संघमित्रा शील आचार्य, प्रोफेसर, जेएनयू
विशेषज्ञ पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य के लिए बजट बढ़ाने का सुझाव दे रहे हैं। यह अच्छी सलाह सरकार के बहरे कानों पर पड़ती रही है! आज हम विशेषज्ञों की सलाह के प्रति शिथिलता दिखाने के नतीजे भुगत रहे हैं। हम स्वास्थ्य क्षेत्र की उपेक्षा के परिणामों का सामना कर रहे हैं। कुछ लोग निश्चित रूप से विशेषज्ञों की सलाह का लाभ भी उठा रहे हैं। भारत पिछले कुछ हफ्ते से रोजाना संक्रमण में तेज उछाल का सामना कर रहा है। देश में 21 अप्रैल, 2021 को लगभग तीन लाख मामले सामने आए हैं और दो हजार से अधिक मौतें हुई हैं। आंकड़े 2020 में महामारी फैलने के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर दर्ज किए जा रहे हैं।
पिछले एक सप्ताह में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता न होने के कारण कोरोना प्रभावित व्यक्ति अपनी जान गंवा बैठे। दिल्ली, यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों ने ऑक्सीजन की कमी की सूचना दी है। एक राज्य द्वारा दूसरे पर राजनीतिक रूप से आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि ऑक्सीजन की लूट हो रही है और उसके परिवहन को रोका जा रहा है। जब आपूर्ति सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, तब जिन लोगों को हमने चुना है, वे ध्यान भटकाने के लिए एक अनावश्यक बहस को तेज करने में व्यस्त हैं। आज ऑक्सीजन की कमी के चलते कोविड से होने वाली मौतें वास्तविक मुद्दा हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह वास्तव में ऑक्सीजन की कमी है? क्या चालू वित्त वर्ष के दौरान उत्पादन कम हुआ है या निर्यात अधिक हुआ है? वाणिज्य विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान वर्ष 2015 की तुलना में ऑक्सीजन का दोगुनी मात्रा में निर्यात किया है। यह निर्यात चिकित्सा सेवा और औद्योगिक, दोनों ही तरह के उपयोगों के लिए किया गया है।
वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 4,502 मीट्रिक टन की तुलना में अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच 9,000 मीट्रिक टन से अधिक ऑक्सीजन का निर्यात किया गया। जाहिर है, कोरोना के कारण दुनिया में तरल चिकित्सकीय ऑक्सीजन की मांग पिछले साल ही बहुत बढ़ गई थी। उत्पादन भी खूब बढ़ा है। मार्च-मई 2020 के दौरान 2,800 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का प्रतिदिन उत्पादन हो रहा था। हालांकि, मौजूदा लहर के दौरान प्रतिदिन मांग 5,000 टन तक पहुंच गई है। उल्लेखनीय है कि अब भारत में प्रतिदिन 7,000 मीट्रिक टन से अधिक तरल ऑक्सीजन का उत्पादन होता है, जो 5,000 टन की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए कमी उत्पादन की वजह से नहीं है। असमान आपूर्ति और परिवहन की वजह से ही अनेक राज्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पा रहे। अन्य सभी संसाधनों की तरह ही ऑक्सीजन की कमी का कारण असमान वितरण में निहित है। जिन राज्यों में कोरोना मामले बढ़े हैं, वे राज्य ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहे हैं। ऑक्सीजन उत्पादन स्थलों और मांग स्थलों के बीच की दूरी के कारण संकट पैदा हुआ है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य, जहां कोरोना मामले काफी अधिक हैं, वहां ऑक्सीजन की मांग भी बहुत दर्ज हो रही है। इन राज्यों में सुधार ऑक्सीजन टैंकरों और समय से उनकी आपूर्ति पर टिका है। गुजरात में अपनी मांग को पूरा करने जितनी उत्पादन-क्षमता है, जबकि महाराष्ट्र में अभी हो रहे उत्पादन से कहीं अधिक मांग है। वर्तमान में तरल ऑक्सीजन के परिवहन के लिए जरूरी क्रायोजेनिक टैंकर भी पूरे नहीं हैं, क्योंकि कई अस्पताल एक ही समय में ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहे हैं। सभी गंभीर रोगियों के जीवन को बचाने के लिए चिकित्सा सेवाओं पर दबाव है और इसलिए एक ही समय में सभी को ऑक्सीजन प्रदान करना अपरिहार्य हो गया है। ऑक्सीजन सबको चाहिए, किसी को भी प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। इसलिए जरूरत है ऐसे वाहनों को तैयार करने की, जो तरल ऑक्सीजन को ले जा सकते हों, क्योंकि निर्धारित क्रायोजेनिक टैंकरों के निर्माण में 4-5 महीने तक लग सकते हैं। इसलिए ऐसे वाहनों के निर्माण की योजना को दूसरे चरण में शुरू किया जा सकता है।
कुछ राज्यों में संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। क्रायोजेनिक ट्रक के निर्माण के लिए प्रतीक्षा करने से मकसद पूरा नहीं हो सकता। ऐसे वाहनों का निर्माण बाद में भी कभी हो सकता है। संकट के इस समय में ट्रेनों का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि जरूरतमंद राज्यों की कमी को पूरा किया जा सके। आज के समय में अस्पतालों को तनाव से राहत देने के लिए ऑक्सीजन का आयात भी संभव है। सरकार ने 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने का निर्णय लिया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए देश भर में सार्वजनिक अस्पतालों में 162 ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना को भी मंजूरी दी गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में चिकित्सकीय ऑक्सीजन की खपत कुल उत्पादन क्षमता का केवल 54 प्रतिशत है, 12 अप्रैल 2021 तक। अब ऑक्सीजन के आयात के साथ-साथ मौजूदा उत्पादन क्षमता को बढ़ाने से मांग पूरी होने की संभावना है। यहां एक बैकअप के रूप में औद्योगिक ऑक्सीजन को रखना चाहिए। अब हमें ऑक्सीजन की मांग में वर्तमान और संभावित उछाल को देखते हुए ही ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना करनी पड़ेगी। संयंत्र की जगह को बहुत विवेकपूर्ण ढंग से तय करना महत्वपूर्ण है। आने वाले कुछ सप्ताहों में रोजाना आ रहे संक्रमित मामलों को कम करने की जरूरत है। यह बहुत जरूरी है कि कम से कम लोगों को संक्रमण हो, ताकि मरीजों के दबाव में आई स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद को तैयार करने के लिए वक्त मिल जाए। यदि संक्रमण की शृंखला जल्द नहीं टूटती है और मामलों में वृद्धि जारी रहती है, तो भारत गंभीर ऑक्सीजन संकट में फंस सकता है। वैसी स्थिति न बने, यह कोशिश सरकार को युद्ध स्तर पर करनी चाहिए। संक्रमित मरीजों के परिजनों को किसी भी अस्पताल से उस चीज के लिए कतई लौटाया न जाए, जिसका मूल पदार्थ प्रकृति द्वारा बिना लागत उपलब्ध है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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