जीवन की आस में मौत (दैनिक ट्रिब्यून)

 महाराष्ट्र के नासिक स्थित एक अस्पताल में ऑक्सीजन टैंकर से ऑक्सीजन रिसाव होने से हुए हादसे में 24 कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत विचलित करने वाली है। जीवन बचाने की उम्मीद में अस्पताल में भर्ती मरीजों को लापरवाही के चलते मौत बांटना शर्मनाक ही कहा जायेगा। जांच व मुआवजे की रस्म अदायगी के इतर सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने गंभीर रोगियों की देखरेख में ऐसी लापरवाही क्यों हुई। हादसा चाहे तकनीकी कारणों से हो या मानवीय चूक से, इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। आखिर ऑक्सीजन टैंकर के रिसाव को नियंत्रित करने के लिये जिम्मेदार कर्मचारी व अधिकारी वहां मौजूद क्यों नहीं थे। जाहिर है यह डॉक्टरों का काम नहीं है, वैसे भी इस समय अस्पतालों पर महामारी के चलते भारी दबाव है। आखिर रिसाव नियंत्रित करने के क्रम में ऑक्सीजन की आपूर्ति दो घंटे तक क्यों बंद की गई, यह जानते हुए कि साठ से अधिक मरीज आक्सीजन पर जीवन के लिये संघर्ष कर रहे थे, जिसमें 24 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और कई अन्य मरीज अभी भी गंभीर स्थिति में पहुंच गये हैं। यह पहली घटना नहीं है, पिछले एक साल के भीतर महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में कोविड अस्पतालों में आग लगने व अन्य हादसों में कई रोगियों की जान गई है। कई अस्पतालों में ऑक्सीजन आपूर्ति न मिलने के कारण मरीजों के मरने के आरोप लगे हैं। आखिर इन मरीजों की मौत की जवाबदेही तय क्यों नहीं की जाती? क्यों ऐसे संवेदनशील मरीजों के उपचार वाले अस्पतालों में सुरक्षा के उच्च मानकों का पालन नहीं किया जाता। क्यों हम दुर्घटनाओं से रहित चिकित्सा व्यवस्था नहीं दे पाते। ये दुर्घटनाएं मानवीय चूक की ही ओर इशारा करती हैं। वैसे देश के डॉक्टर व चिकित्साकर्मी अपनी जान की बाजी लगाकर लोगों को बचाने में लगे हैं, लेकिन प्रबंधतंत्र को ऐसे हादसों को टालने के गंभीर प्रयास करने चाहिए।


निस्संदेह देश इस समय एक भयंकर दौर से गुजर रहा है। अस्पतालों में बेड, दवाओं और आक्सीजन की भारी कमी है। यह आपदा न केवल आम लोगों बल्कि हमारे चिकित्सातंत्र की भी बड़ी परीक्षा है। हमारे सत्ताधीश इस महामारी की दूसरी लहर का समय रहते आकलन नहीं कर पाये। कोरोना संकट के पहले दौर में गिरावट के समय को इन संसाधनों को समृद्ध बनाने में नहीं कर पाये, जिस कारण ऐसी शर्मनाक स्थिति बन गई है कि दुनिया के देश भारत यात्रा पर आने के लिये अपने नागरिकों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। तमाम देशों को वैक्सीन आपूर्ति करके हमने जो साख बनायी थी उस पर बट्टा लग रहा है। एक नागरिक के तौर पर कोरोना से बचाव के उपायों का पालन करने में तो हम असफल हुए हैं, मगर यह तंत्र की भी बड़ी विफलता है। जिस संवेदनशीलता के साथ इस दिशा में बचाव की रणनीति बनायी जानी चाहिए थी उसमें हम चूके हैं। आज कई देश वैक्सीनेशन कार्यक्रम को सुनियोजित ढंग से चलाकर कोरोना को हरा चुके हैं और उनके नागरिक खुली हवा में सांस लेने लगे हैं। इस्राइल, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया व ताइवान जैसे देश कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं। हम जीती हुई लड़ाई हारते नजर आ रहे हैं। निस्संदेह हम विकासशील देश हैं, हमारे साधन सीमित हैं और हम दुनिया की बड़ी आबादी वाला देश हैं। जनसंख्या का घनत्व अधिक होना भी हमारी चुनौती है। लेकिन उसके बावजूद हम सुनियोजित तरीके से इस युद्ध को नियंत्रित कर सकते थे। केंद्र व राज्य इस दिशा में युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं लेकिन अभी भी बेहतर तालमेल से स्थितियों को काबू करने की जरूरत है। यही वजह है कि इसे राष्ट्रीय आपातकाल जैसी स्थिति बताते हुए देश की शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से ऑक्सीजन व दवा की कमी पर जवाब मांगा है। साथ ही पूछा है कि इस संकट से निपटने के लिये उसकी राष्ट्रीय स्तर पर क्या योजना है। दरअसल, देश के छह हाईकोर्टों में कोरोना संकट से जुड़े मामलों की सुनवाई चल रही है, जिससे भ्रम की स्थिति बन रही है।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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