क्यूबा में कास्त्रो युग का अंत, अब नए दौर की शुरुआत (अमर उजाला)

शशांक, पूर्व विदेश सचिव 

राउल कास्त्रो के क्यूबा की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव का पद छोड़ने के बाद वहां एक नए युग की शुरुआत हो रही है। 1959 की क्रांति के बाद यह पहला अवसर है, जब क्यूबा के सर्वोच्च पद पर कोई कास्त्रो नहीं है। फिदेल और राउल कास्त्रो उस क्रांति के नायक थे, जिसने क्यूबा में समानता और स्वतंत्रता के सपने को साकार किया। क्रांति के बाद देश का सर्वोच्च पद फिदेल कास्त्रो ने संभाला था और महाशक्ति देश अमेरिका के साथ तल्ख रिश्ते के बावजूद समाजवादी व्यवस्था के तहत क्यूबा को आगे बढ़ाया। फिदेल कास्त्रो न होते, तो दुनिया के विशाल मानचित्र पर छोटी-सी आबादी वाला यह देश मात्र एक छोटा-सा बिंदु भर होता, जिसमें शायद ही दुनिया की दिलचस्पी होती। 

उन्होंने 2006 में अपने भाई राउल कास्त्रो को राष्ट्रपति पद सौंपा था, जिन्होंने अब अपना पद छोड़ा है। बहरहाल क्यूबा के संविधान के मुताबिक, कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव ही देश का सर्वोच्च राजनीतिक पद है। सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने अब 61 वर्षीय राष्ट्रपति मिगुएल दियाज-कानेल को अपना नया नेता चुन लिया है। दियाज-कानेल 2018 में देश के राष्ट्रपति बने थे। जाहिर है, क्यूबा अब नई पीढ़ी के नेताओं के हाथ में है। लेकिन दियाज-कानेल के सम्मुख कई चुनौतियां हैं। सोवियत संघ के पतन के बाद क्यूबा चीन पर निर्भर था, लेकिन चीन से निर्यात के जरिये जो आर्थिक आय हो रही थी, उसमें 40 फीसदी की कमी आ गई है। पर्यटन वहां की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है, लेकिन कोरोना महामारी के फैलने से पर्यटन उद्योग भी लगभग ठप है। क्यूबा अपने कुशल डॉक्टरों और सैनिकों को दूसरे देशों में भेजते था, उससे भी उसे काफी आमदनी हो जाती थी, लेकिन वह आय भी खत्म हो गई है। इसके अलावा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्यूबा पर कई प्रतिबंध लगा दिए और  जाते-जाते उसे आतंकवाद का स्रोत देश भी घोषित कर दिया। इन सबसे क्यूबा की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।



लेकिन मेडिकल और बायो कैमिकल क्षेत्र में क्यूबा ने अच्छी प्रगति की है। क्यूबा कोरोना के खिलाफ अपनी वैक्सीन तैयार करने में लगा है, जिससे उसे आर्थिक संकट से उबरने में मदद मिल सकती है। क्यूबा के तीन वैक्सीन परीक्षण के तीसरे चरण में हैं। क्यूबा को उम्मीद है कि जुलाई-अगस्त तक उसकी वैक्सीन बाजार में आ जाएगी। अगर ऐसा होता है, तो वह न केवल अपने नागरिकों का टीकाकरण कर सकता है, बल्कि निर्यात के जरिये वह अपना राजस्व भी बढ़ा सकता है। देश की युवा पीढ़ी के एक बड़े तबके की इच्छा है कि क्यूबा में जो उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई है, उसे तेजी से आगे बढ़ाया जाए। 


लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग, जिन्होंने 1959 से पहले का दौर देखा है, जब क्यूबा के लोगों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जाता था, चाहते हैं कि क्यूबा अपनी समाजवादी व्यवस्था बनाए रखे। इसलिए वे धीरे-धीरे उदारीकरण को आगे बढ़ाना चाहते हैं और कहते हैं कि जो तेजी से उदारीकरण और निजीकरण लाने की बात कर रहे हैं, वे मियामी में बैठे वे लोग हैं, जो क्यूबा के पूर्व तानाशाह बतिस्ता के साथ अमेरिका चले गए थे। क्यूबा अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने का इच्छुक है, क्योंकि ओबामा के समय जब रिश्ते थोड़े सुधरे थे, तो उसे काफी फायदा हुआ था। पर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इस मसले पर कितना आगे बढ़ेंगे। 


क्यूबा के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से अच्छे रहे हैं। भारत के आम लोगों में यही धारणा है कि क्यूबा के लोग अच्छे होते हैं और ऐसी ही धारणा भारतीयों के बारे में क्यूबा के लोगों में है। दोनों देशों के बीच रिश्तों की और प्रगाढ़ता इस बात पर निर्भर करेगी कि आर्थिक स्तर पर क्यूबा किस पैमाने पर उदारीकरण को आगे बढ़ाता है, टेक्नोलॉजी के स्तर पर मेडिकल क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता का लाभ कैसे उठाता है। अगर उसकी वैक्सीन का कार्यक्रम सफल होता है, तो ऐसी संभावना बन सकती है कि भारत और क्यूबा मिलकर इस क्षेत्र में कुछ काम करे।

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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