बुधवार को राष्ट्रीय टीकाकरण डेटाबेस को-विन में उन लोगों का पंजीयन शुरू हुआ जिनकी उम्र 18 से 45 वर्ष के बीच है। जो लोग सफलतापूर्वक पंजीयन करने मेंं कामयाब रहे उन्होंने पाया कि टीकाकरण के लिए तिथि और समय नहीं दिया गया है। यानी पंजीयन की शुरुआत के साथ ही यह अनिश्चितता और बढ़ गई है कि पता नहीं तीसरे चरण के टीकाकरण कार्यक्रम को किस प्रकार अंजाम दिया जाएगा। राज्य सरकारों, अस्पतालों और नागरिकों के अगले कदम को लेकर सवाल उठे हैं। केंद्र सरकार ने भले ही दावा किया हो कि टीकोंं की कोई कमी नहीं लेकिन इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। दो दिन बाद 18 से 45 की उम्र के लोग आधिकारिक रूप से टीकाकरण के पात्र हो जाएंगे, ऐसे मेंं सरकार को आपूर्ति योजना स्पष्ट करनी चाहिए।
पहला सवाल आपूर्ति से संबंधित है। कई राज्य कह चुके हैं कि वे 18 से अधिक उम्र के लोगों का टीकाकरण शुरू करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि टीकों की कमी है और टीका विनिर्माताओं ने क्रय अनुबंध नहीं किए हैं। सरकार को पारदर्शी तरीके से यह सार्वजनिक करना चाहिए कि दोनों टीका विनिर्माताओं को क्या ऑर्डर दिए गए हैं और गैर सरकारी तरीके से बेचे जाने वाले टीकों को लेकर उन्होंने क्या वादा किया है। उसे उन विदेशी टीका विनिर्माताओं के साथ बातचीत भी सार्वजनिक करनी चाहिए जिन्हें आपात मंजूरी दी गई है। मसलन हाल ही मेंं फाइजर इंडिया ने दावा किया था कि वह सरकार के साथ चर्चा कर रही है। ऐसी वार्ताएं किस चरण में हैं यह बताना चाहिए। यदि सरकार चाहती है कि अन्य सभी टीका विनिर्माता खुले बाजार में अपने टीके बेचें तो यह उसका दायित्व है कि उनकी उपलब्धता मेंं सहयोग करे और उनकी संभावित आपूर्ति के बारे में जनता को बताए। अन्य सरकारों ने टीका बनाने की लाइसेंस धारक कंपनियों और निकायोंं के बीच समझौतों की निगरानी की है और उन्हें अंजाम दिया है। भारतीयों को पता होना चाहिए कि भारत सरकार ऐसी योजना पर काम कर रही है या नहीं और अगर नहीं तो क्यों?
गैर सरकारी ढंग से टीकों की बिक्री को लेकर भी काफी अनिश्चितता का माहौल है। इनमें से राज्य सरकारों को कितने टीके दिए जाएंगे और खुले बाजारों, अस्पतालों और अस्पताल शृंखलाओं को कितने टीके बेचे जाएंगे यह स्पष्ट नहीं। राज्यों को होने वाली गैर सरकारी आपूर्ति का बंटवारा कैसे होगा? यकीनन यह निर्णय दोनों कंपनियों के विपणन प्रबंधकों पर नहीं छोड़ा गया होगा। यह सीधे-सीधे लॉबीइंग और कंपनियों को धमकाने को न्योता देना होगा। खासकर तब जबकि राज्य सरकारों के लिए कीमतें खुले बाजार से कम रखी गई हैं। खबर है कि सरकार ने कंपनियों पर कीमत कम करने का दबाव डाला है। यह बात अपने आप में गैर सरकारी रुख की अवधारणा को नुकसान पहुंचाती है जिसके तहत टीका विनिर्माताओं को उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराना था।
उपलब्धता बढ़ाने और आपूर्ति शृंखला का विस्तार करने का सरकार का निर्णय बिल्कुल सही है लेकिन उसे अपनी जवाबदेही यहीं समाप्त नहीं मान लेनी चाहिए। सरकार को यह समझना होगा कि यदि अनिश्चितता बनी रही तो टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित होगा। महामारी की दूसरी लहर मजबूत होने के साथ ही टीकाकरण की गति बढ़ाने की आवश्यकता है। ऐसे में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह अन्य टीका विनिर्माताओं की मदद और विदेशी टीकों को लाइसेंस देने तथा भारत में उत्पादन करने देने को लेकर क्या कर रही है। सरकार ने सुझावों पर बेहतर प्रतिक्रिया दी है। हालात को देखते हुए वितरण को उदार बनाकर उसने अच्छा कदम उठाया है लेकिन अब उसे आपूर्ति की बाधा दूर करने में सक्रियता दिखानी होगी। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इस विषय में समस्त सूचनाएं व्यापक रूप से उपलब्ध हों।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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