विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर जल्दी बहाली सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को तीन से चार सप्ताह का समय दिया है. जजों की बहाली को लेकर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय में तनातनी का यह पहला मौका नहीं है. जानकारों की मानें, तो नियुक्ति प्रक्रिया में देरी के लिए दोनों पक्षों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
अक्सर ऐसा होता है कि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा समुचित संख्या में नाम नहीं भेजे जाते और सरकार उन नामों को मंजूर या खारिज करने में बहुत समय लगा देती है. उच्च न्यायालयों में कुल 1080 जजों के पद निर्धारित हैं, जिनमें से 416 पद खाली हैं. कॉलेजियम ने सरकार से 196 नामों को नियुक्त करने की सिफारिश की है. नियमों के अनुसार, किसी पद के रिक्त होने के छह माह पहले नामों का प्रस्ताव भेज सकता है.
सरकार का यह कहना सही है कि 220 नाम अभी तक नहीं भेजे गये हैं, लेकिन यह बाकी नामों के बारे में निर्णय लेने में देरी का आधार नहीं हो सकता है. नियुक्तियों में देरी की वज़ह से रिक्तियों की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे बेहद अहम पद पर नियुक्ति से पहले प्रस्तावित नामों की नियमानुसार जांच-परख जरूरी है, परंतु 2017 में कॉलेजियम द्वारा प्रक्रिया निर्धारित होने के बावजूद ऐसी देरी का होना चिंताजनक है.
उस प्रक्रिया के अनुसार राज्यों को छह सप्ताह के भीतर अपनी राय से केंद्र सरकार को अवगत कराना होता है. यदि इस अवधि में राज्य की अनुशंसा नहीं प्राप्त होती है, तो केंद्र सरकार यह मान सकती है कि राज्य को उन नामों पर कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि इस नियमन में केंद्र सरकार के लिए कोई सीमा नहीं है, लेकिन यह प्रावधान है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश अपनी सिफारिश या सलाह चार सप्ताह के भीतर केंद्रीय विधि मंत्री को भेजेंगे, जिन्हें तीन सप्ताह के भीतर उस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री के पास भेजना होता है.
उसके बाद प्रधानमंत्री उस सूची पर राष्ट्रपति की सलाह लेते हैं. बहरहाल, देश की निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक लंबित मामलों की भारी संख्या को देखते हुए सभी संबद्ध पक्षों को नियुक्तियों को प्राथमिकता देना चाहिए. जैसा कि अनेक विशेषज्ञों ने कहा है, ऐसे मामलों को लेकर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच विवाद इस हद तक नहीं बढ़ जाना चाहिए कि मामला सुनवाई तक पहुंच जाए. सभी संबद्ध पक्षों को रिक्त पदों पर यथाशीघ्र बहाली सुनिश्चित करना चाहिए.
इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 224-ए को लागू करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सराहनीय है. लगभग छह दशक से इस अनुच्छेद को व्यवहार में नहीं लाया गया है. अब बड़ी संख्या में लंबित मामलों के निपटारे के लिए उच्च न्यायालय दो से पांच साल के लिए सेवानिवृत्त जजों की नियुक्ति कर सकते हैं. इससे कुछ राहत मिलने की उम्मीद है.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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