कोरोना वायरस: मास्क से दूरी, आखिर हम जिम्मेदार कब बनेंगे (अमर उजाला)

सुरेंद्र कुमार, पूर्व राजदूत  

पिछले छह दिनों से लगातार भारत में एक लाख से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव मामले दर्ज किए गए हैं, जो अमेरिका के बाद इसे दुनिया का दूसरा सर्वाधिक कोविड संक्रमित राष्ट्र बनाता है। यह गर्व करने लायक स्थिति नहीं है! ऐसा क्यों हुआ, यह समझने के लिए रॉकेट विज्ञान का विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं। हम जानते हैं कि क्या किया जा सकता है, पर कुछ सरल और प्रभावी उपाय करने में हम अनिच्छुक लगते हैं। हम जीतने की अथक इच्छा से ग्रस्त राजनेताओं की अनदेखी कर सकते हैं, क्योंकि उनकी रैलियों में आने वाले हजारों समर्थकों में कुछेक सौ अगर संक्रमित हो जाते हैं, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राजनेतागण अपने चुनावी भाषणों की शुरुआत इस एक पंक्ति के साथ क्यों नहीं कर सकते, 'इससे पहले कि मैं अपना भाषण शुरू करूं, आप अपने चेहरे पर मास्क लगा लीजिए।

अगर आपके पास मास्क नहीं है, तो कृपया अपने मुंह और नाक को गमछे या अंगोछे से ढक लीजिए।' यदि पार्टियां रैलियों के आयोजन पर करोड़ों रुपये खर्च कर सकती हैं, तो वे रैली के आयोजन स्थल पर मुफ्त मास्क भी वितरित कर सकती हैं। वे अपने आयोजकों और समर्थकों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए क्यों नहीं कह सकतीं? फिर इहलोक और परलोक में हमारे भाग्य के रखवाले भी हैं, जो इस जन्म के सभी पापों को धोने तथा अगले जन्म की बेहतरी के लिए लाखों श्रद्धालुओं को पवित्र डुबकी लगाने के लिए आमंत्रित करते हैं, लेकिन मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल उनके मन में भी नहीं आता। 

मगर पढ़े-लिखे शहरी युवाओं को क्या कहा जाए? वे प्रधानमंत्री से लेकर सभी नामचीन हस्तियों को मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील करते हुए टीवी पर देखते हैं, ताकि संक्रमण रोकने में मदद मिले। पर वे इन अपीलों की अवहेलना करते दिखते हैं। वे दिल्ली जैसे महानगर में कोविड संक्रमण के प्रसार में सहायक हैं। हमारे नेता जनसांख्यिकीय लाभांश का बखान करते हुए कभी नहीं थकते और बताते हैं कि 65 फीसदी भारतीय 35 वर्ष से कम आयु के हैं। पर अगर युवा राष्ट्रीय संकट के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाते और मास्क लगाने व सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की अवहेलना करते हैं, तो उन्हें कल्पनाशील तरीके से संदेश देना चाहिए। हमें उन्हें दूसरों को खतरे में डालने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।


मैं दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 में रहता हूं। यदि कोई शाम सात बजे पास के सिक्का प्लाजा (खाने की छोटी-सी जगह और फास्ट फूड चेन की दुकान) जाए, तो वहां 18 से 25 वर्ष के करीब 300 युवाओं की भीड़ होती है, जिनमें से 90 फीसदी बिना मास्क लगाए होते हैं। आप कॉलेज जाने वाली दर्जनों लड़कियों को धूम्रपान कर विद्रोही भावना प्रकट करते देख सकते हैं, पर मास्क लगाने में उनकी भी दिलचस्पी नहीं होती। यदि आप उस समूह में से किसी को मास्क लगाने की सलाह देने की हिम्मत करते हैं, तो वह इतने गंदे तरीके और आक्रामकता के साथ देखेगा, मानो आपको दूर जाने के लिए कह रहा हो। वे अपेक्षाकृत अच्छे कपड़े पहने होते हैं, घंटों वहां बैठकर खाते-पीते हैं और अपने इस्तेमाल किए हुए प्लेट और ग्लास टेबिल पर ही छोड़ देते हैं! यह कितनी अनुशासनहीन और गैर-जिम्मेदार युवा पीढ़ी है! 


सहयोग अपार्टमेंट की बगल में एक डीडीए पार्क है-विवेकानंद पार्क। वहां सुबह छह से दस बजे के बीच करीब दो हजार लोग मार्निंग वॉक करने आते हैं, जिनमें से 90 फीसदी लोग बिना मास्क के होते हैं। आप बीस वर्ष से कम उम्र के दर्जनों लोगों को बगैर मास्क लगाए कोर्ट में बैंडमिंटन खेलते हुए देख सकते हैं। इसके अलावा 60 से 70 की उम्र के बुजुर्गों को बिना मास्क पहने आप जोर-जोर से राम-राम एक, राम-राम दो गाते हुए सुन सकते हैं। माइक्रोस्कोप से देखने पर भी न तो आपको पूरे पार्क में कहीं फूल दिखेंगे और न ही पांच वर्ष से चल रहे स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद चालू स्थिति में कोई शौचालय। हममें से अधिकांश ऐसे गैर-जिम्मेदार नागरिक क्यों हैं? क्या हममें कुछ आत्म अनुशासन, नागरिक भावना और अपने साथी नागरिकों की भलाई के विचार नहीं हैं?


अगर लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) दिल्ली के मुख्य प्रशासक हैं, जैसा कि अदालतों ने कहा है, तो वह कोविड-19 से लड़ाई में सबसे आगे क्यों नहीं हैं? पुलिस उनके अधीन है, तो वह शाम के समय सिक्का प्लाजा जैसी जगहों पर दो-तीन पुलिसकर्मियों को क्यों नहीं भेज सकते, जो मौके पर ही बिना मास्क पहने लोगों को जुर्माना लगाएं। जो जुर्माना नहीं देते, उन्हें शर्मिंदा करना चाहिए। इस तरह से लोगों को मास्क पहनने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। डीडीए पार्क भी एलजी के अधिकार क्षेत्र में है, तो वह बिना मास्क लगाए लोगों के पार्क में प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते हैं? नियम का उल्लंघन करने वाले को मौके पर ही दंडित किया जाना चाहिए। खान मार्केट में मास्क के बगैर ग्राहकों को दुकानों में प्रवेश की इजाजत नहीं है। हर दुकान के बाहर स्टैंड पर सैनिटाइजर लगा हुआ है, जिसे पैरों से चलाया जाता है, जो दुकान में प्रवेश से पहले ग्राहकों को सैनिटाइज किया जाना सुनिश्चित करता है। इसे सभी शॉपिंग क्षेत्र में अनिवार्य किया जाना चाहिए।


पिछले हफ्ते से रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक लगाया जा रहा रात्रि कर्फ्यू खानापूर्ति का उदाहरण है। यह प्राइम टाइम टीवी समाचार की सुर्खियां बनता है, चिकित्सीय आपातकालीन स्थिति का सामना कर रहे नागरिकों के लिए असुविधा का कारण बनता है, लेकिन कोविड के प्रसार को रोकने में कोई योगदान नहीं करता, क्योंकि कोरोना महामारी प्रसार के लिए दस बजे रात्रि तक की प्रतीक्षा नहीं करती। मोहल्ला क्लिनिक, डिस्पेंसरी और सरकारी व निजी अस्पतालों के जरिये 21 साल से ऊपर के सभी लोगों के टीकाकरण से दिल्ली में कोविड के मामलों में बढ़ोतरी पर लगाम लगाया जा सकता है। कोविड वैक्सीन लगाने के लिए आरडब्ल्यूए की मदद से विभिन्न आवासीय परिसरों में शिविरों का आयोजन करके सबको टीका लगाना सबसे आसान तरीका है। टीकाकरण को युद्ध स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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