महेश व्यास
कोविड-19 महामारी की उफनती दूसरी लहर का परिवारों की धारणा पर प्रतिकूल असर देखा जा रहा है। चारों तरफ पीड़ा एवं वेदना का माहौल है। यह दीर्घकालिक खुशहाली को लेकर परिवारों में फैली बेचैनी के रूप में झलकता है। चारों तरफ संक्रमण, किल्लत, डर एवं मौत का मातम है। विज्ञान ने कुछ टीके तैयार किए हैं लेकिन भारत में ये टीके अभी बहुत कम लोगों को लगे हैं और लाखों बीमार लोगों को जरूरी चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में परिवारों की धारणा एवं अपेक्षाओं का धूसरित होना लाजिमी है।
बीते तीन हफ्तों में उपभोक्ता धारणा खासकर प्रभावित हुई है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक 18 अप्रैल को खत्म हफ्ते में 4.3 फीसदी गिर गया और फिर 25 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में 4.5 फीसदी और गिर गया। गत 2 मई को खत्म हुए हफ्ते में उपभोक्ता धारणा सूचकांक 5.4 फीसदी और गिर गया। इस तरह साप्ताहिक सूचकांक नवंबर 2020 के बाद के निम्नतम स्तर पर आ चुका है।
उपभोक्ता धारणा सूचकांक अप्रैल में 3.8 फीसदी गिरा है। यह मई 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। ऐतिहासिक मानदंडों से भी देखें तो यह असामान्य गिरावट है। सूचकांक के दोनों घटकों- वर्तमान आर्थिक हालात एवं उपभोक्ता अपेक्षा के सूचकांक में गिरावट आई है। मौजूदा आर्थिक हालात को परखने वाला सूचकांक 2.5 फीसदी गिरा है जबकि उपभोक्ता अपेक्षा सूचकांक 4.5 फीसदी गिर गया है।
अप्रैल में उपभोक्ता धारणा में आई गिरावट परिवारों की आय की बिगड़ती हालत बयां करती है। मार्च में 45 फीसदी परिवारों ने कहा था कि उनकी आय साल भर पहले की तुलना में कम हुई है। अप्रैल में ऐसा कहने वालों का अनुपात बढ़कर 47 फीसदी हो गया। आय में सुधार का दावा करने वालों का अनुपात 6 फीसदी से घटकर 4 फीसदी हो गया। इस तरह परिवारों की आय से जुड़ी धारणा परिवारों के आय वितरण के दोनों मोर्चों पर खराब हुई है।
इस तुलना में साल भर पहले के जिस महीने की बात की जा रही है उस समय भी परिवारों की आय पर तगड़ा आघात लगा था। वह महीना अप्रैल 2020 का था जब महामारी की पहली लहर से निपटने के लिए बेहद सख्त लॉकडाउन लागू था। अप्रैल 2021 में ज्यादा परिवारों का कहना है कि साल भर पहले की तुलना में आज उनकी हालत खराब है। अगले चार महीनों में हमें यह पता चल जाएगा कि अप्रैल 2021 में आय की स्थिति क्या वाकई में अप्रैल 2020 से बदतर थी? फिलहाल हमें इतना पता है कि उपभोक्ता धारणा बिगड़ी है।
जहां आय के मामले में परिवारों की हालत बिगड़ी है वहीं टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद के बारे में उनकी धारणा अप्रैल 2021 में भी खास नहीं बिगड़ी है। टिकाऊ उत्पादों की खरीद के लिए बेहतर वक्त समझने वाले परिवारों का अनुपात 6.9 फीसदी से थोड़ा ही कम 6 फीसदी रहा। लेकिन इसे टिकाऊ उत्पादों की खरीद के लिए खराब समय मानने वालों का अनुपात भी 50.4 फीसदी से घटकर 48.1 फीसदी रहा। यह सहज-ज्ञान की मुखालफत करने वाला एक दिलचस्प आंकड़ा है। यह अप्रैल 2020 की आधार अवधि के दौरान विभिन्न आय समूहों को हुए अलग तरह के अनुभवों को बयां करता है। सापेक्षिक रूप से मध्यम आय वाले परिवार उस वक्त टिकाऊ उत्पादों की खरीद को लेकर अधिक निराशावादी थे। उन परिवारों में निराशावाद का स्तर और बढ़ा ही है जबकि अन्य परिवारों की धारणा कमोबेश स्थिर है।
भविष्य को लेकर निराशा का भाव बढ़ा है। लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि अगले 12 महीनों में उनकी आय और अर्थव्यवस्था की हालत कैसी होगी? इस महीने में इस सूचकांक के तीनों घटकों में गिरावट आई। उपभोक्ता अपेक्षा सूचकांक अप्रैल 2021 में 4.5 फीसदी गिर गया जो कि एक बड़ी गिरावट है।
करीब 46 फीसदी परिवारों का मानना है कि अगले एक साल में उनकी आय में कमी आएगी। इस निराशावाद में एक तरह की जिद है। महामारी के पहले 10 फीसदी से भी कम परिवार साल भर में आय कम होने की बात कर रहे थे। वर्ष 2020 में महामारी फैलने के बाद यह अनुपात बढ़कर 50 फीसदी पर जा पहुंचा। अर्थव्यवस्था की हालत में सुधार की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद इस आंकड़े को पलट पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। नवंबर 2020 आने तक आर्थिक बहाली को स्वीकार किया जाने लगा था लेकिन उस समय भी 45 फीसदी परिवारों को अगले एक साल में आय कम होने का डर सता रहा था। फरवरी 2021 में यह अनुपात थोड़ा बेहतर होकर 43 फीसदी हुआ लेकिन यह सुधार भी अर्थव्यवस्था के 24 फीसदी संकुचन से सकारात्मक स्थिति में आने जितना असरदार नहीं है। अब अप्रैल में निराशावादी नजरिया फिर से 46 फीसदी पर जा पहुंचा है।
अपने मौजूदा हालात की तुलना में भविष्य को भी लेकर परिवारों की धारणा में निराशावाद हावी है। भारत पर महामारी और उसके दुष्प्रभावों की मार पडऩे के पहले ज्यादा परिवार बढिय़ा साल से गुजरने वाले परिवारों की तुलना में भावी खुशहाली को लेकर अधिक आशावादी थे। अगले एक साल में आय बढऩे की उम्मीद रखने वाले परिवारों की संख्या एक साल पहले की तुलना में आय बढऩे का दावा करने वाले परिवारों से औसतन 2 फीसदी अधिक थी। अप्रैल 2020 के बाद आय बढऩे की आस रखने वाले परिवार साल भर पहले की तुलना में आय वृद्धि होने की बात करने वाले परिवारों से 1 फीसदी कम थे। फरवरी एवं मार्च 2021 में यह सापेक्षिक निराशावाद अपने चरम पर था।
यह निराशावाद अगले एक साल में वित्तीय एवं कारोबारी हालात को लेकर परिवारों के नजरिये से मेल खाता है। करीब 45 फीसदी लोगों का मानना है कि भारत में अगले एक साल में आर्थिक माहौल और खराब होने वाले हैं। महज 6 फीसदी लोगों को ही हालात में सुधार की उम्मीद है जबकि बाकी 49 फीसदी लोगों के मुताबिक हालात में कोई बदलाव नहीं होगा।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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