनुमानों से यह स्पष्ट होता है। ये तीन अनुपात हैं-श्रम भागीदारी दर (एलपीआर), रोजगार दर और बेरोजगारी दर।
संदर्भ के लिए हम लिख रहे हैं कि मार्च 2021 में श्रम भागीदारी दर 40.2 प्रतिशत थी, रोजगार दर 37.6 प्रतिशत थी और बेरोजगारी दर 6.5 प्रतिशत थी। श्रम भागीदारी दर वर्ष 2019-20 के औसत से 2.5 प्रतिशत अंक कम थी और इसी अवधि की तुलना में रोजगार दर 1.8 प्रतिशत कम थी। बेरोजगारी दर वर्ष 2019-20 में 7.6 प्रतिशत के औसत से कम थी। अब अप्रैल महीने के अनुमान इन मापदंडों में गिरावट का संकेत दे रहे हैं।
अप्रैल में श्रमिक भागीदारी दर में गिरावट की संभावना नहीं दिख रही है। 30 दिवसीय गतिमान औसत एलपीआर संकेत देती है कि यह अनुपात 15 अप्रैल तक बढ़ रहा था, जब यह 40.8 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था। फिर इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई, लेकिन मार्च 2021 के स्तर के मुकाबले इसमें और गिरावट आने की संभावना नहीं है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि मार्च में एलपीआर में गिरावट बहुत तीव्र थी। इस बात की संभावना दिखती है कि यह अनुपात गिरते स्तर पर स्थिर हो जाएगा और अप्रैल में इसमें सुधार नहीं होगा। दिसंबर, जनवरी और फरवरी के दौरान यह एलपीआर 40.5 से 40.6 प्रतिशत के बीच थी। फिर मार्च में यह गिरकर 40.2 प्रतिशत पर आ गई। यहां से इसमें सुधार होने की संभावना नहीं है। 25 अप्रैल तक 30 दिवसीय गतिमान औसत 40.3 था। लेकिन इसमें मार्च का अंतिम सप्ताह और 4 अप्रैल को समाप्त होने वाला सप्ताह भी शामिल है, जिसमें 41.2 प्रतिशत की एलपीआर थी। 11 अप्रैल, 18 अप्रैल और 25 अप्रैल को समाप्त होने वाले बाद के तीन सप्ताह करीब 40.1 प्रतिशत की औसत एलपीआर दिखाते हैं। इसलिए अंतिम सप्ताह में जब तक कोई असामान्य उछाल नहीं आती, अप्रैल की एलपीआर मार्च के अपने 40.2 प्रतिशत स्तर पर स्थिर रहने की संभावना है।
लेकिन अप्रैल में बाजार 40.2 प्रतिशत एलपीआर पर श्रम की आपूर्ति खपाने में असमर्थ लगता है। हालांकि पिछले चार सप्ताह में एलपीआर में गिरावट आई है, लेकिन बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है। 28 मार्च को समाप्त होने वाले मार्च के अंतिम सप्ताह में यह एलपीआर 41.2 प्रतिशत थी और बेरोजगारी दर 6.7 प्रतिशत थी। 4 अप्रैल को समाप्त होने वाले इससे अगले सप्ताह में एलपीआर 41.2 पर स्थिर रही, लेकिन बेरोजगारी दर बढ़कर 8.2 प्रतिशत हो गई। अगले सप्ताह में श्रम पीछे खिसक गया, क्योंकि 11 अप्रैल को समाप्त होने वाले सप्ताह में एलपीआर घटकर 40.1 प्रतिशत रह गई। इसके बावजूद बेरोजगारी दर निर्मम बनी रही, क्योंकि यह बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई थी। अगले दो सप्ताह में इस बेरोजगारी दर में गिरावट आई है-पहले यह गिरकर 8.4 प्रतिशत हो गई और फिर 7.4 प्रतिशत। फिर भी मार्च का समापन 6.5 प्रतिशत पर होने के बाद अप्रैल के महीने के दौरान यह बेरोजगारी दर करीब आठ प्रतिशत रहने की संभावना है।
तीव्र आवृत्ति वाली सबसे महत्त्वपूर्ण श्रम सांख्यिकी-रोजगार दर के मामले में अप्रैल गिरावट वाला लगातार तीसरा महीना हो सकता है। सितंबर 2020 में यह रोजगार दर लॉकडाउन के बाद अपने शीर्ष स्तर 37.97 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। फिर यह लगातार तीन महीने तक गिरी, लेकिन जनवरी 2020 में दोबारा चढ़कर 37.94 प्रतिशत पर चली गई। फिर फरवरी और मार्च में इसमें गिरावट आई। अब ऐसा लगता है कि यह अप्रैल में भी गिरकर 37 प्रतिशत के कम स्तर पर आ जाएगी। 40.2 प्रतिशत की स्थिर दर पर श्रम को खपाने की श्रम बाजार की अक्षमता निम्न रोजगार दर में तब्दील हो जाती है।
कम रोजगार दर और कम श्रम भागीदारी दर काफी लोगों को अंतहीन राजनीतिक रैलियों और विशाल धार्मिक समागमों में हिस्सा लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ देती हैं। भारत के विस्तृत मतदान के दौर में लाखों लोग राजनीतिक रैलियों में भाग ले रहे हैं। रोजगार में लगे लोग इतनी विशाल रैलियों में भाग नहीं ले सकते हैं। आम तौर पर यह शाम का कोई ऐसा मामला नहीं होता है कि जिसमें कोई काम के बाद टहल सकता हो। इन रैलियों में कई लोगों को रोजगार मिल जाता है। कई लोगों को इन रैलियों में शामिल होने के लिए पैसा दिया जा सकता है। इससे बिना किसी रोजगार के ही आमदनी हो जाएगी। इसी तरह विशाल धार्मिक अनुष्ठानों में कारोबार और रोजगार रहता है। कोई इस बात की शर्त लगा सकता है कि राजनीतिक रैलियों का जितना बड़ा आकार होगा, बेरोजगारी दर उतनी ही अधिक होगी।
मार्च 2021 तक भारत में 4.38 करोड़ ऐसे लोग थे, जो बेरोजगार थे और काम करने के इच्छुक थे। अप्रैल में यह संख्या बढ़ चुकी होगी, क्योंकि एलपीआर (जो काम खोजने वाले लोगों का मापक है) के स्थिर रहने (बढ़ती आबादी पर) की उम्मीद है और बेरोजगारी दर बढ़ रही है। इन करीब 4.4 करोड़ लोगों में से तकरीबन 2.8 करोड़ लोग सक्रिय रूप से काम तलाश रहे थे, लेकिन कोई काम खोजने में असमर्थ रहे। शेष 1.6 करोड़ लोग काम के लिए उपलब्ध थे, लेकिन ये लोग सक्रिय रूप से काम नहीं तलाश रहे थे। यह बेरोजगार श्रम का एक बड़ा समूह है। इनमें ज्यादातर युवा हैं। इन 4.4 करोड़ लोगों में से 3.8 करोड़ लोग 15 से 29 वर्ष की आयु वाले हैं। उनमें से आधे, लगभग 2.2 करोड़ शुरुआती बीसवां दशा में हैं। यह अतिसंवेदनशील उम्र की एक बड़ी संख्या है।
अप्रैल 2021 में कोविड के मामलों में तेजी से होता इजाफा, स्वास्थ्य सेवाओं में नितांत कमी, बढ़ती मौतें और बढ़ती बेरोजगारी भी देखी गई है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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