बैंकिंग साख
तमाल बंद्योपाध्याय
कोविड-19 महामारी पसरने के बाद पिछले वर्ष कर्ज भुगतान में चूक करने वाले सभी लोगों के खिलाफ ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत कार्रवाई रोक दी गई थी। पहले सरकार ने सितंबर 2020 तक के लिए कार्रवाई रोकी और बाद में यह अवधि बढ़ाकर 24 मार्च, 2021 कर दी। अब दिवालिया न्यायालयों में ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया जोर-शोर से चलेगी। हालांकि सरकार उन्हीं मामलों में यह कार्रवाई शुरू करेगी जिनमें भुगतान में चूक 1 करोड़ रुपये से अधिक हुई है। पहले यह सीमा 1 लाख रुपये थी। उन छोटे कारोबारों को राहत देने के लिए यह निर्णय किया गया है जो वित्तीय कठिनाइयों के कारण बैंकों को कर्ज लौटाने में अक्षम रहे हैं।
हालांकि परिसंपत्ति वर्गीकरण पर लगी रोक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठा लिए जाने से बैंकों के बहीखातों पर बड़ा असर होगा। न्यायालय ने पिछले दिनों आदेश दिया था कि बैंक कर्ज की किस्तों की अदायगी से अस्थायी राहत (मॉरेटोरियम) की अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज नहीं वसूल सकते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि बैंक अपनी परिसंपत्तियां आवश्यकता पडऩे पर गैर-निष्पादित परिसपंत्तियों (एनपीए) में वर्गीकृत कर सकते हैं।
कई ग्राहकों ने मॉरेटोरियम की मियाद बढ़ाए जाने की गुहार लगाई थी लेकिन न्यायालय ने कहा कि यह आर्थिक नीतियों से जुड़ा विषय है जिसे नीति-निर्धारकों एवं विशेषज्ञों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। उसने मॉरेटोरियम के दौरान ब्याज से पूर्ण छूट की मांग भी नहीं मानी और कहा कि बैंकों को भी अपने जमाकर्ताओं को ब्याज देना पड़ता है।
अब तक उन कर्जधारकों से छह महीने की अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज नहीं लिया गया है जिन्होंने विभिन्न वित्तीय संस्थानों से 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज लिए थे। कर्जधारकों ने विभिन्न उद्देश्यों से उधार लिए थे जिनमें लघु अवधि के ऋण, शिक्षा, आवास, उपभोक्ता वस्तु, वाहन, व्यक्तिगत एवं प्रकार के ऋण शामिल हैं। इनके ब्याज पर पर ब्याज माफ करने से वित्तीय क्षेत्र पर 6,500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा, लेकिन सरकार ने इसे वहन करने का निर्णय लिया।
अब उच्चतम न्यायालय ने सभी आकार के ऋणों पर ब्याज पर ब्याज नहीं लेने का फरमान सुनाया है। जिन लोगों ने 2 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण लिए थे उन्हें भी ब्याज पर ब्याज का भुगतान नहीं करना होगा। बैंकों द्वारा आवंटित ऋणों में 2 करोड़ रुपये तक के ऋण की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है। 2 करोड़ रुपये से अधिक रकम के ऋणों की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है, लेकिन छोटे के आकार के ऋण के मुकाबले इन पर ब्याज कम है। जिन कर्जधारकों ने 2 करोड़ रुपये से अधिक आकार के ऋण लिए हैं बैंकों को उन्हें इस वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले ब्याज पर ब्याज की रकम लौटानी थी। यह रकम तकरीबन 8,000 करोड़ रुपये होती है। बैंक एवं वित्तीय संस्थान सरकार से इस रकम की भरपाई चाहते हैं।
अगर सरकार मदद के लिए आगे आती है तो भी बैंकों के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। उन्हें वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले दूसरी देनदारियों का निपटान भी करना था। जिस समय कर्जदाता ऋण की किस्त नहीं चुका रहे थे तब भी बैंक ऐसे ऋणों पर ब्याज दर्ज कर रहे थे क्योंकि कर्जधारक डिफॉल्टर नहीं घोषित किए गए थे। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने बैंकों को कर्जधारकों द्वारा किए जाने वाले भुगतान के आधार पर ऋण परिसंपत्तियों को वर्गीकृत करने की छूट दे दी है, बैंकों को ऐसे ऋणों की यथास्थिति बतानी होगी और उन्हें जमा ब्याज खाते से हटाने होंगे।
बैंकों को फंसी परिसंपत्तियों के लिए भी प्रावधान करने होंगे। ज्यादातर बैंक, खासकर बड़े आकार के निजी बैंक अपने बहीखाते पर किसी तरह के असर को कम करने के लिए प्रावधान कर चुके हैं। जिन ऋणों की किस्तें नहीं लौटाई गई हैं बैंक उन्हें आधिकारिक रूप से फंसी पंरिसपंत्तियां तो घोषित नहीं कर सकते लेकिन वे इनके लिए अपने स्तर से प्रावधान कर चुके हैं।
मार्च में बैंकों के फंसे ऋणों में कितना इजाफा हुआ होगा? यह रकम 1.2 लाख करोड़ रुपये से 2 लाख करोड़ रुपये के बीच हो सकती है। आखिर यह दायरा इतना बड़ा कैसे हो सकता है? फंसे ऋणों का वास्तविक आंकड़ा ऋणों के पुनर्गठन (भुगतान योजना में संशोधन) पर निर्भर करेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने के वी कामत की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति ने कोविड-19 महामारी से सर्वाधिक प्रभावित 16 क्षेत्रों के ऋण पुनर्गठन के लिए कुछ दिशानिर्देशों की सिफारिश की थी। बैंकों को जून 2022 तक ऐसे ऋण का पुनर्गठन करना होगा।
बैंक ऐसे ऋण की पहचान कर रहे हैं जिनका पुनगर्ठन किया जाना है। मार्च अंत तक ऐसे ऋणों पर फंसी परिसंपत्ति होने का तमगा लग चुका है। अगर आरबीआई बैंकों को अगले तीन महीनों तक इन ऋणों को फंसी परिसंपत्ति घोषित नहीं करने की छूट देता है तो इनका आकार करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। अगर मार्च तक यह कवायद पूरी होने की स्थिति में यह आंकड़ा 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
ऋण का भुगतान रुकने की स्थिति में बैंकों को तत्काल कम से कम 15 प्रतिशत प्रावधान करना पड़ता है और शेष रकम के लिए अगले तीन वर्षों में प्रावधान करना पड़ता है। बैंकिंग उद्योग को 20,000 से 30,000 करोड़ रुपये के बीच प्रावधान करना पड़ सकता है।
अगर सरकार मॉरेटोरियम की अवधि में ब्याज पर जमा ब्याज का भुगतान कर्जधारकों को कर देती है और आरबीआई भी अपनी तरफ से मदद का हाथ बढ़ाता है तो बैंक फिलहाल कोविड-19 महामारी के असर से अपेक्षाकृत अधिक आसानी से निपट सकते हैं। ज्यादातर बैंकों ने इस झटके से उबरने के लिए बंदोबस्त कर रखे हैं। कुछ साल पहले के मुकाबले उनके बहीखाते भी तुलनात्मक रूप से मजबूत स्थिति में हैं।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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