यशोवर्द्धन आजाद, पूर्व आईपीएस अधिकारी
सर्वोच्च अदालत ने पिछले हफ्ते एक राष्ट्रीय कार्यबल (नेशनल टास्क फोर्स- एनटीएफ) का गठन किया, जो एक सप्ताह के भीतर राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों को चिकित्सकीय-ऑक्सीजन के आवंटन की नीति बताएगा, और अगले छह महीनों में एक राष्ट्रीय योजना की व्यापक रूपरेखा पेश करेगा, ताकि अभी और भविष्य में हम कोविड-19 से कारगर जंग लड़ सकें। विशेषज्ञों से भरा यह 12 सदस्यीय कार्यबल भरोसा जगाता है। हालांकि, इसका काम सिर्फ सिफारिश करना है, लिहाजा उसकी अनुशंसाओं पर फैसले लेने का अधिकार केंद्रीय नौकरशाही के पास ही होगा, जिसकी तस्वीर बहुत धवल नहीं है। लोग फैसले लेने वाली कोई पेशेवर और निष्पक्ष इकाई चाहते हैं, जिसके लिए कार्यबल ही उपयुक्त है, फिर चाहे वह मौजूदा स्वरूप में हो या फिर जरूरत के मुताबिक इसमें अन्य विशेषज्ञ भी शामिल किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के लिए आवश्यक है कि वह इस राष्ट्रीय कार्यबल को इतना मजबूत करे कि वह कोविड-19 से जुड़े फैसले खुद ले सके। इस समय सबसे बड़ी जरूरत यही है कि राष्ट्रीय कार्यबल जैसी किसी इकाई द्वारा त्वरित निर्णय लिए जाएं। यह अभी सबसे बड़ी जरूरत है। एक उदाहरण से इसे समझिए। पिछले साल कोविड-19 के मामलों में उछाल आने के बाद मार्च में भारत सरकार के सचिवों के नेतृत्व में 11 अधिकार प्राप्त समितियों का गठन किया गया। फिर भी, प्रस्तावित 133 नए ऑक्सीजन-प्लांट में से सिर्फ 33 प्लांट स्थापित हो सके, और ये समितियां कुछ नहीं कर सकीं। नवंबर में, संसद की स्थाई समिति ने ऑक्सीजन-आपूर्ति, आईसीयू बेड और अन्य सुविधाओं की कमी को लेकर चिंता जताई थी। मगर जब बीते मार्च में दूसरी लहर ने भारत पर हमला किया, तब हम बिना तैयारी के थे। ऑक्सीजन-कोटे को लेकर दिल्ली और केंद्र के बीच की लड़ाई को ही लीजिए। आखिरकार अदालत ने दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आवंटित करने का फैसला दिया। क्षमता स्थापित करना और वितरण का निर्धारण करना भी मुद्दे हो सकते हैं। मगर, पिछले साल के अति-संतोष और इस बार की मौजूदा जरूरत में तुलना करें, तो यह साफ हो जाता है कि त्वरित अदालती फैसले और समितियों के आदेश क्या कर सकते हैं?
दूसरी बात, विशेषकर ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर निजी और स्थानीय स्तर पर सफलताएं देखी गई हैं। केरल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्य न सिर्फ अपने यहां ऑक्सीजन-रिजर्व को बनाए रखने में सफल हुए, बल्कि उन्होंने अन्य सूबों की भी मदद की। नंदुरबार (महाराष्ट्र) के युवा जिलाधिकारी ने अपने जिले में तीन ऑक्सीजन-प्लांट लगाए, तो बृह्नमुंबई महानगर पालिका आयुक्त को भी अपने कामों के लिए भरपूर सराहना मिली। मगर इस तरह के निजी प्रयास पर्याप्त नहीं होते हैं, और एक केंद्रीय इकाई की जरूरत होती ही है, जो रोजाना के आधार पर चुनौतियों को देखते हुए फैसले ले। जैसे, ऑक्सीजन की आपूर्ति और उसके आवंटन को लेकर अगला पखवाड़ा काफी अहम है, इसलिए राष्ट्रीय कार्यबल के लिए यह महत्वपूर्ण है कि बैठकें करने और नीतियों पर विचार-विमर्श के बजाय रोजाना के आधार पर काम करे। भारत सरकार के सचिव के नेतृत्व में एक समिति पहले से ही ऑक्सीजन-आवंटन पर काम कर रही है। सचिव चाहें, तो प्रतिदिन की अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय कार्यबल को दे सकते हैं और वहां से आदेश ले सकते हैं। इससे राज्य भी संतुष्ट होंगे और केंद्र पर उंगली उठाने के बजाय वे अपने कामकाज पर ध्यान देंगे। तीसरी बात, विशेषज्ञ पैनल भारत की वैक्सीन-नीति को तैयार करने में (याद रखें, यह मामला भी इस समय अदालत के अधीन है) भी अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकता है। टीके को लेकर संघीय संबंधों में तनातनी को देखते हुए टीकों के वितरण का फैसला राष्ट्रीय कार्यबल को सौंपा जाना चाहिए। व्यवस्थित टीकाकरण के लिए, रोग की मौजूदा व कथित गंभीरता को देखते हुए विभिन्न जनसांख्यिकी खंडों के लिए विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में रणनीति के आधार पर काम करने की दरकार है। चौथी बात, कोविड-19 प्रोटोकॉल पर काफी ज्यादा भ्रम होने की वजह से राष्ट्रीय कार्यबल को चिकित्सा संबंधी निर्देश जारी करने का अधिकार मिलना चाहिए। एक तरफ डॉक्टरों व विशेषज्ञों के बयान हैं कि नागरिकों को रेमडेसीवर, टोसिलीजुमाब और प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को लेकर सावधान रहना चाहिए और खास परिस्थितियों में ही इनका इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि दूसरी तरफ, होम आइसोलेशन में डॉक्टर धड़ाधड़ इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। राष्ट्रीय कार्यबल को इस पर तत्काल गौर करना चाहिए और एक ‘नेशनल एडवाइजरी’ जारी करनी चाहिए। नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कार्यबल जनता से जीनोम-सीक्वेंसिंग की स्थिति और नए वेरिएंट को लेकर सूचनाएं भी साझा कर सकता है। पांचवीं बात, मदद के रूप में विदेश से चिकित्सा सामान की आपूर्ति लगातार हो रही है और भारत सरकार की समिति मानदंडों के अनुसार इनके वितरण का काम देख रही है। ऐसा न हो कि आवंटन में देरी और पूर्वाग्रह के कारण कोई नया विवाद खड़ा हो जाए। दैनिक आधार पर समिति को सुनने के बाद राष्ट्रीय कार्यबल को वितरण का काम अपने हाथ में ले लेना चाहिए। अगले छह महीनों के लिए कोविड-19 से संबंधित फैसले राष्ट्रीय कार्यबल द्वारा ही लिए जाने चाहिए। महत्वपूर्ण लंबित मामलों में त्वरित निर्णय लेने की क्षमता इसके पास है और इसकी छवि भी निष्पक्ष है। कई समितियां पहले से ही राष्ट्रीय कार्यबल की मदद करने के लिए मौजूद हैं। मौजूदा आभासी दौर में एक दिन में दो छोटी-छोटी बैठकों में ही सभी जरूरी मसलों पर फैसला हो सकता है। आलोचक राष्ट्रीय कार्यबल को न्यायिक अतिरेक की मिसाल के रूप में पेश कर सकते हैं और कह सकते हैं कि इससे चुनी गई सरकार के सांविधानिक अधिकारों का हनन होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी सशक्त निकायों की स्थापना की है, जैसे, दिल्ली में अतिक्रमण को हटाने के लिए ऐसा किया गया था। लिहाजा, विपत्ति के समय असाधारण उपाय अपनाना और सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ केंद्र और राज्यों के बीच जारी संघर्ष को खत्म करेगा, बल्कि उनके प्रयासों की सराहना भी करेगा, क्योंकि राष्ट्रीय कार्यबल निष्पक्ष और पेशेवर फैसले लेने के लिए सरकारी आंकड़ों और संसाधनों पर ही काफी हद तक निर्भर रहेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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