जीवन की भूख में (जनसत्ता)

देश के ज्यादातर राज्यों में कोरोना के संक्रमण की बिगड़ती स्थिति के बीच इसकी चपेट में आने वाले लोगों और उनके परिवारों की क्या हालत होगी, यह समझना मुश्किल नहीं है। सरकारों की ओर से हर संभव व्यवस्था करने का दावा किया जा रहा है। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि मदद के लिए कई लोग निजी स्तर पर अपने संसाधनों और सीमाओं के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन ऐसे समय में भी कई लोग संवेदनहीन होकर कोरोना के इलाज से संबंधित दवाएं, इंजेक्शन और आॅक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी कर रहे हैं।

दूसरी ओर ऐसे मामले भी सामने आए, जिनमें कुछ लोगों ने कहीं रेमडेसिविर इंजेक्शन और यहां तक कि टीके चुरा लिए तो कहीं आॅक्सीजन सिलेंडरों की लूट हुई। फिलहाल दुनिया के साथ-साथ हमारा देश ऐसे संकट और चुनौती से भरे वक्त से गुजर रहा है, जिसमें बहुत सारे लोगों के सामने जीवन को किसी तरह सुरक्षित रखना या बचाना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता हो गई है। महामारी के संक्रमण का स्वरूप ऐसा है, जिसकी चपेट में कोई भी आ सकता है, इसलिए सबके भीतर एक तरह का खौफ भर गया है। हालांकि सरकार और संबंधित महकमों की ओर से यह आश्वासन जरूर दिया जा रहा है कि लोग धीरज न खोएं और दवा या इंजेक्शन की जमाखोरी या कालाबाजारी न करें, लेकिन चारों तरफ से जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उसमें जीवन बचाने की भूख में लोग कई बार जरूरत से ज्यादा परेशान हो रहे हैं।

हालत यह है कि हरियाणा में जींद के एक अस्पताल से टीके की सत्रह सौ से ज्यादा खुराकें चोरी हो गर्इं। इसी तरह मध्य प्रदेश के दमोह से आॅक्सीजन सिलेंडर तो शाजापुर से रेमडेसिविर की लूट की घटनाएं सामने आर्इं। इंदौर और भोपाल के अस्पतालों से काफी संख्या में रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी हो गए। ये घटनाएं इलाज के लिए उपयोगी इन संसाधनों की कालाबाजारी के अलावा हैं। विडंबना यह है कि संकट के समय में इस तरह की अवांछित गतिविधियों में कुछ नेता भी शामिल पाए जा रहे हैं। इंदौर में भाजपा के एक नेता पर रेमडेसिविर की कालाबाजारी का आरोप है।

गुजरात के सूरत में भाजपा के अध्यक्ष ने खुद रेमडेसिविर इंजेक्शन की पांच हजार खुराकें मुफ्त बांटने की घोषणा की। सवाल है कि जिस समय इस इंजेक्शन की किल्लत है, इसकी कालाबाजारी हो रही है, वैसे में भाजपा अध्यक्ष को मुफ्त में बांटने के लिए इतनी बड़ी तादाद में यह कैसे मिली!

दरअसल, समय पर सही जानकारी प्रसारित नहीं होने से ऐसी स्थितियां कई बार अराजकता में तब्दील हो जाती हैं। इसका फायदा कालाबाजारी करने या प्रचार हासिल करने वाले तत्त्व उठाते हैं। कोरोना विषाणु से बीमार हुए लोगों के इलाज के लिए अब तक अंतिम तौर पर कोई कारगर दवा सामने नहीं आ सकी है। रेमडेसिविर सहित जितनी भी दवाएं हैं, उनकी उपयोगिता फिलहाल सीमित ही है। लेकिन परेशान लोगों के बीच किसी खास दवा पर जोर देना कई बार स्थितियों को बेकाबू बना देता है।

रेमडेसिविर को लेकर बुधवार को तीन प्रतिष्ठित डॉक्टरों की ओर से यह कहा गया कि इसे जादू की गोली न समझा जाए और लोग परेशान नहीं हों। अगर यही बात कुछ समय पहले सरकार की ओर से कही जाती तो लोग शायद इस कदर धीरज नहीं खोते। यह समझने की जरूरत है कि संक्रमित मरीज और उनके परिजन जीवन बचाने की किस तड़प से गुजर रहे होंगे। कहीं से उम्मीद की एक छोटी झलक भी उनके भीतर एक भूख पैदा कर देती है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सरकार दवाओं की कालाबाजारी, चोरी या जमाखोरी और लूट जैसी घटनाओं पर सख्ती से रोक लगाए।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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