हिंसा का समाज (जनसत्ता)

बाहरी या फिर आंतरिक मोर्चे पर सुरक्षा से लेकर कानून-व्यवस्था के मामले में सबसे चाक-चौबंद देशों में अमेरिका दुनिया के शीर्ष पर माना जाता रहा है। लेकिन अमेरिका के भीतर कानून-व्यवस्था के मामले में क्या स्थिति इतनी ही सशक्त है कि कोई व्यक्ति आपराधिक वारदात को अंजाम देने से पहले सोचे? अगर ऐसा होने का दावा किया जाता है तो शायद यह उतना सही नहीं है। वहां लोकतंत्र के नाम पर लोगों को हथियार रखने का अधिकार तो दिया गया है, लेकिन उसके इस्तेमाल को लेकर शासन और समाज, दोनों स्तर पर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया, जिससे हथियारों का बेजा इस्तेमाल रुक सके।

हालत यह है कि अक्सर वहां बेहद मामूली बात पर या फिर बिना किसी कारण बंदूक चलाने की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं और उसमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के इंडियानापोलिस हवाईअड्डे के पास फेडेक्स केंद्र के बाहर गुरुवार देर रात एक युवक ने बंदूक से अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई और कई बुरी तरह घायल हो गए। मारे गए लोगों में चार सिख समुदाय से हैं।

जाहिर है, इस बेहद तकलीफदेह घटना ने एक बार फिर दहला दिया। अमेरिका में यह कोई पहली घटना नहीं है। वहां से अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिन्हें देख-सुन कर कई बार हैरानी होती है कि एक विकसित देश के समाज की यह कैसी बुनियाद है, जिसमें वैसे लोग भी बंदूक चलाना शुरू कर देते हैं, जिनके बारे में यह माना जाता है कि वे फितरतन अपराधी नहीं हैं।

तो क्या यह हाथ में बंदूक आने से उपजा मनोविज्ञान है, जो किसी व्यक्ति को या तो घनघोर असुरक्षाबोध में जाने पर मजबूर कर देता है या फिर सुरक्षा के तर्क पर उसके भीतर हिंसक भावना भर देता है? वरना क्या वजह है कि सामान्य बातचीत या संवाद के जरिए सुलझाए जा सकने वाले तनाव, झगड़े या टकराव बिना किसी के मौके के हत्याकांडों में तब्दील हो जाते हैं। दरअसल, अमेरिका में बंदूक की संस्कृति एक जटिल अवस्था में पहुंच चुकी है। लेकिन हथियार रखने की छूट के साथ जिस तरह की परिपक्वता और जिम्मेदारी एक शर्त होनी चाहिए, वह अब तक वहां बहुत सारे लोगों के भीतर नहीं पैदा हो सकी है।

सवाल यह है कि आखिर अमेरिका में समाज और पुलिस-प्रशासन का यह कैसा ढांचा बना है कि लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक रखना जरूरी लगता है! अगर तर्क अपराधियों से बचाव का है, तो क्या वहां की पुलिस अपराध की रोकथाम में सक्षम नहीं है? ऐसा क्यों है कि वहां आम लोगों के पास उपलब्ध बंदूक जितना खुद को बचाने में इस्तेमाल होती होगी, उसके समांतर बहुत छोटी बात पर या फिर कई बार बेवजह किसी सिरफिरे की गोलीबारी में निर्दोष लोगों के मारे जाने की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। अकेले इंडियानापोलिस में ही इस साल बेलगाम गोलीबारी की यह तीसरी घटना है।

क्या अमेरिका में ऐसी घटनाएं आपराधिक प्रवृत्ति में उफान का नतीजा हैं? या फिर क्या वहां निजी जीवन के तनाव और अवसाद बेलगाम हो रहे हैं, जिसका खमियाजा निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ता है? मामला चाहे अराजकता का हो या समाज के स्तर पर नाकामी का, इससे निपटने का रास्ता अमेरिका को ही निकालना पड़ेगा। केवल आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बनने का तमगा एक कामयाब समाज होने का सबूत नहीं हो सकता।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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