बीते एक साल से अधिक समय से जारी महामारी का कहर अपने सबसे भयावह दौर में है. पिछले सप्ताह जहां 26 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए, वहीं लगभग 24 हजार लोगों की मौत हो गयी. गंभीर रूप से बीमार लोगों की बहुत बड़ी संख्या को हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था संभाल नहीं पा रही है. इस स्थिति से निपटने के लिए ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है तथा अस्थायी कोरोना अस्पताल बनाये जा रहे हैं.
अनेक देशों से मदद भी पहुंच रही है. लेकिन संकट इतना बड़ा है कि हमें अपनी कोशिशें भी तेज करनी होंगी. केंद्र और राज्य सरकारों तथा स्थानीय प्रशासन को हर संभव प्रयास करना चाहिए कि ऑक्सीजन या दवाओं की कमी या अस्पताल में बिस्तर न मिल पाने से एक भी व्यक्ति की मौत न हो. देश के अनेक उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी सरकारों को लगातार निर्देश जारी हो रहे हैं. इन निर्देशों का समुचित पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
देश के सामने यह एक अभूतपूर्व संकट है, इसलिए इसका सामना भी पूरी ताकत के साथ किया जाना चाहिए. एक तरफ बड़ी संख्या में संक्रमितों के उपचार की चुनौती है, तो दूसरी तरफ कोरोना वायरस का अध्ययन करने और आबादी के बड़े हिस्से को टीका देने का काम भी करना है. महामारी के पहले चरण में ही अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच गयी थी, अब फिर एक बार ग्रहण के आसार हैं.
ऐसे में देश के पास उपलब्ध संसाधनों के अधिकाधिक उपयोग से कोरोना संक्रमण की रोकथाम करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. हमने अपनी तैयारियों में पहले ही बहुत देर कर दी है और अब किसी भी तरह का लचर रवैया आत्मघाती होगा. ऐसे में पहली प्राथमिकता अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवाओं और वेंटिलेटर की व्यवस्था है. बीते दिनों में अनेक जगहों से ऑक्सीजन की कमी से रोगियों के मरने की खबरें आती रही हैं.
खाली बिस्तर और वेंटिलेटर की तलाश में इस अस्पताल से उस अस्पताल दौड़ते-भागते मरीजों और उनके परिजनों की तस्वीरें दिल दहलानेवाली हैं. यह एक तथ्य है कि आबादी के बहुत बड़े हिस्से को टीके की पूरी खुराक दिये बिना महामारी पर निर्णायक जीत हासिल नहीं की जा सकती है. इसलिए टीकों का उत्पादन बढ़ाने के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि टीके सस्ते हों और सहूलियत से लगाये जा सकें. सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को वैक्सीन नीति की समीक्षा करने का निर्देश दिया है.
उम्मीद है कि इस संबंध में जल्दी ही कोई ठोस फैसला लिया जायेगा. केंद्र और राज्य सरकारों को जांच, संक्रमण और उपचार से संबंधित आंकड़ों के मामले में पारदर्शिता न बरतने की शिकायतों का गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए. ये आंकड़े केवल दस्तावेजीकरण के लिहाज से ही जरूरी नहीं हैं, बल्कि इन्हें ही आधार बनाकर भविष्य की ऐसी किसी चुनौती का सामना करने की सही तैयारी हो सकती है. आगामी कुछ दिन बेहद अहम हैं.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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