देश भर में तेजी से फैल चुकी कोविड-19 की दूसरी लहर को नियंत्रित करने में टीका लगवाने को लेकर हिचकिचाहट और कोविड की रोकथाम के लिए जरूरी व्यवहार की अनुपस्थिति बड़ी समस्या बनकर उभरे हैं। खासतौर पर देश के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में यह दिक्कत ज्यादा गंभीर है।
विभिन्न जिलों के स्थानीय स्वास्थ्यकर्मी बता रहे हैं कि लोग दुष्प्रभावों की आशंका के चलते टीका लगवाने से बच रहे हैं। ऐसा आंशिक रूप से इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने शुरुआत में टीकों को लेकर पूरी पारदर्शिता नहीं बरती। दूसरी ओर, मास्क लगाने और शारीरिक दूरी को लेकर ग्रामीण इलाकों में कोई सावधानी नहीं बरती गई। इस बात ने भी महामारी के प्रसार में काफी योगदान किया। चूंकि ये सारी बातें जनवरी में टीकाकरण की शुरुआत के पहले से ज्ञात थीं इसलिए अगर समय रहते टीकों की सुरक्षा और अहमियत को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता तो बेहतर होता।
हालांकि सरकार ने इसे लेकर कुछ पोस्टर जारी किए हैं और टेलीविजन चैनलों पर कुछ संदेश नजर आने लगे हैं लेकिन इसके बजाय गंभीर अभियान की आवश्यकता है। स्वास्थ्य मंत्री ने यह चर्चा भी की कि कैसे व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम की मदद से देश ने चेचक (शीतला) और पोलियो का उन्मूलन कर दिया। यह संदर्भ एकदम उचित था क्योंकि दोनों ही अवसरों पर टीकाकरण को लेकर जबरदस्त जागरूकता अभियान चलाये गए और इन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ-साथ देश के कुछ सबसे बड़े उपक्रमों के साथ मिलकर चलाया और इसमें हजारों की तादाद में स्वास्थ्यकर्मी शामिल रहे। चेचक और पोलियो कार्यक्रमों के बचे हुए पोस्टर इस बात की पुष्टि करते हैं कि कैसे चेचक के लिए शीतला माता जैसी अलंकृत भाषा वाले संदेश का इस्तेमाल पोस्टरों पर किया गया और सिगरेट के पैकेट पर छपी चेतावनी जैसे संदेश दिए गए कि टीकाकरण नहीं करवाने के क्या खतरे हो सकते हैं।
विडंबना यह है कि आज हमारे देश के पास सन 1970 के दशक की तुलना में बहुत ज्यादा मीडिया और संसाधन हैं जिनकी मदद से संदेश को सहजता से प्रसारित किया जा सकता है। उन दिनों तो प्रचार का पूरा दायित्व सरकारी रेडियो चैनलों पर था। इसके अलावा संदेश दीवारों पर लगाए जाते तथा पोस्टर चिपकाए जाते। चेचक के किसी मामले की सूचना स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र को देने पर 100 रुपये का इनाम था। यह तरीका मामलों की पड़ताल में अत्यंत प्रभावी साबित हुआ। आज दूरदर्शन और सोशल मीडिया की पहुंच बहुत व्यापक है और चार दशक पहले की तुलना में आज देश के दूरदराज इलाकों में संदेश पहुंचाना आसान है। देश में विज्ञापन जगत से जुड़ी प्रतिभाओं की भी कोई कमी नहीं है। ऐसे में विश्वसनीय सेलिब्रिटी मसलन विराट कोहली, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, पीवी सिंधू या आलिया भट्ट आदि की मदद से स्थानीय भाषाओं में देशव्यापी प्रचार अभियान चलाया जा सकता है। यदि चुनाव के समय राजनीतिक संदेश मोबाइल रिंगटोन से दिए जा सकते हैं तो उनका इस्तेमाल लोगों को मास्क पहनने के लिए प्रेरित करने में भी किया जा सकता है जैसा कि शुरुआती दिनों में कुछ राज्य सरकारों ने किया भी। टीकाकरण के प्रचार के लिए भी यह तरीका अपनाया जा सकता है।
उस दौर की तरह अब भी पंचायतों और स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों तथा दूरदराज इलाकों में स्थापित निजी और सार्वजनिक उपक्रमों की मदद से मजबूती से काम किया जा सकता है। ऐसे शिक्षण कार्यक्रमों पर होने वाले व्यय को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व में शामिल किया जाना चाहिए यह अधिक मददगार साबित होगा। सरकार अगर विदेशों में अपना नजरिया प्रस्तुत करने के लिए टेलीविजन चैनल शुरू करने के बजाय तत्काल संदेश प्रसारित करने के काम में लगे तो उसे अधिक लाभ होगा। देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को सशक्त टीकाकरण से अधिक लाभ होगा, बजाय कि टेलीविजन पर होने वाली बहसों के।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment