नक्सलियों को जल्द उखाड़ फेंकने की बातें एक लंबे अरसे से की जा रही हैं फिर भी आतंक के इस नासूर से अब तक नहीं मिली मुक्ति (दैनिक जागरण)

नक्सलियों के प्रति किसी भी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए क्योंकि वे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बने हुए हैं। इनसे निपटने के लिए हरसंभव उपाय किए जाने चाहिए और वह भी पूरी ताकत के साथ।


छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में 20 से अधिक जवानों के बलिदान के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ओर से यह जो घोषणा की गई कि नक्सली संगठनों के खिलाफ जल्द ही निर्णायक लड़ाई छेड़ी जाएगी, वह वक्त की जरूरत के अनुरूप है। इसके बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नक्सलियों को जल्द उखाड़ फेंकने की बातें एक लंबे अरसे से की जा रही हैं और फिर भी आज कोई यह कहने की स्थिति में नहीं कि आतंक के इस नासूर से मुक्ति कब मिलेगी? यदि नक्सलियों के समूल नाश का कोई अभियान छेड़ना है तो सबसे पहले अर्बन नक्सल कहे जाने वाले उनके हितैषियों की परवाह करना छोड़ना होगा। ये अर्बन नक्सल मानवाधिकार की आड़ में नक्सलियों की पैरवी करने वाले बेहद शातिर तत्व हैं। वास्तव में ये उतने ही खतरनाक हैं, जितने खुद नक्सली। नक्सली संगठन इनसे ही खुराक पाते हैं। इनकी नकेल कसने के साथ ही इसकी तह तक भी जाना होगा कि नक्सली संगठन उगाही और लूट करने के साथ आधुनिक हथियार हासिल करने में कैसे समर्थ हैं? निश्चित रूप से नक्सलियों को स्थानीय स्तर पर समर्थन और संरक्षण मिल रहा है। इसी के बलबूते उन्होंने खुद को जंगल माफिया में तब्दील कर लिया है। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि वन संपदा का दोहन करने वालों की भी नक्सलियों से मिलीभगत है। हैरत नहीं कि उन्हें बाहरी ताकतों से भी सहयोग मिल रहा हो।


नक्सलियों का नाश तब तक संभव नहीं, जब तक उन्हें अपने लोग अथवा भटके हुए नौजवान माना जाता रहेगा। शायद व्यर्थ की इसी धारणा के चलते नक्सलियों के खिलाफ आर-पार की कोई लड़ाई नहीं छेड़ी जा पा रही है। समझना कठिन है कि यदि कश्मीर के आतंकियों और पूर्वोत्तर क्षेत्र के उग्रवादियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल हो सकता है तो खूंखार नक्सलियों के खिलाफ क्यों नहीं? आखिर यह क्या बात हुई कि नक्सलियों से लोहा लेते समय अपना बलिदान देने वाले जवानों के शव लाने के लिए तो सेना के संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन नक्सली संगठनों के खिलाफ उनका उपयोग करने में संकोच किया जाए? यह संकोच बहुत भारी पड़ रहा है। इसी संकोच के कारण नक्सली बार-बार सिर उठाने में समर्थ हो जाते हैं। देश अपने जवानों के और अधिक बलिदान को सहन करने के लिए तैयार नहीं। नक्सलियों के प्रति किसी भी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए, क्योंकि यह पहले की तरह आज भी एक तथ्य है कि वे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बने हुए हैं। इस सबसे बड़े खतरे से निपटने के लिए हरसंभव उपाय किए जाने चाहिए और वह भी पूरी ताकत के साथ।


सौजन्य - दैनिक जागरण।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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