नाशिक के अस्पताल में आक्सीजन आपूर्ति बंद होने से चौबीस कोरोना मरीजों की मौत दहला देने वाली घटना है। इस हादसे ने एक बार फिर अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसी घटनाएं इसलिए भी ज्यादा विचलित करती हैं कि लोग अस्पतालों में नए जीवन की उम्मीद से जाते हैं, लेकिन अगर अस्पताल में इस तरह से मौत मिलने लगे तो इससे ज्यादा भयानक और दुखदायी क्या होगा! इस अस्पताल में इन दिनों कोरोना संक्रमितों का इलाज किया जा रहा है। बुधवार को अस्पताल के आॅक्सीजन टैंक में रिसाव हो गया। अस्पताल प्रशासन ने हड़बड़ाहट में आॅक्सीजन आपूर्ति बंद कर दी। उस वक्त बड़ी संख्या में मरीज आॅक्सीजन पर थे। आॅक्सीजन बंद होते ही मरीजों की स्थिति बिगड़ गई। रिसाव रोकने के लिए करीब दो घंटे तक आॅक्सीजन आपूर्ति बंद रखी गई। इसी बीच चौबीस लोगों ने दम तोड़ दिया। इस घटना के वक्त अस्पताल में एक सौ सत्तर से ज्यादा मरीज भर्ती थे और इनमें कई मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। जाहिर है, हालात तो बिगड़ने ही थे।
गौरतलब है कि अभी देश महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है। अस्पतालों में बिस्तर, दवाइयों और आॅक्सीजन के लिए भारी मारामारी है। आॅक्सीजन सिलेंडरों की लूटपाट होने तक की खबरें आ रही हैं। ऐसे में अगर किसी अस्पताल में आॅक्सीजन उपलब्ध हो और फिर भी वहां मरीजों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाए कि रिसाव जैसे हादसे की वजह से आपूर्ति रोक देना पड़े, तो इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या होगी! बेशक इन दिनों अस्पतालों पर भारी दबाव है। लेकिन कुछ भी हो, मरीजों को सुरक्षा तो सर्वोपरि होती है। और इसी बात का खयाल अस्पताल प्रशासन नहीं रख पाया। जिस अस्पताल में आॅक्सीजन आपूर्ति का संयंत्र लगा हो, वहां निश्चित रूप से इसकी देखभाल करने वाला मुस्तैद तंत्र भी होना चाहिए।
फिलहाल यह गहन जांच का विषय है कि आखिर टैंक में रिसाव की वजह क्या रही, जो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बनी। क्या टैंक और आॅक्सीजन आपूर्ति प्रणाली के रखरखाव में खामियां थीं? जिस विभाग पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी थी, क्या उसकी लापरवाही ही हादसे का कारण बनी? इन बातों की जांच जरूरी है। नाशिक के अस्पताल में आॅक्सीजन संयंत्र के रखरखाव की जिम्मेदारी एक स्थानीय निजी कंपनी के हाथ में होने की बात सामने आई है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई गंभीर मानवीय चूक इस हादसे का कारण रही होगी। गैस का रिसाव जैसी घटना तकनीकी या मानवीय गलती के बिना हो जाए, इसकी संभावना कम ही रहती है।
यों अस्पतालों में ऐसे जानलेवा हादसे कोई नई बात नहीं हैं। पिछले एक साल में देखें तो देश के अलग-अलग राज्यों में कोविड अस्पतालों में आग लगने की भी कई घटनाएं हुईं और कई लोग मारे गए। इस तरह की घटनाओं से इतना तो साफ है कि अस्पतालों में सुरक्षा मानकों पर तवज्जो नहीं दी जाती। आखिर क्यों अस्पतालों में आग की घटनाएं सामान्य बात हो गई हैं?
पिछले महीने मुंबई के एक निजी अस्पताल में आग की घटना ने अस्पताल प्रशासन, स्थानीय प्रशासन और दमकल विभाग की लापरवाही को उजागर कर दिया था। बड़े अस्पतालों में सुरक्षा की जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन की भी होती है। सरसरी तौर पर देखें तो नाशिक का हादसा संयंत्र की देखभाल और रखरखाव में लापरवाही का मामला ही ज्यादा नजर आता है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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