इस वर्ष 25 फरवरी को उद्योगपति मुकेश अम्बानी के मुम्बई स्थित निवास ‘एंटीलिया’ के बाहर बरामद विस्फोटकों से भरी एक कार में जिलेटिन की 20 छड़ें और एक धमकी भरा पत्र मिला था और इस पूरे मामले में भाजपा शुरू से ही शिव सेना के नेतृत्व वाली ‘महा विकास अघाड़ी’ की गठबंधन सरकार पर सवाल उठा रही थी।
इस सिलसिले में मुम्बई के पुलिस कमिश्नर पद से हटाए गए परमबीर सिंह द्वारा उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल आ गया। परमबीर सिंह ने अपने पत्र में राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोप लगाते हुए लिखा था कि अनिल देशमुख ने सचिन वाजे सहित कुछ पुलिस अधिकारियों को हर महीने 100 करोड़ रुपए की उगाही करने का आदेश दिया था। इस केस में उस समय नया मोड़ आ गया जब विस्फोटकों से लदी कार के मालिक मनसुख हिरेन की रहस्यपूर्ण हालात में मौत हो गई और उसका शव 5 मार्च को ठाणे में नदी किनारे से बरामद हुआ। हिरेन की पत्नी के अनुसार 17 फरवरी को हिरेन ने अपनी स्कॉर्पियो वाजे को दी थी और उसी दिन दोनों की मुलाकात भी हुई थी।
इस मामले की जांच के सिलसिले में राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) ने अभी तक 35 लोगों के बयान दर्ज किए हैं। जांच में कई गंभीर खुलासे हुए जिनमें कथित रूप से महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख (राकांपा) और पुलिस अधिकारी सचिन वाजे का नाम सामने आया है। एन.आई.ए. के अनुसार ‘एंटीलिया’ केस के पीछे मुम्बई पुलिस इंस्पैक्टर सचिन वाजे का ही दिमाग है जिसे एन.आई.ए. ने 14 मार्च को गिरफ्तार कर लिया। इस केस में अभी तक यही गिरफ्तारी हुई है। कहा जाता है कि अम्बानी के घर के बाहर विस्फोटकों वाली कार भी उसी ने खड़ी की थी। मामले की जांच के दौरान सचिन वाजे को ट्राइडैंट होटल की सी.सी.टी.वी. फुटेज में एक महिला से बातचीत करते हुए भी देखा गया था जिसके हाथ में नोट गिनने वाली मशीन थी।
इस बीच महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टी भाजपा ने आरोप लगाया कि गठबंधन में शामिल सीनियर नेता अनिल देशमुख को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अनिल देशमुख राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के काफी निकट बताए जाते हैं। पवार ने 22 मार्च को अनिल देशमुख को बुलाकर उनसे ‘पूछताछ’ करने के बाद कहा था कि ‘‘हमें ऐसा लगता है कि ये सारी बातें परमबीर सिंह ने इसलिए कही हैं क्योंकि उनका तबादला कर दिया गया है।’’ परमबीर सिंह ने 25 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अनिल देशमुख के विरुद्ध सी.बी.आई. जांच की मांग की थी। इसी के अनुरूप परमबीर सिंह तथा कई अन्यों द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर 5 अप्रैल को सुनवाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
माननीय न्यायाधीशों ने सी.बी.आई. को परमबीर सिंह द्वारा अनिल देशमुख के विरुद्ध लगाए गए भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों की जांच करने का आदेश देते हुए कहा, ‘‘यह एक अभूतपूर्व मामला है। आरोप छोटे नहीं और राज्य के गृहमंत्री पर हैं इसलिए पुलिस इसकी निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती। अनिल देशमुख पुलिस विभाग का नेतृत्व करने वाले गृह मंत्री हैं अत: इस मामले की सी.बी.आई. जांच करे और 15 दिनों में रिपोर्ट दे।’’ अदालत के इस आदेश से अनिल देशमुख की मुश्किलें बढ़ गईं और इसके तीन घंटे के बाद ही उन्होंने ‘नैतिकता’ के आधार पर पद से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि उन्होंने अपने विरुद्ध लगाए आरोपों से इंकार किया है और त्यागपत्र देने के बाद कांग्रेस नेता प्रफुल्ल पटेल से मिलने दिल्ली चले गए।
पहले भी अनिल देशमुख का विवादों से नाता रहा है। अप्रैल, 2020 में महाराष्ट्र बिजली नियामक आयोग के अध्यक्ष आनंद कुलकर्णी ने कहा था, ‘‘मैंने अनिल देशमुख के पिछले कामों पर होमवर्क किया है और मैं सही समय पर इस संबंध में जुटाई गई जानकारियों को सार्वजनिक करूंगा।’’ बेशक अनिल देशमुख ने त्यागपत्र दे दिया है परंतु परमबीर सिंह द्वारा लगाए हुए आरोपों, सचिन वाजे की गिरफ्तारी और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंपने से न सिर्फ उन पर लगे आरोपों की गंभीरता सामने आई है बल्कि उन पर 100 करोड़ रुपए मासिक वसूली के आरोपों ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य के पुलिस विभाग दोनों को ही संदेह के कटघरे में खड़ा कर दिया है।—विजय कुमार
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‘महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख का इस्तीफा’ ‘गठबंधन सरकार सवालों के घेरे में’ (पंजाब केसरी)
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