कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर देश भर में निरंतर फैलती जा रही है और उससे निपटने का काम मोटे तौर पर राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। एक स्तर पर यह केंद्र सरकार की विफलता है क्योंकि नेतृत्व और क्षमता विस्तार में वह नाकाम नजर आ रही है। परंतु यह दूसरी तरह से भी नाकामी ही है, यानी तालमेल के मोर्चे पर और नीतिगत विनिमय के मोर्चे पर भी। अलग-अलग राज्य सरकारों ने दूसरी लहर से निपटने के लिए अलग-अलग नीतिगत प्रणाली विकसित की है। खेद की बात है कि इस विषय में प्राप्त जानकारियों को आपस में इस प्रकार साझा करने की कोई प्रणाली नहीं बनी है जिसकी मदद से इस क्षेत्र में किए जा रहे बेहतरीन प्रयासों को देशव्यापी स्तर पर प्रसारित किया जा सके।
ऐसे कुछ उत्कृष्ट व्यवहार चिह्नित भी किए गए हैं। उदाहरण के लिए बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने वार्ड स्तर पर वार रूम विकसित किए हैं जो उन मामलों को चिह्नित करते हैं जिन्हें अस्पताल में दाखिल करने की आवश्यकता होती है। इसके बाद संबंधित मरीजों को समुचित जगह भेजा जाता है। निश्चित रूप से विभिन्न राज्य और नगर निकायों के पास ऐसी व्यवस्था बनाने की क्षमता अलग-अलग है। अन्य राज्यस्तरीय नवाचारों में महाराष्ट्र सरकार का चिकित्सकों की विशेषज्ञ संस्था गठित करने का निर्णय शामिल है जो अग्रिम पंक्ति में काम करने वालों यानी फ्रंट लाइन वर्कर्स को उचित मार्गदर्शन प्रदान करती है ताकि दवाओं और ऑक्सीजन का गैर जरूरी इस्तेमाल न हो। केरल में एर्णाकुलम में एक वार रूम बनाया गया है जो पूरे शहर की निगरानी करता है और संसाधनों को जरूरत के मुताबिक स्थानांतरित करता है। तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों जगह टेलीफोन आधारित व्यवस्था बनाई गई है ताकि गंभीर मरीजों को पहले इलाज मिले। दिल्ली में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं है यह स्पष्ट नहीं है।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि केंद्र सरकार ऐसी प्रणालियों को जुटाकर अन्य राज्यों के जरूरतमंद अफसरशाहों को क्यों नहीं सौंप रही। अन्य राज्य निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग से निपटने की जद्दोजहद में लगे हैं। अतीत में यह योजना आयोग का काम हुआ करता था। अभी भी इसे नीति आयोग के दायरे में माना जा सकता है। नीति आयोग अतीत में यह चर्चा कर चुका है कि राज्यों के अच्छे कदमों को एकत्रित किया जाए और जरूरत पडऩे पर अन्य राज्यों द्वारा अपनाया जाए। आयोग के आकांक्षापूर्ण जिला कार्यक्रम के माध्यम से 112 जिलों के अफसरशाहों के बीच सहयोग पर ध्यान दिया जाना है। दूसरे शब्दों में इस बात को लेकर समझ स्पष्ट है कि नीतिगत विनिमय केंद्र सरकार का काम है। परंतु इस मौके पर यह नदारद है।
द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में बीएमसी के आयुक्त इकबाल सिंह चहल ने कहा कि जहां तक श्रेष्ठ कार्य व्यवहार को साझा करने की बात है तो यह जिलाधिकारियों और राज्यों के निगमायुक्तों पर निर्भर करता है कि वे कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। उन्होंने कहा कि अभी हाल तक जब वह भारत सरकार में अपने सहयोगियों को फोन करते तो वे उन पर हंसते। उन्होंने कहा कि जब कोई हम पर हंस रहा है तो हम अपना मॉडल उनके साथ कैसे साझा करें? यह न केवल अतिआत्मविश्वास का द्योतक है बल्कि राज्य स्तर पर प्रशासकों के बीच सहयोग का माहौल तैयार करने की अनिच्छा का सूचक भी है। दूसरी लहर जिन इलाकों में शुरुआत में सबसे अधिक असरदार थी वहां अब वह कम हो रही है लेकिन देश के अन्य इलाकों में प्रसार जारी है। इन इलाकों को मुंबई जैसी जगहों से अनुभव मिलने चाहिए थे कि वहां इस पर नियंत्रण कैसे किया गया। केंद्र सरकार को नीतिगत विनिमय की व्यवस्था कायम करनी चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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