सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग के स्वास्थ्य मामलों से संबद्ध सदस्य वी के पॉल ने हाल ही में कहा कि इस वर्ष अगस्त से दिसंबर के बीच कोरोनावायरस के विभिन्न टीकों की 2.16 अरब खुराक तैयार होंगी। आशा यह है कि इस वर्ष के अंत तक पूरी आबादी के टीकाकरण की दृष्टि से पर्याप्त टीके देश में बन जाएंगे। पॉल का वक्तव्य टीकाकरण में आए गतिरोध के संदर्भ में आया। इस समय देश में टीकाकरण 30 लाख खुराक रोजाना के पुराने औसत को भी बरकरार नहीं रख पा रहा है। टीकों की कमी, राज्यों तथा सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क तथा निजी अस्पतालों में सशुल्क टीकाकरण के लिए वितरण की समस्या को देखते हुए पहली और दूसरी खुराक के बीच अंतर तथा 45 वर्ष से अधिक तथा 18 से 44 की आबादी का टीकाकरण अहम मसले हैं। इन दुविधाओं से तभी निपटा जा सकता है जब आपूर्ति बढ़ाई जाए।
टीकों के विनिर्माण को लेकर डॉ. पाल की आशा कई ऐसे कारकों पर निर्भर करती है जो शायद अपेक्षा के अनुरूप न साबित हों। उदाहरण के लिए उन्होंने आशा जताई कि अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स टीकों की 20 करोड़ खुराक तैयार करेगी। भारत में यह टीका बनाने का लाइसेंस सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को मिला है। परंतु इस टीके को अभी कहीं मंजूरी नहीं मिली है। यदि इसे अनुमानित समय पर मंजूरी मिल जाती है तो भी एसआईआई को नोवावैक्स टीके की आपूर्ति शृंखला में दिक्कत है क्योंकि अमेरिका में निर्यात पर प्रतिबंध लागू हैं। कई अन्य टीकों मसलन भारत बायोटेक के नाक से दिए जाने वाले टीके तथा अमेरिकी एचडीटी बायो कॉर्पोरेशन तथा जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स की साझेदारी में बन रहे एमआरएनए टीके के अभी प्रारंभिक परीक्षण ही शुरु हुए हैं। कई अन्य संभावित टीकों को नोवावैक्स की ही तरह कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इनमें अमेरिका के टैक्सस मेडिकल सेंटर और कैलिफोर्निया की डाइनावाक्स टेक्रोलजीज के टीके शामिल हैं जिन्हें बनाने के लिए भारतीय कंपनी बायोलॉजिकल ई को लाइसेंस दिया जा रहा है। आशा की जा रही है कि इस टीके की 30 करोड़ खुराक दिसंबर के पहले तैयार होंगी। लेकिन अभी देश में 15 जगहों पर इस टीके का भी तीसरे चरण का परीक्षण शुरु ही हो सका है।
एक सवाल जो स्पष्ट रूप से पूछा जाना चाहिए वह यह कि देश में मौजूदा टीकों को व्यापक पैमाने पर बनाने का लाइसेंस क्यों नहीं दिया जा रहा है या उनका उत्पादन बढ़ाया क्यों नहीं जा रहा है? बायोलॉजिकल ई ने जॉनसन ऐंड जॉनसन से उसके एक खुराक वाले टीके को लेकर स्वयं चर्चा की है। अतीत में कंपनी के प्रबंध निदेशक कह चुके हैं कि कंपनी को इस वर्ष इस टीके की 60 करोड़ खुराक तैयार करने की आशा है। ऐसे में इसे प्राथमिकता क्यों नहीं दी जा रही है, यह समझ पाना मुश्किल है। सवाल तो यह भी उठ रहा है कि हाल में नियम कायदे उदार करने के बावजूद जॉनसन ऐंड जॉनसन ने देश में चिकित्सकीय परीक्षण की इजाजत क्यों नहीं मांगी? ऐसे ही सवाल फाइजर के प्रभावी एमआरएनए तकनीक वाले टीके पर भी उठने चाहिए। यह भी कि उसे जवाबदेही से मुक्ति क्यों नहीं दी गई। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा सभी ने ऐसा किया है तो भारत देरी क्यों कर रहा है? स्पष्ट है कि मौजूदा बाधाओं के बीच सरकार की टीकों की उपलब्धता की समय सीमा कुछ ज्यादा आशावादी लग सकती है। जब तक आपूर्ति में सुधार नहीं होता है तो भारत को बेहतर चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान देना होगा। दूसरी लहर में उन जगहों से सबक लेने चाहिए जहां वह पहले असर डाल चुकी है और अन्य स्थानों पर उन्हें लागू करना चाहिए। इसके साथ ही विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार तीसरी लहर से निपटने की तैयारी करनी चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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