मधु लिमये आधुनिक भारत के विशिष्टतम व्यक्तित्वों में से एक थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महkवपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराकर भारत में शामिल कराने में। वह प्रतिबद्ध समाजवादी‚ प्रतिष्ठित सांसद‚ नागरिक स्वतंत्रता के हिमायती और विपुल लेखक होने के साथ–साथ ऐसे व्यक्ति थे जिनका सारा जीवन देश के गरीब और आम आदमी की भलाई में गुजरा और उनके के लिए वह ताउम्र समÌपत रहे।
प्रबुद्ध समाजवादी नेता के रूप में उन्होंने १९४८ से १९८२ तक विभिन्न चरणों और अलग–अलग भूमिकाओं में देश में समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया। मधु लिमये का जन्म १ मई‚ १९२२ को महाराष्ट्र के पूना में हुआ था। कम उम्र में ही उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। अपनी स्कूली शिक्षा के बाद मधु लिमये ने १९३७ में पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया और तभी से उन्होंने छात्र आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। इसके बाद मधु लिमये एसएम जोशी‚ एनजी गोरे जैसे नेताओं के संपर्क में आए और अपने समकालीनों के साथ–साथ राष्ट्रीय आंदोलन और समाजवादी विचारधारा के प्रति आकÌषत हुए। १९३९ में जब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा तो मधु लिमये ने विश्व युद्ध के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया और अपने युद्धविरोधी भाषणों के लिए अक्टूबर‚ १९४० में गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें एक वर्ष के लिए धुलिया जेल में डाल दिया गया। उन्हें सितम्बर‚ १९४१ में रिहा किया गया। अगस्त‚ १९४२ में जब बंबई में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो' का आह्वान किया तो मधु लिमये वहां मौजूद थे। उसी समय गांधी जी सहित कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। मधु अपने कुछ सहयोगियों के साथ भूमिगत हो गए। सितम्बर‚ १९४३ में मधु लिमये को एसएम जोशी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें ‘डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स' के तहत गिरफ्तार किया गया था और जुलाई‚ १९४५ तक वर्ली‚ यरवदा और विसापुर की जेलों में बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखा गया। गोवा मुक्ति संग्राम का अंतिम चरण आज से लगभग ७५ वर्ष पूर्व समाजवादी नेता ड़ॉ. राममनोहर लोहिया द्वारा १८ जून‚ १९४६ को शुरू किया गया था। इसके लगभग पंद्रह वर्ष बाद १८–१९ दिसम्बर‚ १९६१ को गोवा‚ भारत सरकार द्वारा एक सैन्य ऑपरेशन ‘विजय' के जरिए आजाद कराया गया। इस तरह यह वर्ष गोवा मुक्ति संग्राम की शुरुûआत की ७५वीं सालगिरह और गोवा मुक्ति की ६०वीं वर्षगांठ का साल है। गोवा को पुर्तगालियों की गुलामी से निजात दिलाने के लिए १९४६ से १९६१ के बीच अनगिनत हिंदुस्तानियों ने अपनी जान की कुर्बानियां दीं। बहुत सारे लोग बरसों पुर्तगाली जेलों में रहे और उनकी यातनाएं सहीं‚ उनमें से एक वीर सपूत का नाम मधु रामचंद्र लिमये है‚ जिनका आज ९९वां जन्मदिन है। गोवा आज भारत का हिस्सा है तो इसका बड़ा श्रेय ड़ॉ. राममनोहर लोहिया और उनके प्रिय शिष्य मधु लिमये को जाता है।
मधु लिमये ने १९५० के दशक में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया‚ जिसे उनके नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने १९४६ में शुरू किया था। उपनिवेशवाद के कट्टर आलोचक मधु लिमये ने १९५५ में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व किया और गोवा में प्रवेश किया। पेड़ने में पुर्तगाली पुलिस ने हिंसक रूप से सत्याग्रहियों पर हमला किया‚ जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सत्याग्रहियों को चोटें आइÈ। पुलिस ने मधु लिमये की बेरहमी से पिटाई की। उन्हें पांच महीने तक पुलिस हिरासत में रखा गया था। दिसम्बर‚ १९५५ में पुर्तगाली सैन्य न्यायाधिकरण ने उन्हें १२ साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। लेकिन मधु लिमये ने न तो कोई बचाव पेश किया और न ही भारी सजा के खिलाफ अपील की। एक बार जब वह गोवा की जेल में थे तो उन्होंने लिखा था कि ‘मैंने महसूस किया है कि गांधी जी ने मेरे जीवन को कितनी गहराई से बदल दिया है‚ उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और इच्छाशक्ति को कितनी गहराई से आकार दिया है।' गोवा मुक्ति आंदोलन के दौरान मधु लिमये ने पुर्तगाली कैद में १९ महीने से अधिक का समय बिताया। अपनी इस कैद के दौरान उन्होंने एक जेल डायरी लिखी जिसे उनकी पत्नी चंपा लिमये ने एक पुस्तक ‘गोवा लिबरेशन मूवमेंट एंड मधु लिमये' के रूप में १९९६ में प्रकाशित कराया। अब आईटीएम यूनिवÌसटी‚ ग्वालियर द्वारा उसका दोबारा प्रकाशन किया गया है॥। इस किताब में मधु लिमये द्वारा पुर्तगाली कैद में बिताए गए दिनों का रोजनामचा तो है ही साथ ही अपनी पत्नी और एक साल के बेटे अनिरुûद्ध उर्फ ‘पोपट' को लिखे गए कुछ माÌमक और दिल को छू लेने वाले पत्र भी शामिल हैं। साथ ही‚ अस्सी के दशक में उनके द्वारा गोवा पर लिखे गए दो लंबे लेख और पचास के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा संसद में गोवा पर दिए गए भाषण और बयान भी शामिल किए गए हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि अपने इन बयानों में नेहरू जी गोवा में की जाने वाली किसी भी संभावित सैनिक कार्रवाई का विरोध करते हैं‚ और कहते हैं कि ऐसी कार्रवाई अहिंसा और शांति के भारत के सिद्धांत के खिलाफ होगी। अंततः उन्हें भारतीय जनमानस और उन सत्याग्रहियों के दबाव के आगे झुकना पड़ा जो गोवा की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे और १८–१९ दिसम्बर‚ १९६१ को गोवा में सैनिक कार्रवाई करनी पड़ी। तब जाकर गोवा पुर्तगालियों की गुलामी से आजाद हुआ। ॥ भारतीय संविधान और संसदीय मामलों के ज्ञाता मधु लिमये १९६४ से १९७९ तक चार बार लोक सभा के लिए चुने गए। मधु लिमये ने जेपी आंदोलन (१९७४–७५) के दौरान और बाद में एकजुट विपक्षी पार्टी (जनता पार्टी) बनाने के प्रयासों में महkवपूर्ण भूमिका निभाई।१९७७ में वह जनता पार्टी के गठन और मोरारजी सरकार के गठन में भी सक्रिय थे। उन्हें मंत्री पद देने का प्रस्ताव भी किया गया था लेकिन उन्होंने इसे सिरे से अस्वीकार कर दिया। बाद में १ मई‚ १९७७ को उनके ५५वें जन्मदिन पर उन्हें जनता पार्टी का महासचिव चुना गया॥। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके सराहनीय योगदान और गोवा मुक्ति आंदोलन में उनकी अहम भूमिका के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान पेंशन की पेशकश की गई लेकिन उन्होंने इसे विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दिया। उन्होंने संसद के पूर्व सदस्यों को दी जाने वाली पेंशन को भी स्वीकार नहीं किया। संक्षिप्त बीमारी के बाद ७२ वर्ष की आयु में ८ जनवरी‚ १९९५ को मधु लिमये का नई दिल्ली में निधन हो गया।
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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