हम एक महामारी से गुजर रहे हैं और ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि देश की निर्वाचित सरकार श्रेष्ठ वैज्ञानिक सलाहों को बेहद ध्यानपूर्वक सुने। यह साफ है कि केंद्र सरकार हाल के महीनों में ऐसा करने में नाकाम रही है और उसे आगे चलकर अपनी गलती सुधार लेनी चाहिए। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक महामारी पर निगरानी रख रही सरकार के वैज्ञानिकों की समिति, इंडियन सार्स-सीओवी-2 जेनेटिक्स कन्सॉर्शियम अथवा इन्साकॉग ने मार्च के आरंभ में ही सरकार को वायरस के नए स्वरूप बी.1617 के बारे में जानकारी दे दी थी। वायरस के इस स्वरूप को अधिक संक्रामक माना जा रहा है और यह प्रतिरोधक क्षमता को धता बता सकता है। यानी दोबारा संक्रमण की आशंका अधिक है। इन्साकॉग में 10 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के वैज्ञानिक शामिल हैं। उन्होंने मार्च के आरंभ में स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा था कि वायरस के नए स्वरूप के कारण देश में संक्रमण तेजी से फैल सकता है।
यह पता नहीं है कि सरकार ने इस सूचना के बाद क्या किया। दुख की बात है कि यह सूचना सही साबित हुई। देश में जांच नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग अपूर्ण है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि मुंबई और दिल्ली में बी.1617 ब्रिटेन के संक्रामक बी.117 स्वरूप के साथ पाया गया जो मूल वायरस से 40 से अधिक प्रतिशत अधिक संक्रामक है। शारीरिक दूरी के कड़े मानकों के अभाव में वायरस खूब फैला और देश के बड़े हिस्से में स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया। सरकार द्वारा अपने ही वैज्ञानिकों की बात नहीं सुनने का यह नतीजा निकला।
देश में दूसरी लहर के लिए बंद जगहों पर भीड़भाड़ एक बड़ी वजह है। काफी संभव है कि खुली जगहों पर भी अधिक लोगों का एकत्रित होना वायरस के तेज प्रसार की वजह बन सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा मार्च के आरंभ में चेतावनी जारी करने के बावजूद देश के अधिकांश हिस्सों में धार्मिक त्योहार, राजनीतिक रैलियां, विवाह आदि तब तक चलते रहे जब तक मामले बहुत अधिक बढ़ नहीं गए और मौत के मामलों की अनदेखी संभव नहीं रह गई। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने विदिशा जिला अस्पताल में कुंभ से वापस आने वालों की जांच में बड़े पैमाने पर संक्रमण मिलने के बाद सभी जिलाधिकारियों से कहा कि वे कुंभ से लौटने वालों को तलाश कर क्वारंटीन करें। सरकार को पुरानी गलतियों से सबक लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में नियमों और प्रतिबंधों को लागू करने में विशेषज्ञों की राय तथा वैज्ञानिक प्रमाणों को तवज्जो दी जाए।
यकीनन अब सरकार की भविष्य की नीतियों को लेकर वैज्ञानिकों की राय के बारे में सवाल किए जाएंगे। जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री को सलाह देने वाले कोविड-19 कार्य बल समेत कई विशेषज्ञ सामुदायिक प्रसार और ग्रामीण क्षेत्रों में वायरस का प्रसार रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन पर जोर दे रहे हैं। देश के बाहर के विशेषज्ञ मसलन अमेरिका के एंटनी फाउची आदि भी यही सलाह दे रहे हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) ने भी वायरस का प्रसार रोकने के लिए उच्चतम और देशव्यापी स्तर पर अधिकतम जरूरी कदम उठाने की मांग की है, भले ही इसके लिए आर्थिक गतिविधियों को सीमित करना पड़े। सीआईआई ने सरकार से कहा है कि वह इस विषय पर देसी-विदेशी विशेषज्ञों की राय सुने। कई अन्य लोगों की दलील है कि ये निर्णय राज्य या जिला प्रशासन पर छोड़ दिए जाने चाहिए। यकीनन गत वर्ष जैसा देशव्यापी लॉकडाउन गरीब भारतीयों पर गंभीर असर डालेगा। बहरहाल जरूरी यह है कि ऐसे नीतिगत निर्णय ठोस वैज्ञानिक और विशेषज्ञ समूहों की राय लेकर लिए जाएं।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment