देश में कंपनियां जितनी वैक्सीन बनाएंगी, उनमें से आधा केंद्र लेगा। बाकी बचे हिस्से से राज्यों और निजी अस्पतालों को सप्लाई की जाएगी। कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए ये अच्छे कदम हैं। लेकिन इन्हें लेकर कुछ उलझनें और सवाल भी हैं। पहला सवाल तो यही है कि क्या इतने व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान के लिए हमारे पास वैक्सीन है?
सरकार ने 1 मई से 18 साल से अधिक उम्र वालों के लिए वैक्सिनेशन शुरू करने का ऐलान किया है। इससे टीकाकरण अभियान के चौथे चरण में 60 करोड़ नए लोग वैक्सीन लगवा पाएंगे। इससे पहले के तीन चरणों में केंद्र ने 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए योग्य करार दिया था। इसके साथ केंद्र ने राज्यों और निजी अस्पतालों को भी कंपनियों से सीधे टीका खरीदने की इजाजत दी है। देश में कंपनियां जितनी वैक्सीन बनाएंगी, उनमें से आधा केंद्र लेगा। बाकी बचे हिस्से से राज्यों और निजी अस्पतालों को सप्लाई की जाएगी। कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए ये अच्छे कदम हैं। लेकिन इन्हें लेकर कुछ उलझनें और सवाल भी हैं। पहला सवाल तो यही है कि क्या इतने व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान के लिए हमारे पास वैक्सीन है?अभी तक देश में लोगों को वैक्सीन के 13 करोड़ से अधिक डोज दिए गए हैं, जिनमें से 11.1 करोड़ को दूसरा डोज नहीं लगा है। ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक, 1 मई के बाद सभी योग्य लोगों के वैक्सिनेशन के लिए 1.2 अरब डोज की जरूरत पड़ सकती है। अभी तक लग रहा है कि जून से देश में हर महीने 20 करोड़ डोज आने लगेंगे। उससे पहले खुले बाजार के लिए बहुत अतिरिक्त सप्लाई नहीं हो पाएगी। ऐसे में 1 मई से वैक्सिनेशन सेंटरों पर जो भारी भीड़ उमड़ेगी, उनमें से ज्यादातर को निराश वापस लौटना पड़ सकता है।
दूसरे, जून के बाद वैक्सीन की सप्लाई में अच्छी बढ़ोतरी के बाद भी लंबे समय तक मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति कम बनी रहेगी। दूसरा सवाल यह है कि कंपनियों के पास राज्यों से वैक्सीन की जो मांग आएगी, वे किस आधार पर पूरा करेंगी? सीमित सप्लाई के बीच हर राज्य चाहेगा कि उसे अधिक से अधिक वैक्सीन मिले। अच्छा तो यही होगा कि टीके की आपूर्ति जोखिम के स्तर को देखते हुए की जाए। जहां खतरा अधिक हो, उसे अधिक सप्लाई मिले। और इसके लिए केंद्र के स्तर पर ही पहल होनी चाहिए। केंद्र ने निजी अस्पतालों को भी कंपनियों से सीधे वैक्सीन खरीदने का अधिकार दिया है। अभी सीरम ने केंद्र की नई नीति के मुताबिक कोविशील्ड की खातिर राज्यों के लिए 400 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये की कीमत तय की है। अगर इसे आधार मानें तो लगता है कि राज्यों की तुलना में निजी अस्पतालों के लिए टीका महंगा होगा। इसका यह भी मतलब है कि निजी अस्पतालों को अधिक टीका बेचने से उनका मुनाफा भी बढ़ेगा। ऐसे में क्या राज्यों को टीका बेचने में कंपनियों की दिलचस्पी घट नहीं सकती है? एक और बात यह है कि कंपनियों से बड़े निजी अस्पताल तो वैक्सीन खरीद पाएंगे, लेकिन इस देश में बड़ी संख्या में छोटे अस्पताल भी हैं, उन्हें इसकी सप्लाई कैसे मिलेगी? इन उलझनों को दूर करने के लिए केंद्रीय स्तर पर पहल होनी चाहिए। यह काम नेशनल टास्क फोर्स के जिम्मे किया जा सकता है।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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