केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार सुबह-सुबह यह ट्वीट करके सबको खुश कर दिया कि देश में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हो रहा। खुशी की वजह यह थी कि एक दिन पहले ही सरकार ने स्मॉल सेविंग्स स्कीम के इंटरेस्ट रेट में जबर्दस्त कटौती करने का ऐलान किया था। अगर ये इतना गंभीर मामला नहीं होता तो हल्के-फुल्के ढंग से यह सोचते हुए इसका मजा लिया जा सकता था कि सरकार ने अप्रैल फूल डे की पूर्वसंध्या पर लोगों के साथ ऐसा मजाक किया, जिसकी परिणति अगली सुबह एक सुखद अहसास में हुई। मगर करोड़ों लोगों की जिंदगी से जुड़े ऐसे फैसले हंसी-मजाक की चीज नहीं हो सकते। इसलिए जब वित्त मंत्री ने बढ़ोतरी का निर्णय वापस लेने की घोषणा करते हुए अपने ट्वीट में इसका कारण यह बताया कि ब्याज दरों में कटौती का फैसला गलती से ले लिया गया था, तो उस पर सहज ही विश्वास करना बहुतों के लिए मुश्किल हो गया। कई विपक्षी नेताओं ने तो आरोप लगाए कि फैसले की घोषणा करने के बाद सरकार को अहसास हुआ कि असम और पश्चिम बंगाल में हो रहे दूसरे दौर के मतदान में बीजेपी को इस फैसले का बड़ा नुकसान हो सकता है और इसीलिए सुबह-सुबह इसे वापस लेने की घोषणा कर दी गई।
इस आरोप में सचाई हो या न हो, अगर सरकार की तरफ से वित्त वर्ष के आखिरी दिन अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए ब्याज दरों में कटौती की घोषणा तय प्रक्रिया के मुताबिक की जाती है तो इसका साफ मतलब है कि सरकार में किसी न किसी स्तर पर इस पर सोच-विचार भी हुआ होगा। कोरोना महामारी के इस दौर में सरकारी राजस्व की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह भी स्पष्ट है कि सरकार अभी बहुत दबाव में है। लेकिन छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में ऐसी कटौती सरकार को अपना खर्च कम करने में थोड़ी सहायता भले करे, आम लोगों की बचत को बुरी तरह प्रभावित करेगी। खास तौर पर रिटायर्ड बुजुर्गों को, जिनका गुजारा जीवन भर की बचत पर मिलने वाले ब्याज से चलता है। वे अपनी बचत की रकम ऐसी ही छोटी बचत योजनाओं में लगाते हैं क्योंकि यहां रिटर्न तो ठीकठाक मिलता ही है, पैसा भी सुरक्षित रहता है। यूं भी इनमें कमी का सिलसिला पिछले कई बरसों से चला आ रहा है। अब अगर और कटौती होगी तो लोगों को अधिक रिटर्न के लिए शेयर बाजार जैसे ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्र में जाना पड़ेगा। ऐतिहासिक तौर पर शेयरों ने निवेश के दूसरे सभी जरियों से अधिक रिटर्न दिया है, लेकिन बाजार के असामान्य उतार-चढ़ावों को बर्दाश्त करना सबके बस की बात नहीं। दूसरी बात यह कि बाजार के अप्रत्याशित रूप से बैठ जाने की स्थिति में इन्हीं छोटी बचत योजनाओं में लगा पैसा इकॉनमी का सहारा भी बनता है। इसलिए बेहतर होगा कि तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए छोटी बचत योजनाओं पर कुल्हाड़ी चलाने जैसे उपायों से बचा जाए।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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