भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गत वर्ष कोविड-19 महामारी के कारण मची उथलपुथल से अर्थव्यवस्था को राहत दिलाने के लिए काफी जरूरी कदम उठाए थे। अब महामारी की दूसरी लहर ने एक बार फिर केंद्रीय बैंक को मजबूर किया कि वह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की मदद के लिए नए उपायों के साथ आगे आए। कोविड-19 संक्रमण के मामलों में अचानक इजाफे के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा चरमरा गया है और राज्य सरकारों को लोगों के आवागमन पर प्रतिबंध लगाने पड़े हैं। इससे मांग और आपूर्ति दोनों प्रभावित हुए हैं। कम उत्पादन आर्थिक स्थिति में सुधार की मौजूदा प्रक्रिया को उलट देगा। हालांकि वास्तविक असर पिछले साल की तुलना में कमतर रहेगा लेकिन आर्थिक गतिविधियों में बाधा समूची लागत में इजाफा करेगी। यकीनन दूसरी लहर का वास्तविक आर्थिक प्रभाव कुछ अन्य चीजों के अलावा इस बात पर निर्भर करेगा हम इसे लेकर कैसे चिकित्सा उपाय करते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआई ने 50,000 करोड़ रुपये की नकदी की व्यवस्था की है। इस योजना के तहत बैंक टीकों और चिकित्सकीय उपकरणों के विनिर्माण, आयात या आपूर्ति से जुड़े कारोबारियों को ऋण दे सकेंगे। इसके अलावा बैंक अस्पतालों, डिस्पेंसर और पैथॉलजी लैब्स को भी ऋण दे सकेंगे। बैंकों को कोविड ऋण पुस्तिका तैयार करने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिए आरबीआई कोविड खाते के आकार के बराबर अधिशेष नकदी के लिए रिवर्स रीपो दर को 40 आधार अंक ज्यादा रखने की पेशकश करेगा।
इसके अतिरिक्त आरबीआई लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के लिए रीपो दर के आधार पर तीन वर्ष के लिए विशेष रीपो परियोजना का संचालन करेगा जो 10,000 करोड़ रुपये मूल्य की होगी। इन फंड का इस्तेमाल प्रति कर्जदार 10 लाख रुपये तक का ऋण देने के लिए किया जाएगा। इससे असंगठित क्षेत्र के छोटे कारोबारों को मदद मिलेगी। इसके अलावा एसएफबी को इजाजत होगी कि सूक्ष्म वित्त संस्थानों को आम लोगों को कर्ज देने के क्रम में दिए जाने वाले नए ऋण को प्राथमिकता वाला ऋण घोषित कर सकें। यह शिथिलता चालू वित्त वर्ष के अंत तक उपलब्ध रहेगी। ऐसे में विचार यह है कि छोटे कारोबारों और व्यक्तिगत कर्जदारों की मदद की जाए क्योंकि आर्थिक बाधाओं से इनके ही सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका है। बैंकिंग नियामक ने वाणिज्यिक बैंकों द्वारा सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) को ऋण देने के क्रम में नकद आरक्षित अनुपात के आकलन में प्रोत्साहन बढ़ाया है।
आरबीआई ने एमएसएमई क्षेत्र के कर्जदारों को राहत देने के लिए पुनर्गठन ढांचे को भी शिथिल किया है। निजी क्षेत्र के विभिन्न तरह के कर्जदारों के लिए नियमों को शिथिल करने के अलावा केंद्रीय बैंक ने राज्य सरकारों के लिए ओवर ड्राफ्ट सुविधा के मानक भी शिथिल किए हैं। कुल मिलाकर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए योजना के अलावा आरबीआई ने छोटे कर्जदारों पर ध्यान देकर अच्छा किया है क्योंकि एक बार फिर वे कोविड-19 से संबंधित मुश्किलात से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं। इस बार किसी ऋण स्थगन की घोषणा न करके भी अच्छा किया गया। इससे बैंकों तथा अन्य कर्जदाताओं को लाभ आगे बढ़ाने का अधिकार मिलेगा। अधिकांश उपाय छोटे कर्जदारों को ध्यान में रखकर उठाए गए हैं। बहरहाल, कर्जदाताओं और नियामकों को परिसंपत्ति गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा। व्यापक स्तर पर देखें तो यह बात ध्यान देने लायक है कि आरबीआई पिछले वर्ष जैसे उपाय करने की स्थिति में नहीं है। वास्तविक नीतिगत दर नकारात्मक है और वित्तीय तंत्र के पास काफी अतिरिक्त नकदी है। इतना ही नहीं इससे मुद्रास्फीति में इजाफा हो सकता है और पूंजी बाहर जा सकती है क्योंकि कुछ विकसित देशों में आर्थिक स्थितियां तेजी से सुधर रही हैं। ऐसा हुआ तो वृहद आर्थिक जोखिम बढ़ सकते हैं।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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