क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध नहीं हल (बिजनेस स्टैंडर्ड)

प्रसेनजित दत्ता 

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास के मन में क्रिप्टोकरेंसी तथा वित्तीय स्थिरता पर उनके प्रभाव को लेकर तमाम चिंताएं हैं। हालांकि उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया कि वह किस तरह की क्रिप्टोकरेंसी को लेकर चिंतित हैं लेकिन यह माना जा सकता है कि इसमें मूल बिटकॉइन, एथीरियम जैसे एल्टकॉइन जिनकी तादाद करीब 9,000 है और जो बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और आखिर में इनीशियल कॉइन ऑफरिंग (आईसीओ) भी शामिल हैं जिनका इस्तेमाल प्रौद्योगिकी कारोबार में अधिकांश कारोबारी प्रतीकात्मक राशि जारी करते समय करते हैं। चिंता स्टेबलकॉइन की श्रेणी की क्रिप्टो को लेकर है जो किसी खास संपत्ति या संपत्ति समूह की अस्थिरता कम करती हैं।

दुनिया के कई अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह आरबीआई भी अपनी डिजिटल मुद्रा लाने के पक्ष में है। चीन पहले ही ऐसी मुद्रा निकाल चुका है जबकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक अपना डिजिटल डॉलर लाने वाला है। यह देश की मुद्रा के डिजिटल प्रतिनिधित्व से अधिक कुछ नहीं है। यानी यह एक तरह से आधिकारिक मुद्रा का डिजिटल स्वरूप होगा।


क्रिप्टो को लेकर भारत सरकार भी आरबीआई के समान चिंतित है। खबरों के अनुसार उसकी योजना एक कानून बनाने की है जिसके जरिये हर प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा जबकि आरबीआई एक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा जारी करेगा।


परंतु अगर हर प्रकार की निजी क्रिप्टोकरेंसी पर रोक  लगाई गई तो यह कुछ अवांछित वस्तुओं के साथ मूल्यवान वस्तुओं को नकारने जैसा होगा। इसकी जड़ें तकनीक तथा क्रिप्टोकरेंसी के पीछे के दर्शन की समझ न होने और मुद्रा शब्द का इस्तेमाल करने में निहित हैं जो पूरी तरह भ्रामक है।


पहली क्रिप्टोकरेंसी यानी बिटकॉइन समकक्षों में लेनदेन का एक ऐसा माध्यम थी जहां किसी केंद्रीय संस्थान की आवश्यकता नहीं थी बल्कि वह क्रिप्टोग्राफिक सबूत को एक साझा सार्वजनिक खाते में रखती थी। इसका निर्माण सातोषी नाकामोतो नामक छद्म नाम से किया गया था। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि यह कोई व्यक्ति था या प्रोग्रामरों का साथ काम करने वाला समूह था। सातोषी नाकामोतो की पहचान अब तक गोपनीय है।


शुरुआत में बिटकॉइन अत्यधिक जानकारों की जिज्ञासा भर थी। सन 2010 में लास्जो हांसेज ने दो पिज्जा के लिए 10,000 बिटकॉइन चुकाए। बिटकॉइन और डॉलर के मौजूदा अंतर के हिसाब से देखें तो वर्तमान दरों में दो पिज्जा के लिए आधा अरब अमेरिकी डॉलर की राशि दी गई। बिटकॉइन के लोकप्रिय होने पर उसकी कीमत में उतार-चढ़ाव आता रहा। ज्यादातर अवसरों पर उसमें तेजी आई। जब टेस्ला के एलन मस्क ने एक अरब डॉलर मूल्य के बिटकॉइन खरीदे तो उसकी कीमत में जबरदस्त तेजी आई।


जोसेफ स्टिगलिट्ज, केनेथ रोजोफ और नॉरिएल रुबिनी समेत कई अर्थशास्त्रियों ने उनके खिलाफ चेतावनी दी है। बिल गेट्स भी ऐसे ही व्यक्तियों में शामिल हैं। इस बीच पृथ्वी और पर्यावरण को लेकर गंभीर लोग इस बात से चिंतित हैं कि क्रिप्टोकरेंसी तैयार करने या उसके लेनदेन की पुष्टि में बहुत अधिक बिजली की खपत होती है। कैंब्रिज के शोधकर्ताओं ने हाल ही में इस विषय में शोध किया और कहा कि फिलहाल बिटकॉइन में अर्जेंटीना जैसे देश से अधिक बिजली लगती है। केंद्रीय बैंकरों और सरकारों की चिंता है कि इनकी प्रकृति ऐसी है कि आपराधिक तत्त्व बड़े पैमाने पर पैसे के लेनदेन में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।


ये चिंताएं एक हद तक जायज हैं। दुनिया के वित्तीय ढांचे में बिना नियमन के बिना काम कर रही क्रिप्टोकरेंसी के अलावा भी अफरातफरी है। अगर क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल अपराधी कर सकते हैं तो वे तो सोने और चांदी का भी करते हैं। क्रिप्टो पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना और उनकी जगह केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी पेश करना समस्या का हल नहीं है।


केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी में भी उसी तरह उतार-चढ़ाव आएगा जिस तरह कागजी मुद्रा में आता है। विशुद्ध क्रिप्टोकरेंसी जो किसी से संबद्ध नहीं हैं उन्हें एक परिसंपत्ति वर्ग की तरह समझा जाना चाहिए जहां मूल्य निर्धारण व्यापक तौर पर इस बात से होता है कि इसकी उपलब्धता क्या है और खरीदार क्या कीमत चुकाना चाहता है। इस लिहाज से देखें तो यह किसी सार्वजनिक दीवार पर रंग  उड़ेलने जैसा है। ऐसा अगर किसी बड़े कलाकार ने किया है तो आप उसे  कलाकृति भी मान सकते हैं या फिर आप उसे एकदम बेकार उड़ेल हुए रंग भी कह सकते हैं। कोई इसकी क्या कीमत चुकाना चाहता है यह पूरी तरह खरीदार पर निर्भर है।


स्टेबलकॉइन का मामला एकदम अलग है। उनमें कुछ गुण तो बिल्कुल क्रिप्टोकरेंसी के हो सकते हैं और उनके पीछे केंद्रीय बैंक भी हो सकता है। परंतु वे भौतिक परिसंपत्ति के मूल्य से संबद्ध होती हैं। मान लीजिए कि एक स्टेबलकॉइन सोने से संबद्ध है तो वह किसी गोल्ड बॉन्ड जैसा ही होगा। बस उनको जारी करने और उनकी निगरानी में फर्क होगा।


विशुद्ध क्रिप्टोकरेंसी के नियमन का सही तरीका होगा एक व्यवस्थित प्रणाली और नियमन ढांचा तैयार करना जो जिंस अथवा वैकल्पिक निवेश श्रेणी के लिए उपयुक्त हो। इसके अलावा अधिकृत ब्रोकरों तथा आधिकारिक एक्सचेंजों को उनके मौजूदा मूल्य के आधार पर खरीद-बिक्री और उधारी लेने की इजाजत होनी चाहिए। बिटकॉइन या एथीरियम जैसी स्थापित क्रिप्टोकरेंसी के देश के भीतर लेनदेन की इजाजत होनी चाहिए और उनका इस्तेमाल केवल पंजीकृत ब्रोकरों और एक्सचेंज द्वारा किया जाए। लेनदेन और निस्तारण की सीमा तय की जानी चाहिए और उसकी निगरानी होनी चाहिए।


स्टेबलकॉइन के लिए अलग एक्सचेंज की आवश्यकता होगी।  शायद कमोडिटी एक्सचेंज जैसी किसी व्यवस्था की जरूरत होगी। दोनों मामलों में समुचित नियामकीय व्यवस्था और निस्तारण के तरीकों की आवश्यकता है।


सरकार को यह समझना होगा कि आज क्रिप्टोकरेंसी का वही महत्त्व है जो 17वीं सदी में शेयरों की थी। उनकी लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती है।


(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेसवल्र्ड के पूर्व संपादक तथा संपादकीय सलाहकार वेबसाइट द प्रोसेक व्यू के संस्थापक, संपादक हैं)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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