ऐसे वक्त पर जब देश कोरोना संकट की दूसरी भयावह लहर से जूझ रहा है, संकट में उम्मीद की किरण बने टीके को लेकर उठते विवाद परेशान करने वाले हैं। दिल्ली समेत कई राज्यों में टीकाकरण केंद्र बंद करने की बातें, पर्याप्त वैक्सीन न मिलने पर युवाओं के लिये समय से टीकाकरण शुरू न होने की खबरें बता रही हैं कि शायद नया चरण बिना तैयारी के ही शुरू कर दिया गया है। ऐसा लगता है कि अपनी वैक्सीन खोज लेने और कोविशील्ड का भारत में समय रहते उत्पादन शुरू करने के बावजूद हम इस अभियान में अदूरदर्शिता के चलते पिछड़ गये हैं। कोविशील्ड की दूसरी डोज के समय में दूसरी बार बदलाव बता रहा है कि हमारे पास पर्याप्त वैक्सीन का अभाव है। इससे न केवल देश में टीकाकरण अभियान में बाधा पहुंचेगी बल्कि हम विश्व बाजार में पिछड़ जायेंगे। निस्संदेह देश के कई राज्य टीके की कमी से जूझ रहे हैं। दरअसल, 18 से 44 आयु वर्ग की बड़ी तादाद को हम टीका उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हैं। कहीं न कहीं ये कमी हमारी दूसरी लहर के खिलाफ जारी लड़ाई को कमजोर करती है। यह भी हकीकत है कि दूसरी लहर में संक्रमितों की आधी आबादी देश की कर्मशील व युवा आबादी ही है, जिसके लिये टीकाकरण अभियान तेज करना वक्त की जरूरत है। ऐसे में टीके की कमी को पूरा करने के लिये जरूरी है कि स्वदेशी कंपनियों के साथ ही विदेशों से दूसरे टीकों का आयात किया जाए ताकि टीकाकरण अभियान में गति आये। इसके चलते कई राज्य अपने यहां टीका लगाने के लिये ग्लोबल टेंडर दे रहे हैं। किसी राष्ट्र पर आयी ऐसी आपदा के मुकाबले के लिए किसी देश में वैक्सीन अलग-अलग राज्यों द्वारा मंगाये जाने के उदाहरण सामने नहीं आते। जाहिर -सी बात है कि जब राज्य किसी कंपनी से अलग-अलग बातचीत करेंगे तो उन्हें ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। वहीं दूसरी ओर यदि एक साथ वैक्सीन खरीदी जायेगी तो बड़ी मात्रा में खरीद से लागत को प्रभावित किया जा सकता है।
कुछ राज्य कह भी रहे हैं कि टीका खरीद केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। वहीं केंद्र की दलील है कि राज्यों ने वैक्सीन खरीद में स्वायत्तता की बात कही थी। ऐसे वक्त में जब देश बड़े संकट से गुजर रहा है, देशवासियों की सेहत की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार ने हाल में वैक्सीन को लेकर कुछ कदम उठाये हैं और नयी गाइड लाइन भी जारी की है। यदि केंद्र टीका आयात करने का फैसला लेता है तो इससे देश को आर्थिक रूप से भी लाभ होगा। जिसके चलते फिर फिलहाल वैक्सीन की कमी से जो टीकाकरण अभियान प्रभावित हो रहा है, उसमें गति आयेगी। युवा वर्ग हमारा बड़ा वर्ग तो है ही, साथ ही यह देश की कर्मशील आबादी भी है। इसकी सामाजिक सक्रियता भी ज्यादा है जो संक्रमण की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील भी है। इसे सुरक्षा कवच देना पूरे देश को सुरक्षा प्रदान करना है। तभी हम समय रहते टीकाकरण के लक्ष्यों को हासिल कर पायेंगे। केंद्र को भी शीर्ष अदालत को किये गये उस वायदे को पूरा करना चाहिए, जिसमें राज्यों को टीका देने की योजना में विषमता को दूर करने की बात कही गई थी। दरअसल, कोरोना संकट की दूसरी लहर के बाद लोगों को अहसास हो गया है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये टीका लगाना जरूरी है। इसलिये पहले चरण में जो लोग टीका लगाने में ना-नुकुर कर रहे थे, वे भी अब टीका लगाने को आगे आ रहे हैं। टीकाकरण अभियान की सफलता के लिये जागरूकता जरूरी है। जब तक हम देश की सत्तर-अस्सी फीसदी आबादी को टीका नहीं लगा लेते तब तक नयी-नयी लहरों का सामना करना हमारी नियति होगी। इस मायने में केंद्र सरकार को व्यावहारिक, उदार व संवेदनशील टीका नीति के साथ आगे आना चाहिए। इसमें टीके का उत्पादन बढ़ाने के लिये भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करने और राज्य में सकारात्मक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की जरूरत है।
सौजन्य- दैनिक ट्रिब्यून।
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