ए के भट्टाचार्य
मार्च 2021 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मद में एकत्रित रकम ने सरकार के अलावा विश्लेषकों के बीच भी जश्न का माहौल पैदा कर दिया है। ऐसा होना पूरी तरह अप्रत्याशित भी नहीं है। वित्त वर्ष के अंतिम महीने में जीएसटी मद में एकत्रित 1.24 लाख करोड़ रुपये अब तक का सर्वाधिक मासिक संग्रह है। मार्च में कर राजस्व बढऩे का मतलब है कि एक महामारी वर्ष के लगातार छठे महीने में भी सरकार जीएसटी के तहत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक राजस्व जमा करने में सफल रही है।
क्या इसका यह मतलब है कि ये जीएसटी आंकड़े उस आर्थिक बहाली की तस्दीक करते हैं जिसका इंतजार लंबे समय से हो रहा था? क्या इसका यह मतलब भी है कि जीएसटी संकलन व्यवस्था में तमाम खामियां दूर कर ली गई हैं? और आखिर में, क्या इससे केंद्र एवं राज्यों की सरकारें जीएसटी के दायरे में पेट्रोल एवं डीजल को लाने और कर दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए प्रोत्साहित होंगी? इन सवालों के जवाब देने के किसी भी प्रयास के लिए जीएसटी कर संग्रह के बारे में गहरी समझ एवं विश्लेषणात्मक रवैये की जरूरत होगी।
पहला, यह स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है कि मार्च संग्रह के आंकड़े मार्च में ही संपन्न वस्तु एवं सेवा कर लेनदेन पर हुए कर भुगतान की तस्वीर नहीं पेश करते हैं। जीएसटी प्रणाली में करों का भुगतान अमूमन लेनदेन होने के एक महीने बाद होता है। यह रिटर्न जमा करने और रिफंड के समायोजन पर निर्भर करता है। लिहाजा यह मान लेना वाजिब है कि मार्च 2021 में अधिक कर राजस्व का दिखना फरवरी में संपन्न सौदों पर आधारित है। यह उस तरह का राजस्व उभार नहीं है जो किसी वित्त वर्ष के अंतिम महीने में नजर आता है।
मार्च के आंकड़ों से जीएसटी संग्रह में टिकाऊ तेजी बनी रहने के बारे में कोई भी फैसला करने के पहले मई के आंकड़े आने तक इंतजार करना चाहिए। लेकिन कोविड-19 संक्रमण फिर से बढऩे और उसकी वजह से आर्थिक गतिविधियों पर पाबंदियां लगने से ऐसे फैसले के लिए भी कुछ और महीनों तक इंतजार करना होगा।
मार्च 2021 के जीएसटी आंकड़ों को थोड़ी लंबी समयावधि के संदर्भ में रखे जाने की जरूरत है। मार्च 2021 में 1.24 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी राजस्व मार्च 2020 की तुलना में 27 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। और अगर आप मार्च 2021 के राजस्व की तुलना मार्च 2019 से करेंगे तो राजस्व में वृद्धि 16 फीसदी ही रह जाती है।
पहेली यहीं पर शुरू होती है। याद रखें कि आर्थिक गतिविधि की रफ्तार कोविड-19 महामारी फैलने के साथ मार्च 2020 के तीसरे हफ्ते से प्रभावित होना शुरू हुई थी। मार्च 2020 के जीएसटी आंकड़े एक महीने पहले हुए लेनदेन पर आधारित थे और उस समय आर्थिक गतिविधियां महामारी के दुष्प्रभाव से काफी हद तक मुक्त थीं। यह मानना तर्कसंगत होगा कि फरवरी 2020 की आर्थिक गतिविधियों से एक सुस्ती नजर आती थी और उस पर कोविड-19 का असर पडऩा बाकी था।
इस तरह मार्च 2021 में जीएसटी संग्रह की वृद्धि काफी हद तक असरदार नजर आती है। किसी भी स्थिति में 16 से 27 फीसदी तक की वृद्धि से हर किसी को खुश होना चाहिए, चाहे हालात जो हों। फिर भी कोरोना संक्रमण के मामले फिर से बढऩे की वजह से इसकी निश्चितता नहीं है कि वृद्धि में तेजी को अप्रैल 2021 या उसके परवर्ती महीनों में भी कायम रखा जा सकता है या नहीं।
वर्ष 2020-21, 2019-20 और 2018-19 में जीएसटी संग्रह के मासिक आंकड़ों पर करीबी नजर डालने से कई बातें पता चलती हैं। वर्ष 2019-20 में जीएसटी संग्रह भले ही कोविड के प्रतिकूल असर की चपेट में न रहा हो लेकिन समग्र राजस्व स्थिति आर्थिक सुस्ती के संकेत जरूर दे रही थी। वर्ष 2019-20 के साल में कुल जीएसटी संग्रह 2018-19 की तुलना में सिर्फ चार फीसदी ही बढ़ा था। माह-दर-माह आधार पर भी वर्ष 2019-20 में राजस्व वृद्धि पूरे साल में केवल एक बार ही दो अंकों में पहुंची थी और तीन महीनों में तो उसमें संकुचन ही देखा गया था।
यह नतीजा निकालना वाजिब है कि वर्ष 2019-20 में जीएसटी संग्रह वृद्धि कोविड-19 की वजह से सुस्त नहीं थी, बल्कि इसका कारण आर्थिक मंदी और दिसंबर 2018 में तमाम उत्पादों पर कर की दरों में कटौती करने का अनर्थकारी फैसला था। यह दोहरी मार से भी अधिक था। वर्ष 2019-20 में जीएसटी दरों में कटौती होने के अलावा आर्थिक मंदी के दौर में राजस्व संग्रह कम हुआ। संग्रह प्रक्रिया में उत्पन्न समस्याओं से भी संग्रह प्रभावित हुआ।
कोविड-19 महामारी के प्रसार से राजस्व संग्रह पर दबाव बढ़ा और वर्ष 2020-21 के पहले पांच महीनों में न केवल महामारी पर काबू पाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की मार पड़ी बल्कि दरों में कटौती और राजस्व संग्रह प्रक्रिया की खामियों ने भी मुश्किलें बढ़ाईं। असल में अप्रैल 2020 से लेकर अगस्त 2020 तक हर महीने में जीएसटी संग्रह कम होता गया।
जीएसटी संग्रह में वृद्धि का सिलसिला सितंबर के बाद ही शुरू हो सका। पहले तो यह बहुत अस्थिर था लेकिन दिसंबर से हालात बेहतर होने लगे। यह वृद्धि दो कारकों का नतीजा थी: आर्थिक गतिविधि की रफ्तार में क्रमिक वृद्धि और कर प्रशासन में हल्का सुधार। फर्जी बिलों की कड़ी निगरानी की जा रही थी। कर अधिकारियों ने वंचना को रोकने के लिए जीएसटी, आयकर एवं सीमा शुल्क विभागों से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए लेनदेन की निगरानी शुरू कर दी। जीएसटी संग्रह के लिए इस्तेमाल की जा रही तकनीक को भी उन्नत किया गया।
सवाल है कि जीएसटी संग्रह का भावी रुझान किस तरह का नजर आता है? कर प्रशासन में हुए सुधार आने वाले महीनों में जीएसटी संग्रह व्यवस्था के लिए लाभप्रद बने रहेंगे। लेकिन कोविड-19 मामले फिर से बढऩे से स्थिति थोड़ी बिगड़ सकती है। अहम सवाल यह है कि केंद्र एवं राज्यों की सरकारें क्या दिसंबर 2018 में की गई गलतियों को सुधारने के लिए सहमत होंगी? अगर वे जीएसटी परिषद की 31वीं बैठक में लिए गए फैसलों के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए कर दरों को तर्कसंगत बनाने के सवाल पर गौर कर सकती हैं तो वर्ष 2021-22 में जीएसटी राजस्व में टिकाऊ वृद्धि को हासिल कर पाने की संभावना बन सकती है। इसकी शर्त बस यह है कि आर्थिक गतिविधि पर कोविड-19 के दुष्प्रभावों को काबू में रखा जाए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment