कोरोना की दूसरी लहर से इस समय सारा देश बेहाल है अगर आपके कोरोना वायरस टैस्ट करवाने की लाइन में 20,000 लोग आपसे आगे हों, अगर टैस्ट की रिपोर्ट 14 घंटों की बजाय कम से कम 2 दिन में आए, इलाज के लिए दवाइयों, आक्सीजन उपकरणों, बैड्स और वैंटीलेटर की भी कमी हो तो निश्चित रूप से दिखाई देने वाली कहानी का एक और पक्ष बेहद गंभीर होगा। संक्रमण के लगातार बढ़ते आंकड़ों के चलते अनेक राज्य किसी न किसी रूप में कफ्र्यू तथा लॉकडाऊन लगाने के लिए मजबूर हो चुके हैं।
कोरोना से ग्रस्त गम्भीर मरीजों की जान बचाने वाली ‘रेमडेसिविर’ तथा ‘टोसिलीजुमाब’ जैसी दवाइयों की भारी किल्लत के बीच सोशल मीडिया इन्हें उपलब्ध करवाने वालों की मदद की गुहार से भर चुका है। इसके बावजूद लोग कोरोना को लेकर उतने गम्भीर नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए था। स्थिति की गम्भीरता का पता इसी बात से चल रहा है कि देश के अधिकतर बड़े शहरों की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है।
पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर से निपटने के लिए डाक्टरों तथा चिकित्सा जगत से जुड़े अन्य लोगों की शारीरिक रूप से तैयारी बेहतर होने के बावजूद सबसे अधिक ङ्क्षचता की बात यह है कि दूसरी लहर में डॉक्टरों तथा चिकित्सा जगत से जुड़े अन्य लोगों का भी हाल खराब होने लगा है।
पहली बार की तरह उनके पास मास्क से लेकर पी.पी.ई. किटों जैसे साजो-सामान की कमी नहीं है। अधिकतर डॉक्टर, नर्सों तथा अन्य मैडीकल स्टाफ को वैक्सीन भी दी जा चुकी है परंतु इस सबके बावजूद एक साल तक कोरोना से लड़ते हुए वे शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुके हैं। गत वर्ष मार्च में जब कोरोना ने भारत में पैर पसारने शुरू किए थे उसके बाद इस वर्ष जनवरी-फरवरी में ही कुछ समय तक उन्हें थोड़ी राहत नसीब हुई जब कोरोना के मामलों की संख्या में काफी कमी आ गई थी परंतु आज की तारीख में दूसरी लहर के चरम की ओर बढऩे के बीच उनसे यह अपेक्षा करना बेमानी होगा कि उनके हौसले भी पहले की तरह मजबूत रहें।
कोरोना की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई के एक अस्पताल के ‘डा. लांसलोट पिंटो’ साल भर से कोरोना मरीजों के इलाज में व्यस्त रहे हैं। जनवरी में जब मामले कुछ कम हुए तो उन्हें लगा कि वह अपने परिवार के साथ अब कुछ चैन का समय गुजार सकेंगे परंतु अप्रैल आते-आते हालात पहले साल से भी बदतर हो गए जब प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के मामलों ने देश में पहले 1 लाख और कुछ ही दिन बाद 2 लाख के आंकड़े को पार कर लिया। डा. पिंटो के अनुसार उनकी टीम में से कोई भी इस हालत के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है। वह कहते हैं, ‘‘हम जो भी कर सकते हैं कर रहे हैं परंतु अब हममें पिछले वर्ष जैसी मानसिक शक्ति नहीं है।’’
दिल्ली का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है। वहां के भी लगभग सभी निजी अस्पताल भर चुके हैं। गुरुग्राम के एक अस्पताल की डा. रेशमा तिवारी बसु के अनुसार दूसरी लहर अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि इसके बारे में पहले से अंदेशा था परंतु इस बात से बहुत निराशा है कि लोग भूल चुके हैं कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। अस्पतालों के बाहर जीवन सामान्य सा प्रतीत होता है रेस्तरां और नाइट क्लब खचाखच भरे हैं, बाजारों में भीड़ है, लम्बी शादियां, अनगिनत चुनावी रैलियों में लोगों की भीड़, कुंभ मेले में लाखों की गिनती में शामिल लोगों को अपने जीवन को खतरे में डालने का अधिकार तो है लेकिन दूसरों को नहीं। डा. यतिन मेहता इस पर क्रोधित हैं। उनके अनुसार भारत ने जनवरी तथा फरवरी में मिले मौके को हाथों से फिसल जाने दिया। उस अवधि को ‘टेस्टिंग’ व ‘ट्रेसिंग’ के साथ-साथ वैक्सीनेशन बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए था परंतु ऐसा नहीं किया गया।
केरल राज्य के एर्नाकुलम मैडीकल कालेज की नर्स विद्या विजयन का कहना है कि अब हम पहली लहर से भी कहीं अधिक खतरनाक दूसरी लहर का सामना कर रहे हैं। वह कहती हैं कि लोगों को याद रखना चाहिए कि हैल्थकेयर वर्कर्स अपनी क्षमता से अधिक थक चुके हैं। अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों की तरह उन्हें भी यही लगता है कि पता नहीं इस तरह कब तक वे काम कर सकेंगे परंतु इतना तय है कि दूसरी लहर हैल्थ वर्कर्स से लेकर सम्पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था के लिए परीक्षा साबित होगी। उनके अनुसार,‘‘चिकित्सा कर्मियों की मानसिक सेहत पर इस समय किसी का ध्यान नहीं है।
जरा सोच कर देखिए कि जो भी काम आप करते हैं, उसे आपको दिन के 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन, वह भी आम से 100 गुणा अधिक दबाव में करना पड़े तो आपका क्या हाल होगा- जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर होगी तो हर डॉक्टर, नर्स तथा हैल्थकेयर वर्कर का यही हाल होगा।’’ ऐसी सभी बातों को देखते हुए हमें सभी सावधानियां और उपायों को अपनाना होगा क्योंकि कोरोना से पार पाना अभी आसान नहीं। मुझे मशहूर शायर फैज अहमद फैज के शे’र की चंद पंक्तियां याद आ रही हैं :
अभी चिराग-ए-सरे रह को कुछ खबर ही नहीं
अभी गरानि-ए-शब में कमी नहीं आई,
नजात-ए-दीद-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई,
चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई।
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