श्रम-रोजगार- रिकवरी में बचत एवं उपभोक्ता धारणा का उलझा खेल ( बिजनेस स्टैंडर्ड)

महेश व्यास 

मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के खत्म होने पर तगड़ी उपभोक्ता मांग सामने आएगी। इसका आधार यह है कि महामारी के दौरान बचत बढ़ी है जबकि उपभोक्ता कर्ज में कोई वृद्धि नहीं हुई है। ये निष्कर्ष अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस एवं चीन पर आधारित हैं।


भारत में भी परिवारों की बचत इसी तरह बढ़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक के मार्च 2021 बुलेटिन में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में परिवारों की वित्तीय बचत बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 21 फीसदी तक जा पहुंची जबकि 2018-19 और 2019-20 में यह क्रमश: 7.2 फीसदी और 8.2 फीसदी थी। आरबीआई के मुताबिक 2020-21 की दूसरी तिमाही में यह अनुपात घटकर जीडीपी के 10.4 फीसदी पर आ गया। अन्य वर्षों की तुलना में पिछले साल की पहली छमाही में घरेलू बचत की स्थिति बेहतर थी। उम्मीद है कि आवाजाही संबंधी बंदिशें खत्म होने पर इन देशों के लोग खर्च करने के लिए मजबूत स्थिति में होंगे।


मैकिंजी अध्ययन के मुताबिक अमेरिका में रिकवरी अनियमित हो सकती है। अमेरिका में उच्च आय वाले परिवार वित्तीय रूप से मजबूत हैं लेकिन निम्न आय वाले परिवारों को नौकरियां गंवाने के साथ आय का नुकसान भी झेलना पड़ा है।


उपभोक्ता खर्च में भारत की रिकवरी कैसी होगी? लॉकडाउन के दौरान भारत की बचत दर अमेरिका एवं ब्रिटेन की ही तरह दोगुनी हुई थी। इससे उन्हीं की तरह भारत के भी रिकवरी के अच्छे मौके दिखाई देते हैं। लेकिन अमेरिका की तरह भारत के पास भी निम्न आय वाला एक बड़ा तबका है जिसने नौकरियों के साथ आय भी गंवाई है। इससे रिकवरी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।


बचत की रकम बढऩे के अलावा उपभोक्ता धारणा भी रिकवरी की राह तय करने में अहम भूमिका निभाएगी। इस तरह अमेरिका सूझबूझ आधारित बहाली के लिए भारत की तुलना में बेहतर स्थिति में नजर आता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए उपभोक्ता धारणा सूचकांक मार्च 2020 में 11.8 फीसदी और अप्रैल में 19.4 फीसदी गिरा था। ये बड़ी गिरावट थी। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर महामारी का असर झलकता है। इसकी तुलना में भारत का उपभोक्ता धारणा सूचकांक मार्च 2020 में 7.9 फीसदी कम था लेकिन अप्रैल 2020 में इसमें 52.8 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी। इस तरह भारत में लॉकडाउन कहीं अधिक भयावह रहा।


अमेरिकी उपभोक्ता धारणा में गिरावट की काफी भरपाई हो चुकी है। मार्च 2021 में सूचकांक साल भर पहले की तुलना में 4.7 फीसदी नीचे था लेकिन अप्रैल 2019-मार्च 2020 के औसत स्तर की तुलना में 12 फीसदी कम था।


मार्च 2021 में भारत का उपभोक्ता धारणा सूचकांक साल भर पहले की तुलना में 41.9 फीसदी नीचे था और अप्रैल 2019-मार्च 2020 के औसत स्तर से 46.8 फीसदी तक कम रहा। इससे पता चलता है कि अमेरिका की तुलना में भारत में उपभोक्ता धारणा की बहाली काफी खराब रही है।


अमेरिका एवं भारत दोनों के उपभोक्ता धारणा सूचकांक एक ही पद्धति पर आधारित हैं। सीएमआईई ने वर्ष 2015 में एक करार के तहत मिशिगन यूनिवर्सिटी की उपभोक्ता सर्वेक्षण पद्धति को अपनाया। मिशिगन यूनिवर्सिटी 1950 के दशक से ही अमेरिका में उपभोक्ता धारणा सूचकांक नियमित तौर पर जारी करती है।


अमेरिका और भारत में परिवारों की बचत दर दोगुनी होने के बावजूद धारणा बहाली एकसमान नहीं है। शायद अमेरिका में बेरोजगारों को सरकार की तरफ से मजबूत वित्तीय समर्थन दिए जाने से उपभोक्ता धारणा बनाए रखने में मदद मिली। भारत में जरूरतमंदों तक सीधी मदद पहुंचाने की दर बेहद सामान्य रही है। लॉकडाउन के दौरान सरकार ने परिवारों तक नकद मदद पहुंचाई जिसमें ग्रामीण क्षेत्र प्रभावी था। यह मदद मनरेगा एवं पीएम-किसान योजनाओं के जरिये पहुंचाई गई।


कोरोना संकट के समय दी गई इस मदद का असर उपभोक्ता धारणा के वितरण पर भी दिखता है जो ग्रामीण परिवारों के पक्ष में झुका हुआ है। वर्ष 2019-20 की तुलना में शहरी उपभोक्ताओं की धारणा 51.4 फीसदी तक लुढ़क गई लेकिन ग्रामीण उपभोक्ता धारणा में गिरावट 44.3 फीसदी की ही रही है। यह वितरण भी अपेक्षाकृत संपन्न परिवारों के पलड़े में झुका हुआ है।


घरेलू बचत बढऩे की जो बात आरबीआई ने की है उसमें बड़ा हिस्सा तुलनात्मक रूप से संपन्न परिवारों का है। लिहाजा भारत में उपभोक्ता व्यय की बहाली के धनी परिवारों तक ही संकेंद्रित रहने का अनुमान है, बशर्ते धारणा बहुत खराब न हो। सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे से मिले आंकड़े बताते हैं कि पहले की तुलना में सभी आय वर्गों की हालत बिगड़ी है लेकिन संपन्न परिवारों की धारणा बाकियों से बेहतर है। यहां पर संपन्न परिवार का आशय साल भर में 10 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले से है। वर्ष 2019-20 के औसत की तुलना में मार्च 2021 में उपभोक्ता धारणा 46.8 फीसदी नीचे रही है। इस औसत के वितरण से तीन समूहों का पता चलता है। पहला, 4 लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों की उपभोक्ता धारणा 2019-20 की तुलना में करीब 43 फीसदी तक गिर चुकी है। वैसे कुल औसत से यह थोड़ा बेहतर है। दूसरा, 4 लाख से 10 लाख रुपये की सालाना आय वाले परिवारों की धारणा करीब 55 फीसदी तक लुढ़क चुकी थी। इस समूह के परिवारों की उपभोक्ता धारणा पर सबसे ज्यादा असर दिखा है। तीसरा, 10 लाख रुपये से अधिक आय वाले परिवारों की उपभोक्ता धारणा 2019-20 के औसत से 40 फीसदी कम रही है। इस तरह उपभोक्ता धारणा पर सबसे कम असर इसी आय समूह पर रहा है जिसके पास सर्वाधिक बचत होने की संभावना है।


इस तरह उपभोक्ता व्यय का पुराने स्तर पर लौटना काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि 10 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले परिवार लॉकडाउन हटने के बाद किस तरह खर्च करते हैं।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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