अशोभनीय कृत्य (दैनिक ट्रिब्यून)

पंजाब में अबोहर के विधायक अरुण नारंग के साथ जिस तरह दुर्व्यवहार और हमला हुआ, वह निस्संदेह निंदनीय कृत्य ही कहा जायेगा। राज्य के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश देना स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन वास्तव में ठोस कार्रवाई होती नजर भी आनी चाहिए। ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से संदेश जाना चाहिए कि राज्य में संकुचित लक्ष्यों के लिये अराजकता किसी भी सीमा पर बर्दाश्त नहीं की जायेगी। दल विशेष के नेताओं पर हमला करके राज्य में सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का कोई भी प्रयास सफल होने नहीं देना चाहिए। निस्संदेह किसान आंदोलन को समाज के हर वर्ग का समर्थन मिला है। इस तरह के हमले और जनप्रतिनिधि के कपड़े फाड़े जाने से आंदोलन की साख को आंच आती है। इस तरह के उपद्रव व हिंसक कृत्य से आंदोलन समाज में स्वीकार्यता का भाव खो सकता है। बीते सप्ताह मलोट में जो कुछ हुआ उसने सभ्य व्यवहार के सभी मानदंडों को रौंदा है। इस हमले में कौन लोग शामिल थे, उनका पता लगाकर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा इस तरह की घटनाओं के दूरगामी घातक परिणाम हो सकते हैं। एक जनप्रतिनिधि के साथ अपमानजनक व्यवहार शर्म की बात है। विरोध करना अपनी जगह है और खुंदक निकालना गंभीर बात है। खेती के लिये लाये गये केंद्र सरकार के कानूनों का विरोध अपनी जगह है, लेकिन उसके लिये पार्टी के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना कतई ही लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं कहा जा सकता। ऐसी कटुता का प्रभाव देश के अन्य भागों में भी नजर आ सकता है। अतीत में पंजाब ने सामाजिक स्तर पर जो कटुता देखी है, उसे फिर से सिर उठाने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। कोशिश हो कि यह विभाजन सामाजिक व सांप्रदायिक स्तर पर न होने पाये। पंजाब के भविष्य के लिये ऐसे मतभेदों व मनभेदों को यथाशीघ्र दूर करना चाहिए। अन्यथा हम अराजक तत्वों के मंसूबों को ही हवा देंगे।


राज्य के जिम्मेदार लोगों को राज्य में बेहतर माहौल बनाने के लिये सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मुद्दे के व्यापक परिप्रेक्ष्य में इस तनाव को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। निस्संदेह विरोध करना हर व्यक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन इसके लिये हिंसा का सहारा लेना और ऐसे असंसदीय तरीकों से आक्रोश व्यक्त करना, जो किसी के लिये शारीरिक रूप से जोखिम पैदा करे, तो उस कृत्य की निंदा होनी चाहिए। निस्संदेह, दिल्ली की सीमा पर कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की मांग की तार्किकता हो सकती है, किसानों से बातचीत में आये गतिरोध को दूर करने की आवश्यकता भी है, लेकिन इस बात के लिये कानून हाथ में लेने का किसी को अधिकार नहीं होना चाहिए। इस तरह के घटनाक्रम से किसानों के प्रति सहानुभूति के बजाय आक्रोश का भाव पैदा हो सकता है। निस्संदेह लंबे आंदोलन के बाद सफलता न मिलने पर कुछ संगठनों में निराशा का भाव पैदा हो सकता है, लेकिन यह निराशा गैरकानूनी कृत्यों का सहारा लेने से दूर नहीं होगी। लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए अहिंसा अनिवार्य शर्त है। वहीं दूसरी ओर घटना के कई दिनों बाद भी हमलावरों की गिरफ्तारी न हो पाना चिंता का विषय है। वह भी तब जब राज्यपाल ने मामले की कार्रवाई रिपोर्ट भी मांगी है। भाजपा के नेता आरोप लगाते रहे हैं कि पुलिस राजनीतिक दबाव में काम कर रही है और उन्हें न्याय की उम्मीद कम ही है। दरअसल, भाजपा नेताओं पर हमले का यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत कई नेताओं पर हमले हो चुके हैं। भाजपा के कई कार्यक्रमों में तोड़फोड़ भी हुई है। हर बार पुलिस की कार्रवाई निराशाजनक रही है, जिससे अराजक तत्वों के हौसले ही बुलंद हुए हैं। अब लोगों की निगाह विधायक नारंग मामले पर केंद्रित है कि पुलिस कितनी ईमानदारी से काम करती है। राज्य में कानून का राज भी नजर आना चाहिए। पुलिस की भूमिका पर सवाल उठना चिंताजनक है। इससे राज्य में अराजकतावादियों को हवा मिलना स्वाभाविक है।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment